सोमवार, 8 नवंबर 2010

दाढ़ी बनाते हुए घायल होना


नित्य
दाढ़ी बनाना
किसी के लिए
बहुत आम है तो
किसी के लिए
बहुत ही खास


हमारे गाँव में
कई तो ऐसे थे
जो इन्तजार करते थे
किसी के मरने या बरसी का
कटवाने को दाढ़ी- बाल
लेकिन वो अलग बात है
जिसकी चर्चा भी शहरों में नहीं होनी चाहिए
क्योंकि वह एक अलग भारत हैं
अलग भारत का अलग अनुभव है


 यहाँ शहर में भी
लोग बचाते हैं
ब्लेड का पैसा
और दिन नागा करते हैं
दाढ़ी बनाने में
शनि मंगल और गुरु के नाम पर
लेकिन वे लोग
गाँव के उन लोगों से बहुत भिन्न नहीं हैं
जो करते हैं किसी के मरने या बरसी का इन्तजार


 वैसे व्यक्तित्व को
परिभाषित करने लगी  हैं दाढ़ी
लेकिन
जो बात समान है गाँव-देहात से शहर तक में
वो यह है कि
शीशे के सामने
दाढ़ी बनाना
एक दिनचर्या होने के साथ साथ होती  है
एक आध्यात्मिक अनुभूति
अनेक   विचार उपजते हैं
इस दौरान
और कई बार
लग जाता है ब्लेड
इसी उधेड़ बुन में
स्वयं से भी
और नाई से भी


बेटे की मार्कशीट
टीवी सीरियल के पात्र
सिनेमा के हीरो
पत्नी की फरमाईशें
राशन का हिसाब-किताब
स्टोक एक्सचेंज का उतार -चढ़ाव
क्रिकेट के स्कोर
और बीच बीच में
माँ का भावुक कर देने वाला चेहरा 
सब एक एक कर
उभरते हैं शीशे पर
जब कभी
खो जाते हैं हम
ब्लेड कर जाता है अपना काम
छोड़ जाता है
अपनी निशानी
हफ्ते भर के लिए


वैसे
ब्लेड का लग जाना
बात आम है
लेकिन इतना आम नहीं भी है
क्योंकि
पिछली बार जब हुए थे
शहर में दंगे
हफ्ते तक बार बार
घायल हो जाता था मैं
दाढ़ी बनाते हुए

सैकड़ो
अनुतारित्त प्रश्न
आज भी
शीशे में उभरते हैं
घायल करते हैं मुझे
दाढ़ी बनाते हुए


आज
एक अजीब सा प्रश्न
घायल कर गया  मुझे
कि दाढ़ी बनाने वाला
अदना सा यह ब्लेड
यदि ठीक से
डिस्पोज़ ना हो तो
कितनो को आहात कर देगा
साथ ही
कूड़ा उठाने वाले का रक्त रंजित  हाथ 
कूड़े घर में आवारा घूमती गाय  का खून से सना थूथना
और ना जाने   कौन-कौन से चित्र 
उभर  आये  शीशे  पर
सुबह-सुबह 
दाढ़ी बनाते हुए

 
दाढ़ी बनाते हुए
घायल होने से लगता है
बची है संवेदना 

हमारे भीतर

28 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम मौलिक विषय पर लिखी गई कविता.
    वैसे, आजकल जमाना -सटासट- जिलेट प्रेस्टो और सेंसर एक्सेल का है जिसमें घायल होने की गुंजाइश नेगेटिव में होती है. पर, बाकी दूसरी समस्याओं का हल नहीं है. और डिस्पोजल की तो बड़ी समस्या है इसमें.

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  2. बिल्कुल अलग अन्दाज़ की कविता………………काफ़ी कुछ सोचने को विवश करती है………………एक नयी सोच को दिशा देती हुयी।

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  3. सुन्दर. बहुत ही सुन्दर.
    ओह....

    यह प्रखर पैनापन ...

    आप जैसे सिद्ध के हाथों ही संभव है...

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  4. Arun Bhaiya Ki kavitaaon ke Subject apane aap me wilag aur andaaz bhi wilag jaan padataa hai.achee lagee rachanaa

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  5. नई सोच...नया अंदाज...नए भाव...नए अर्थ.
    बहुत सुंदर।

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  6. रचना को बेहद मार्मिक मोड़ दे दिया आपने ... लाजवाब रचना ...... आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं

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  7. दाढ़ी बनाने को मनावीय संवेदना से जोड़कर एक नये विषय को साधिकार निरूपित किया है।

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  8. एक आम शब्द या विषय को खास बना देना आपकी विशेषता है - अरुण जी प्रभावशाली रचना के लिए बधाई

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  9. वैसे
    ब्लेड का लग जाना
    बात आम है
    लेकिन इतना आम नहीं भी है
    क्योंकि
    पिछली बार जब हुए थे
    शहर में दंगे
    हफ्ते तक बार बार
    घायल हो जाता था मैं
    दाढ़ी बनाते हुए
    बिलकुल नए अंदाज में रची यह पंक्तियाँ बहुत कुछ संप्रेषित करने में सक्षम हैं ...नए भाव बोध और नए विचार के साथ मौलिकता भी
    ...सुंदर प्रस्तुति

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  10. दाढ़ी बनाते हुए
    घायल होने से लगता है
    बची है संवेदना
    हमारे भीतर

    सच में रचना को पढ़ कर और शीशे पर उभर आये रक्तरंजित गाय, कूदेवाले और कचरा बीनने वाले सभी के चित्र देख कर लगता है की बची है संवेदना हमारे भीतर अभी तक..सुंदर चित्रण.

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  11. वाह मजे मजे में बहुत संवेदनशील बात अख गए आप अनोखे अंदाज में.
    बहुत बढ़िया.

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  12. अरुणजी,
    आपकी सभी कविताओं पर कमेन्ट नहीं दे पाता, मगर पढ़ता जरुर हूँ |
    दाढ़ी बनाते हुए
    घायल होने से लगता है
    बची है संवेदना
    हमारे भीतर
    आपकी कविताओं में विषय रोज़मर्रा की चीजें या गतिविधि पर भले ही हो मगर सामान्य से असामान्य बनाने की कुशलता है आपकी कलम में... बधाई |

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  13. बिलकुल अलग अंदाज़ में लिखी..अनोखी कविता .

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  14. Nice lines with new scope. you picked very common picture for your wording. apparently, if i say , it cldn't be done by everybody. so i think you deserve for compliments for this poem. i read ur poems usually but, sometimes due to hectic schedule i cldnt reply or comment for each. so keep it up with my silent congratulations and appreciation. you know very well, i hope , that how hard and overburden we have to face here in academy. keep your heart to heart and word to word contact without bothering upon my non responsiveness.
    J.K. Soni, IAS
    www.jksoniprayas.blogspot.com

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  15. बेहद संवेदनशीलता के साथ लिखी गई बेहतरीन रचना है.



    प्रेमरस.कॉम :
    दैनिक जागरण में: हिंदी से हिकारत क्यों

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  16. हमारे गाँव में
    कई तो ऐसे थे
    जो इन्तजार करते थे
    किसी के मरने या बरसी का
    कटवाने को दाढ़ी- बाल ... ye to ek rochak baat bataai

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  17. अरूण भाई, कविता पढकर हतप्रभ हूँ। वाकई संवेदना की इन्‍तेहा है।

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  18. arun bhai!! main bhi nahin banata daadhi mangal, guru aur shanivaar ko... paise bachaane ke liye nahin..paramparaa bachaane ke liye,jo bujurg bata gaye aur hamane maan liyaa..
    kavitaa ki samvedanaa vyathit karati hai..

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  19. bahut sanvedna poorn bat kah gaye aap ek chhoti si rojmarya ki bat me.....

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  20. सामान्य प्रतीक से उत्कृष्ट व्यंजना। बहुत कुछ समेट लिया है स्मृति में। सुन्दर है।

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  21. +दिन चर्या के एक काम पर इतनी गहरी सोच कुछ कहने पर मजबूर करती है \ सब से अधिक इसमे जो सन्देश छिपा है अपनी संस्कृ्ति को लेकर और इन पँक्तिओं मे एक जवलन्त समस्या
    कि दाढ़ी बनाने वाला
    अदना सा यह ब्लेड
    यदि ठीक से
    डिस्पोज़ ना हो तो
    कितनो को आहात कर देगा
    साथ ही
    कूड़ा उठाने वाले का रक्त रंजित हाथ
    कूड़े घर में आवारा घूमती गाय का खून से सना थूथना
    सिर्फ आहत ही नही करता कई गम्भीर बीमारिओं को भी जन्म देता है।
    दिल को छू गयी आपकी रचना। शुभकामनायें।

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  22. आपकी संवेदनाओं को साधुवाद. प्रखर चित्रण तो है ही, सोच की उर्वरता भी है . बनाये रखें.

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  23. दाढ़ी बनाते हुए
    घायल होने से लगता है
    बची है संवेदना


    भाई वाह, लाजवाब कर दिया...... वैसे जज्बात तो हमारे भी कुछ इस तरह थे, पर बाबा की लंठई ने सब गडबड कर दिया.

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