इधर चैत जल रहा है
और दुनिया गा रही है
बसंत के गीत
खड़ी फसलों के बेमौसम बरसात में
गिर जाने के खतरे के बीच
लोग शोक मना रहे हैं गिरे हुए पत्तों पर
और ये ऐसे लोग हैं जिन्हें
शाख से गिरे हुए पत्तों एवं
पके हुए फसलों के बेमौसम बारिश में गिरने के बीच का फर्क
नहीं है मालूम।
नदियां और पोखर गए हैं सूख
बढ़ती ही जा रही है लोगों की भूख
जबकि पेट की भूख जस की तस बनी हुई है
एक भूख को श्रेष्ठ बताने के लिए चलाए जा रहे हैं
संगठित अभियान
और एक भूख को लगातार किया जा रहा है
मुख्यधारा से ओझल
भूख और भूख के बीच के फर्क के प्रति अज्ञानता ही
सुखा रही है नदियां और पोखर
काश कभी जान पाते आप और हम।
चैत को नहीं जलना चाहिए
नदियों को नहीं सूखना चाहिए
पोखरों को जिंदा रहना चाहिए
और भूख पर लगाम लगानी चाहिए
यह केवल नारा भर है जिसे एक साथ पोस्ट किया जाना है
विभिन्न मीडिया मंचों पर।
मुख्यधारा से ओझल
जवाब देंहटाएंभूख और भूख के बीच के फर्क के प्रति अज्ञानता ही
सुखा रही है नदियां और पोखर
काश कभी जान पाते आप और हम।
काश