शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

संक्रमित समय है यह

समय है यह
मोटिवेशन का
प्रेरित होने का
अपना आदर्श बनाने का

समय है यह
महाभारत में युद्ध से पूर्व
अर्जुन का कृष्ण के चरणों में झुके चित्र को
अपने बैठक कक्ष में  लगाने का
सात दिनों में सफलता, आसमान को छूने
सपनो को हकीकत बनाने जैसी प्रेरित करने वाली
पुस्तकों के साथ
तरह तरह के शब्दकोशों और
संदर्भग्रंथों के बीच
प्रेमचंद के सम्पूर्ण रचना संसार को
सजिल्द शेल्फ में सजा कर रखने का .

समय है यह
बच्चों को प्रथम डेटिंग पर जाने से पूर्व
जरुरी 'टिप्स ' देने का

एक इअर फोन के दो सिरों से
माँ और बेटी को एक साथ
साल की सबसे सफल रीमिक्स वाला
मस्त गीत सुनने का
सुनहरे परदे पर रीटेक के बाद रीटेक देकर
उत्पन्न किये गए दृश्यों और संवेदनाओं से
प्रेरित होने का
उन छद्म किरदारों को अपना आदर्श बनाने का
अपने स्कूली सर्टिफिकेट के बीच
रखने का उनके आटोग्राफ

समय है यह
पर्यावरण और
अन्य संवेदनशील मुद्दों पर
सम्मलेन और कार्यशालाओं में
तीसरी दुनिया के तीसरे दर्जे के नागरिको को
दुनिया पर बोझ साबित करने का
जबकि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में
सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण (एस एच ई ) नीति के अनुपालन पर
स्टेकधारकों, नीतिनिर्धारकों और मीडिया के समक्ष
विश्वस्तरीय कार्पोरेट फिल्म के भव्य प्रदर्शन का

समय है यह
ऊंची  अट्टालिकाओं की सेवा में जुटे
उन्ही की स्याह परछाई  मे उगी झुग्गिओ को
हटाने के लिये पूरे तंत्र  के बीच
अदभुत सामंजस्य बिठाने का
और कैमरों के फ्लैश के बीच
उसी झुग्गी से एक लड़की को चुन
शहर के सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय में 

करवाने का नामांकन

यह समय है
आँखें बंद कर
शुतुरमुर्ग हो जाने का

या फिर चील, बाज़ की तरह
विलुप्त हो जाने का

संक्रमित समय है यह.




(यह कविता कुछ दिनों पहले अपनी माटी वेब मंच पर प्रकाशित हुई थी.. लेकिन  अब लगा  कि कुछ अधूरी है कविता ... संक्रमित समय का व्यापक प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया.. सो  कविता को पुनः लिख कर अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूँ. भाई मानिक (संपादक, अपनी माटी) अन्यथा तो नहीं लेंगे! )

32 टिप्‍पणियां:

  1. यही सोच रही थी पहले पढी है………………समय के माध्यम से छोटी छोटी बातो पर ध्यान देने की सूक्ष्मता ही इस कविता को इसकी ऊंचाइयो पर पहुंचाती है……………समय तो हमे बहुत कुछ कहता है मगर हम ध्यान कहाँ देते है और उन पर ध्यान देने को प्रेरित करती है।

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  2. यह समय है फरेब के कारोबार का .यह समय है झूठ के पदस्थ होने का 'यह समय साहित्य के सजावटी सामान में तब्दील हो जाने का .जिन्दा रहना हो तिलचिट्टा बनना ही होगा .
    शानदार कविता है .पढ़ते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं .

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  3. यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का
    bilkul ... samay ko benakab ker diya

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  4. अरुणजी,
    कविता में व्यंग्य तो तीक्ष्ण है. सत्य भी है किन्तु मुझे कुछ काव्यत्व की कमी लगी. आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी. धन्यवाद !!

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  5. आज का समय सच ही संक्रमित हो गया है ..करारा व्यंग ..

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  6. एक इअर फोन के दो सिरों से
    माँ और बेटी को एक साथ
    साल की सबसे सफल रीमिक्स वाला
    मस्त गीत सुनने का...

    sach me aisa sankramit samay ....aapke jaise poet ke pen me hi sama sakta hai...!!

    itna karara vyangya..!!

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  7. सामयिक कविता के माध्यम से अच्छा सन्देश दिया है.

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  8. समय है यह
    महाभारत में युद्ध से पूर्व
    अर्जुन का कृष्ण के चरणों में झुके चित्र को
    अपने बैठक कक्ष में लगाने का

    samay ko samay ka aaina dikhati kavita !
    sundar prstiti !

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  9. बिलकुल सही यही समय है पांचजन्य बजने का
    बहुत बढ़िया कविता

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  10. यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का

    संक्रमित समय है यह.

    व्यंग्य तो तीक्ष्ण है, किन्तु सच है, जी हाँ सत्य कहा है आपने, ये संक्रमण का समय है.....

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  11. बदलती दुनिया के हमकदम मुसाफिरों का समय, हमेशा की तरह आज भी.

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  12. यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का

    संक्रमित समय है यह.
    teekha vyang hai aaj ke badlav par jo itna swarthpark ho gaya hai....

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  13. यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का

    बहुत ही तीक्ष्ण व्यंग्य किया है,इस सामयिक कविता के माध्यम से

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  14. .

    यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का...

    wow ! I'm loving the sarcastic tone in this creation .

    .

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  15. समय वाकई ऐसा हो चला है .
    धारदार व्यंग .

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  16. सचमुच संक्रमण का काल है यह.. किंतु इस संक्रमण की सकारात्मकता पर अवश्य प्रश्न चिह्न लगा है... अरुण जी, आपकी रचनाएँ वैसे भी कविता के व्याकरण के स्थापित मानदण्डों को तोड़कर एक अलग ही मानदण्ड स्थापित करती है... यह भी ऐसा ही एक मील का पत्थर है!!

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  17. इस कविता के माध्‍यम से कवि ने बौद्धिक जगत की दशा-दिशा पर पैना कटाक्ष किया है ।

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  18. यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का
    संक्रमित समय है यह.

    सच कहा आपने ...

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  19. यह कविता हर व्यक्ति को उसके अंतर्मन में झाँकने के लिये विवश करती है...

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  20. इस कविता में कविता कम और बौद्धिक वाग्-विलास ज्‍यादा है । इस कविता के माध्‍यम से कवि ने बौद्धिक जगत की दशा-दिशा पर पैना कटाक्ष किया है ।

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  21. क्या कहा जाय....
    ला जवाब कर देने वाली रचना...हमेशा की तरह..

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  22. @मनोज सर
    धन्यवाद आपका कि आपने स्पष्ट रूप से कहा कि कविता कम है यह... लिखने के बाद मुझे स्वयं भी यह एक स्टेटमेंट अधिक और कविता कम लग रही थी...

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  23. जबरदस्त कल्पना शक्ति और शब्द सामर्थ्य पायी है अरुण आपने ! ! ब्लॉग जगत के संक्रामक काल में तुम्हारी उपस्थिति सुखद है हार्दिक शुभकामनायें !

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  24. रचना अब और भी मारक बन पड़ी है. अपनी माटी पर छपी रचनाओं पर हमेशा अधिकार रचनाकार का ही रहता है.बुरा मान के कहाँ जाएंगे

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  25. यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का
    कई अर्थों को समेटे हुए अच्छी लगी , बधाई

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  26. यह समय है
    आँखें बंद कर
    शुतुरमुर्ग हो जाने का
    या फिर चील, बाज़ की तरह
    विलुप्त हो जाने का

    संक्रमित समय है यह.

    आज के समय की सही व्याख्या की, काफी सूक्ष्म विवरणात्मक पोस्ट. बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिए.

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  27. समय को पहचानने के लिए motivate करती हुई सुन्दर कविता .वैसे:-
    "motivtion is to arouse a person from within". आपकी कविता motivate करने में सहायक साबित होगी ऐसी उम्मीद कर सकता हूँ.

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  28. तीक्ष्ण व्यंग्य कविता के माध्यम से ....बहुत बढ़िया

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