आपको हार्दिक शुभकामनाएं
शुभकामनाएं इसलिए भी कि
गौरैया विलुप्त हो रही है
और इसे बचाने के लिए
आप लिख रहे हैं नारे
बना रहे हैं विज्ञापन
जैसे कि आप करते हैं छद्म, प्रपंच
जल बचाने के लिए
वृक्ष बचाने के लिए
बेटी बचाने के लिए
नदी बचाने के लिए
मिट्टी बचाने के लिए
हवा बचाने के लिए
ओजोन परत बचाने के लिए
डॉल्फिन और घड़ियाल बचाने के लिए
बाघ, सिंह, गैंडा बचाने के लिए ।
दरअसल आप जो मनुष्य हैं
पृथ्वी के श्राप हैं
बचाना है पृथ्वी को इस मनुष्य से ।
सत्य है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 21 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (21 मार्च 2022 ) को 'गौरैया का गाँव में, पड़ने लगा अकाल' (चर्चा अंक 4375 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी अरुण जी , समस्त प्राणियों में मानव ने ही अपनी महत्वकांक्षाओं के चलते अपने हर अधिकार का अतिक्रमण किया है और कर्तव्य से दूरी बनायी है | सभी सजीवों में मानव धरती का श्राप ही साबित हुआ है | अनमोल रचना |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रेणु जी।
हटाएंआदमी के मुँह पर तमाचा ।
जवाब देंहटाएंहमेशा उसने ख़ुद ही मारा ।
पृथ्वी और प्रकृति को बचाने का सार्थक सच्चा संदेश देती बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
शुक्रिया ज्योति खरे जी।
हटाएंसटीक तंज ।
जवाब देंहटाएंमन के सत्य उदगार।