गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023

पकते हुए धान

पकने लगे हैं  धान

बजने लगा है 

हवा में संगीत 

घुलने लगी है 

ठंढ, धूप में . 


झड़ने लगी है 

रातरानी 

लदने लगे हैं 

अमलतास ओस से

पकते हुए धान के साथ  . 


खलिहान की आतुरता 

देखते ही बनती है 

धान के स्वागत के लिए  .  




6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना सर।
    धान की बालियाँ
    सुखों की जालियाँ
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    सादर।
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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