अरुण चन्द्र राय की कविता - प्रार्थनाएं
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आदरणीय मां
उमर हो ही गई है तुम्हारी
लेकिन अभी इस भीषण महामारी के दौर में
न तो बीमार होना , न ही मरना
अन्यथा मां
न ही मिल पाएगा डॉक्टर, न ही अस्पताल
न ही मिल पाएगी शमशान में स्थान
मां अभी किसी तरह रुकना तुम
मत मरना तुम
इस महामारी के दौरान।
बाबूजी
वैसे तो आपने देख ली दुनियां
जानता हूँ कि जाना तो होता ही है एक सबको
फिर भी कहूंगा कि हो सके तो
मृत्यु को टालना महामारी के बीत जाने तक
क्योंकि देख ही रहें हैं आप कि
कितनी मुश्किल है अभी अस्पतालों में
न मिल रही है दवाइयां न ही प्राणवायु
और चिता के लकड़ियां भी हो चली है महंगी
इसलिए बाबूजी अभी रुकियेगा हमारे साथ , हमारे बीच । .
प्रिय अनुज
इस बीच यदि मैं पड जाऊं बीमार
हो जाए साँसों को ऑक्सीजन की कमी
न मिले कोई सरकारी अस्पताल
तो बस ध्यान रखना हमारे बच्चों का
भाव में लुटने से बचा लेना उनकी जमा पूँजी
मेरे अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं करना कोई विशेष यत्न
निपटा देना किसी तरह बस
हाँ लिख कर रख दिया हूँ
बच्चों के स्कूल के लिए भावपूर्ण चिट्ठी
ताकि माफ़ हो जाए उनकी फीस मेरे नहीं रहने के बाद
यदि वो न हो सके तो उन्हें दाखिला जरुर दिला देना
घर के पीछे सरकारी स्कूल में
वैसे समझा दिया है मैंने कि पढ़ाई सिमटा हुआ है
किताब के उन दो चार सौ पन्नों में
और वे समझ भी गए हैं ।
प्रिय जीवन संगिनी
कुछ नहीं मालूम कब कौन है कब नहीं
आखिर महामारी है यह
फिर भी यदि किसी को जाना पड़ा तो
वादा करो कि निभाएंगे दुसरे के सपनों को हकीकत बनाने का
आंसू बिलकुल भी जाया नहीं करेंगे
न ही अवसाद को घर करने देंगे एक दूसरे के ह्रदय में
कहो न करोगी ऐसा ही !
ये इस दशा की वास्तविक मन की बात है। मार्मिक।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर। आपके पढ़ने से कविता सफल हो जाती है।
हटाएंनिशब्द हूं अरुण जी इस मार्मिक रचना ने आँखें नम कर दीं। विचलित मन जाने क्या क्या सोचता रहता है मन।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रेणु जी
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