शनिवार, 2 अप्रैल 2022

चैत

 इधर चैत जल रहा है 

और दुनिया गा रही है 

बसंत के गीत 

खड़ी फसलों के बेमौसम बरसात में 

गिर जाने के खतरे के बीच 

लोग शोक मना रहे हैं गिरे हुए पत्तों पर 

और ये ऐसे लोग हैं जिन्हें 

शाख से  गिरे हुए पत्तों एवं 

पके हुए फसलों के बेमौसम बारिश में गिरने के बीच का फर्क 

नहीं है मालूम। 


नदियां और पोखर गए हैं सूख 

बढ़ती ही जा रही है लोगों की भूख 

जबकि पेट की भूख जस की तस बनी हुई है 

एक भूख को श्रेष्ठ बताने के लिए चलाए जा रहे हैं 

संगठित अभियान 

और एक भूख को लगातार किया जा रहा है 

मुख्यधारा से ओझल 

भूख और भूख के बीच के फर्क के प्रति अज्ञानता ही 

सुखा रही है नदियां और पोखर 

काश कभी जान पाते आप और हम।


चैत को नहीं जलना चाहिए 

नदियों को नहीं सूखना चाहिए 

पोखरों को जिंदा रहना चाहिए 

और भूख पर लगाम लगानी चाहिए 

यह केवल नारा भर है जिसे एक साथ पोस्ट किया जाना है 

विभिन्न मीडिया मंचों पर। 



















1 टिप्पणी:

  1. मुख्यधारा से ओझल
    भूख और भूख के बीच के फर्क के प्रति अज्ञानता ही
    सुखा रही है नदियां और पोखर
    काश कभी जान पाते आप और हम।

    काश

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