प्रिये
मैं छोडू राम
लिखना चाहता था
एक प्रेम पत्र
लेकिन
सदियों तक
अक्षर ज्ञान से
रहा जो वंचित
कैसे लिखता
कैसे कहता
तुम सबसे अच्छी तब लगती हो
जब पाथती हो उपले
उपले जब चूल्हे में जलते हैं
अंगारों से लाल तुम्हारा चेहरा
बड़ा दीप्त लगता है
अष्टमी की रात आरती के बाद
भगवती की तरह
अब कहता हूं
मैं तुम्हारा छोडू राम
जब छूट चुका है
गाँव, उपले
और चूल्हा
लिखना चाहता हूं कि
जब मांगे थे तुमने
आम के नए टिकोले
मन हुआ था
दे दूं तुम्हे संसार
फिर लगा
मेरे संसार में है ही क्या
कर्जों का बोझ
कुचला हुआ मान सम्मान
आज फिर
मन कर रहा है
दे दूं तुम्हें
बस वही आम के टिकोले
खट्टे खट्टे
लेकिन वो दुनिया तो
पीछे छूट गई है
जब कच्चे बांस की
लपलपाती छड़ी से
उधेडी जाती थी
मेरी पीठ
मन करता था
जोर जोर से लूं
तुम्हारा नाम
लगता था
चोट का कम होगा असर
लिख देना चाहता हूँ
यह भ्रम भी
एक बात और कहूँ
कि मेरी माँ और तुम में
थी ढेर सारी समानताएं
मैं कभी तुमको बता नहीं पाया
क्योंकि लगता था
जब आओगी
मेरे आँगन तुम
खुद ही जान जाओगी
लेकिन तुम आई नहीं
सो मैंने लिख दिया है यहाँ
बुरा मत मानना
हाँ आज यह भी
कहना चाहता हूँ कि
मुझे बहुत बुरा लगा था
उस दिन
जब मैंने अपने ऊपर
जब मैंने अपने ऊपर
पड़ने वाले चाबुक को
पकड़ लिया था और मिला ली थी आँखें
पकड़ लिया था और मिला ली थी आँखें
सदियों की दासता के विरुद्ध
लगा था मेरे कंधो से
झूल जाओगी तुम
नहीं हुआ ऐसा
फिर मैं भी भूल गया
नहीं हुआ ऐसा
फिर मैं भी भूल गया
पहली बार रोया था
उस दिन ही
ना उस से पहले
ना उसके बाद
कभी जो
पढना मेरे प्रेम पत्र को
जरुर देना उत्तर
कहना कैसा लगा था उस दिन
जब पहली बार
हवा में लहराई थी
मेरी मुट्ठी जिसे बाद में
दिया गया था कुचल
जरुर लिखना
ना उस से पहले
ना उसके बाद
कभी जो
पढना मेरे प्रेम पत्र को
जरुर देना उत्तर
कहना कैसा लगा था उस दिन
जब पहली बार
हवा में लहराई थी
मेरी मुट्ठी जिसे बाद में
दिया गया था कुचल
जरुर लिखना
अपने उत्तर में
किसे कहते हैं प्रेम
(आदरणीय पाठक मित्र !
मेरी यह कविता वास्तव में मानवीय प्रेम और सामाजिक बदलाव के प्रति प्रेम की कविता है... समाज के बीच को खाई उपजी थी या हो है अब भी उस पर टिप्पणी करती कविता है... छोडू राम आज भी समाज के हाशिये पर.. आज भी व्यवस्था से आँखे मिलाने पर आंखे निकल ली जाती है... मुट्ठी भींचने पर कुछ दी जाती है मुट्ठी... काट ली जाती है उंगलियाँ ताकि कभी मुट्ठी बने ही ना.... कविता को इस सन्दर्भ में पढ़ें तो कविता सार्थक हो पायेगी... सादर)
(आदरणीय पाठक मित्र !
मेरी यह कविता वास्तव में मानवीय प्रेम और सामाजिक बदलाव के प्रति प्रेम की कविता है... समाज के बीच को खाई उपजी थी या हो है अब भी उस पर टिप्पणी करती कविता है... छोडू राम आज भी समाज के हाशिये पर.. आज भी व्यवस्था से आँखे मिलाने पर आंखे निकल ली जाती है... मुट्ठी भींचने पर कुछ दी जाती है मुट्ठी... काट ली जाती है उंगलियाँ ताकि कभी मुट्ठी बने ही ना.... कविता को इस सन्दर्भ में पढ़ें तो कविता सार्थक हो पायेगी... सादर)
एक बात और कहूँ
जवाब देंहटाएंकि मेरी माँ और तुम में
थी ढेर सारी समानताएं
मैं कभी तुमको बता नहीं पाया
क्योंकि लगता था
जब आओगी
मेरे आँगन तुम
खुद ही जान जाओगी
लेकिन तुम आई नहीं
सो मैंने लिख दिया है यहाँ
बुरा मत मानना
प्यार का अलग ही रूप ......निश्छल प्रेम कि अनुभूति का एहसास करवा दिया आपने arun ......बहुत खूब
एक बात और कहूँ
जवाब देंहटाएंकि मेरी माँ और तुम में
थी ढेर सारी समानताएं
मैं कभी तुमको बता नहीं पाया
क्योंकि लगता था
जब आओगी
मेरे आँगन तुम
खुद ही जान जाओगी
लेकिन तुम आई नहीं
सो मैंने लिख दिया है यहाँ
बुरा मत मानना.........
पवित्र प्रेम और सम्रर्पण की सुन्दर विवेचना..... बहुत सुन्दर रचना....
कैसे कहता
जवाब देंहटाएंतुम सबसे अच्छी तब लगती हो
जब पाथती हो उपले
उपले जब चूल्हे में जलते हैं
अंगारों से लाल तुम्हारा चेहरा
बड़ा दीप्त लगता है
अष्टमी की रात आरती के बाद
भगवती की तरह
अब कहता हूं
मैं तुम्हारा छोडू राम
जब छूट चुका है
गाँव, उपले
और चूल्हा
chaliye ab kaha to... bahut hi nishchhal prem
लिखना चाहता हूं कि
जवाब देंहटाएंजब मांगे थे तुमने
आम के नए टिकोले
मन हुआ था
दे दूं तुम्हे संसार
Arun ji bahut sundarta ke sath prastut kiya hai ek hrdy ki tooti hui bhavnaon ko .aabhar .
kya bat hai arun ji ,chhodoo ram kee sabhi abhivyaktiyan sangrahniy hoti hain fir ye kahe ke chhodun ram.
जवाब देंहटाएंबस जो आपने प्रस्तुत किया है उसे ही कहते है प्रेम्…………सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंkya baat hai choduram ki abhibyaktiyaan itani sambedansheel hoti hai ki dil bhar aata hai toote hue dil ke dard ko kitane anokhe dhang se ujaager kiya apni rachanaa ke maadhyam se .badhaai sweekaren.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog.thanks
प्रेम भी छोटी छोटी घटनाओं में अपार छिपा होता है, बस यह कविता पढ़ ले कोई।
जवाब देंहटाएंBahut bhavuk,nazuk kavita hai!
जवाब देंहटाएंप्रेम पना चाहो तो यूँ ही छोटी छोटी चीज़ों में मिल जाता है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.
बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
जवाब देंहटाएंबदल रहे समय का स्पष्ट प्रभाव प्रेम की अवधारणा पर देखने को मिलता है। एक ओर जहां नैतिकताओं और मर्यादाओं से लुकाछिपी है तो दूसरी ओर स्वच्छंदताओं के लिए नया संसार बनाने का प्रयास है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता में प्रेम है तो सिर्फ़ घटना बनकर नहीं है। परिवर्तन की बात है तो वह सिर्फ़ रस्मी जोश तक महदूद नहीं है। ये सब कुछ आपकी कविता में बुनियादी सवालों से टकराते हुए है।
आपकी लेखनी से जो निकलता है वह दिल और दिमाग के बीच रस्साकसी पैदा करता है।
आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक।
सामाजिक सरोकारों, बदलती परिस्थितियाँ और मानवीय मूल्यों के साथ प्रेम की जुगलबंदी एक अत्यंत दुर्लभ समीकरण है. हृदयस्पर्शी रचना, मार्मिक परन्तु सच की आवाज.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिए बधाई.
Arun Chandra Roy ji,
जवाब देंहटाएंWow! You are a wonderful writer and so inspiring and encouraging!
Have a blessed and wonderful day!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर ..भावपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंकैसे कहता
जवाब देंहटाएंतुम सबसे अच्छी तब लगती हो
जब पाथती हो उपले
उपले जब चूल्हे में जलते हैं
अंगारों से लाल तुम्हारा चेहरा
बड़ा दीप्त लगता है
अष्टमी की रात आरती के बाद
भगवती की तरह
अब कहता हूं
मैं तुम्हारा छोडू राम
जब छूट चुका है
गाँव, उपले
और चूल्हा
लिखना चाहता हूं कि
जब मांगे थे तुमने
आम के नए टिकोले
मन हुआ था
दे दूं तुम्हे संसार
फिर लगा
मेरे संसार में है ही क्या
कर्जों का बोझ
कुचला हुआ मान सम्मान
आज फिर
मन कर रहा है
दे दूं तुम्हें
बस वही आम के टिकोले
खट्टे खट्टे
लेकिन वो दुनिया तो
पीछे छूट गई है
अनुपम... बधाई
बहुत खूब ... प्यार के अन्छुवे पहलू को छुवा है आपने ... बहुत कमाल के शब्द हैं ...
जवाब देंहटाएंकितने कोमल अहसास..प्रेम को एक नयी अभिव्यक्ति दी है आपके शब्दों ने..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंis bhaav ki kavitaayein pehli baar padhi hai aapne blog par ..man moh liyaa
जवाब देंहटाएंDhanya hai aap aur aapki kavita
जवाब देंहटाएंaabhar
बहुत बारीकी और महीनता से दर्शन कायें हैं...अद्भुत व्याख्या....कहाँ न मिल जाये प्रेम...वाह!! बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पवित्र रचना
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