लिफाफे तक
किताब से लेकर
कैलेण्डर तक
जो कुछ भी छपता है
अपने अंतिम आकर्षक रूप में
है आता डाईकटिंग मशीन से
गुज़र कर ही
भारी-भरकम मशीन
मशीन का यांत्रिक शोर
और इसके दो पाटों के बीच
कुछ इंचो और पलों का अंतर
एक पाट पर डाई
दूसरे पाट पर ब्लेड
इन सबके बीच तेज़ी से चलने वाले हाथ
अदभुत समन्वय के साथ
मशीन और मानव के तालमेल का
अदभुत नमूना
और कर रहा है कोई और नहीं
घर गाँव छोड़ कर आया
वह बारह साल का बच्चा
उम्र पूछने पर पहली बार में
सरकार की नीतियों से डर कर
करता है जोर से घोषणा
'अठारह का हूँ मैं'
डाई कटिंग मशीन से साथ
जागता है वह
सोता है मशीन के साथ ही
कभी अठारह घंटे के बाद तो कभी
चौबीस घंटे तक लगातार
थकता है वह तभी
जब थकती है मशीन
एक घंटा जो बिताया
इस डाई कटिंग मशीन के साथ
देखा मशीन का मानवीकरण
और मानव का मशीनीकरण
बिना बोले, बिना रुके
दो पाटों के बीच नज़र
किसी तपस्वी से कम नहीं साधना
चूके तो हाथ गया मशीन के बीच
और फिर जीवन भर के लिए
अपाहिज बिना किसी मुआवजे के
जब थकती है मशीन
वह भी लेता है एक लम्बी अंगडाई
और देख आता है अपने माथे तक लटके केशों को
मशीन के सामने टंगे २ इंच के गोल शीशे में
अचानक दिख जाता है उसे
माँ का गोल चेहरा
वह उदास नहीं होता
दुगुनी ऊर्जा से वापिस आता है
मशीन पर एक और लम्बी पारी के लिए
बारह साल में यह क्षमता
शारीरिक नहीं
लगती है कुछ मानसिक सी
किसी ज़ज्बे से भरी
सौ प्रतिशत से कम परफेक्शन
इस उद्योग को मंजूर नहीं
इसके लिए रखनी होती है नज़र
कंप्यूटर से तेज़
करना होता है समन्वय
पल के सौंवे हिस्से से भी
और फिर प्रति सैकड़े के हिसाब से
जब मिलनी होती है दिहाड़ी
एक युद्ध होता है
डाई कटिंग मशीन और उसके बीच
क्योंकि पिता को
बीज के लिए चाहिए पैसे
माँ को लेनी है एक गाय
गोवर्धन पूजा से पहले
खरीदनी है कुछ ज़मीन
रोपने हैं उसमे आम की कई कलमी किस्मे
अगले आम से पहले
सब सपने निखरेंगे
इसी डाई कटिंग मशीन से गुज़र कर
बहुत बड़ा लगा
बारह साल का वह बच्चा
डाई कटिंग मशीन पर
एक घंटे क्या रहा उसके साथ
गुज़र गया मैं भी
कई सपनो से होकर
कुछ उसके सपने
कुछ मेरे
अरुण जी मैं तो आपका मुरीद हो गया हूँ जी......बहुत पहले स्कूल में एक कहानी पढ़ी थी जब एक लेखक बाल कटाने के लिए दुकान पर जाता है वहां वह नाई को एक मजदूर के बाल काटते पूरी तन्मयता से लिप्त पता है उस नाई के लिए एक मजदूर और एक बाबू में कोई फर्क नहीं.......आज आपकी इस पोस्ट को पढ़कर वही याद आ गया..........आप इस ब्लॉगजगत में कुछ अलग, कुछ नया लिख रहे हैं......मेरा सलाम है आपको|
जवाब देंहटाएंजीवन की जद्दो-जहद जो करवाए कम है...डाई कटिंग मशीन ही नहीं और भी बहुत से जोखिम से भरपूर काम करने पड़ते हैं जीवन यापन के लिए...जहाँ चूक की गुंजाइश नहीं होती...इस पीड़ा को बहुत मार्मिक शब्द दिए हैं आपने...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत बड़ा लगा
जवाब देंहटाएंबारह साल का वह बच्चा
डाई कटिंग मशीन पर
एक घंटे क्या रहा उसके साथ
गुज़र गया मैं भी
कई सपनो से होकर
कुछ उसके सपने
कुछ मेरे
sateek prastuti.
आपकी रचनाओं को पढ़कर ठीक से समझ सकूँ यही बहुत बड़ी बात है - टिप्पणी करने की हिम्मत नहीं होती - आभार
जवाब देंहटाएंनोएडा में हर जगह वो बोर्ड लगा दिखता है कि यहाँ 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को रोज़गार पर नहीं रखा जाता... मगर कभी शाम को शिफ्ट खतम होते समय देखिये तो दिखेगा एक 22 साल का नौजवान जिसके मुँह से माँ के दूध की महँक तक नहीं गई, मूँछें अभी नहीं आईं.. मुश्किल से यकीन होता है कि यह 22 का है या 12 का..
जवाब देंहटाएंअब तो वैसे भी ऑफसेट का ज़माना आ गया है.. मगर फिर भी 12 वर्ष के उस बूढे का पोर्ट्रेट जो आपने खींचा है, देखकर याद आ गया वो सब जो आए दिन नज़रों से गुज़रता है:
सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है.
18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को तम्बाकू उत्पाद बेचना अपराध है.
.
दिल को छूती है अरुण जी आपकी यह कविता!!!
wah re die cutting machine aaj tu bhi nahi bach paya hamare ROY sahab ke najro se ..tera bhi manvikaran ho hi gaya...:)
जवाब देंहटाएंab tu bhi jaldi se sans lekar dikha hi de:)
hahhahaahhahaahahha
simply great!!
क्षमा अरुण भाई,
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर पढ़ाने का अवसर मिला है और आपकी कविता ने जो कहानी कही है, वो परदे में छिपा हुआ एक सच है. जिसे कानून ने तो छुपाने के लिए परदे लगा दिए हैं लेकिन प्रेमचंद के परदे के पीछे कि कहानी की तरह से हकीकत कुछ और है.
बहुत गहरी बात कही है अपने.
बहुत बड़ा लगा
जवाब देंहटाएंबारह साल का वह बच्चा
डाई कटिंग मशीन पर
एक घंटे क्या रहा उसके साथ
गुज़र गया मैं भी
कई सपनो से होकर
कुछ उसके सपने
कुछ मेरे
यह एक कड़ुवा सच है ...न जाने कितने ही बच्चे ऐसे होंगे...जो उम्र में कम लेकिन समय से पहले बड़े हो गए होंगे....
बड़ी गहरी बाते कही आपने।
जवाब देंहटाएंइसे गद्य की तरह पढ़ना अधिक भा रहा है.
जवाब देंहटाएंएक कटु सत्य का बहुत मार्मिक चित्रण..
जवाब देंहटाएंगहरी मार्मिक अनुभूतियों से भरी रचना. कितनी पारिवारिक मजबूरियां होंगी उस बच्चे की जो उसे अपनी उम्र बारह की जगह अट्ठारह कहने पर मजबूर करती होंगी.
जवाब देंहटाएंबाल श्रम पर एक सार्थक रचना....
जवाब देंहटाएंपता नहीं अपने कितने सपने गिरवी रख कर...माता-पिता और अपने घर के सपने सच करने में लगे रहते हैं...ये अट्ठारह से कम उम्र के बच्चे...
मर्मस्पर्शी कविता
वाक़ई ग़रीबी और हालात कितनी जल्दी बचपन छीन कर बच्चे के नन्हे कंधों पर ज़िम्मेदारी का बोझ डाल देते है
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना !!
एक मर्मस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंवाकई सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंइस डाईकटिंग मशीन का ज़वाब नहीं!
ये नन्हें श्रमिक कलंक हैं मानवता के विकास के लिए ! जागरूकता के अभाव में क्या हो पायेगा ? हम पढ़ते हैं ...देखते हैं और आगे बढ़ जाते हैं ! बहुत प्यारी रचना है अरुण ...शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंभावनात्मक , कुछ मार्मिक एहसास। काम करते हुये छोटे बच्चों के देख कर जो अनुभूतियाँ उमड सकती हैं उन्हें शब्दों मे बान्धना मुश्किल होता है आपने नये बिम्बों से रचना को तराशा। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंएक खुले नंगे जग जाहिर सच को फिर एक नई तरह से पेश किया है. अच्छा लगा उसे इस तरह से पढ़ना और आपका उसके दर्द को महसूस करना और हमें करवाना
जवाब देंहटाएंमशीन को महेनत कश इंसान से परिभाषति कर दिया आपने ...बहुत खूब ऐसी सोच हर किसी की नहीं हो सकती
जवाब देंहटाएंक्यूकि मशीन कभी नहीं रूकती ..जब तक वो खराब ना हो जाये .........आभार
--
इस कविता मे आपने निशब्द कर दिया अरुण जी……………ऐसा लगा जैसे सब आँखो के आगे घटित हो रहा हो…………बेहद मर्मस्पर्शी और संवेदनशील्…………॥
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंgahri w marmik chitran kiya hai aapne... bahut hi achhci lagi aapki yah kavita.
जवाब देंहटाएंयह रचना पढते हुए लगा की दृश्य सामने चल रहा है ... बहुत मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बड़ा लगा
जवाब देंहटाएंबारह साल का वह बच्चा
डाई कटिंग मशीन पर
एक घंटे क्या रहा उसके साथ
गुज़र गया मैं भी
कई सपनो से होकर
कुछ उसके सपने
कुछ मेरे
यह कविता बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती हुई
सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
आधुनिक विकास की भागीदार ये मशीनें न जाने कितनी खुशहाल ज़िंदगियों को लील भी चुकी हैं|
जवाब देंहटाएंमशीन और मानव के तालमेल का
जवाब देंहटाएंअदभुत नमूना
और कर रहा है कोई और नहीं
घर गाँव छोड़ कर आया
वह बारह साल का बच्चा
उम्र पूछने पर पहली बार में
सरकार की नीतियों से डर कर
करता है जोर से घोषणा
'अठारह का हूँ मैं'
-......................
देखा मशीन का मानवीकरण
और मानव का मशीनीकरण
बिना बोले, बिना रुके
दो पाटों के बीच नज़र
किसी तपस्वी से कम नहीं साधना
.....................
माँ का गोल चेहरा
वह उदास नहीं होता
दुगुनी ऊर्जा से वापिस आता है
मशीन पर एक और लम्बी पारी के लिए
बारह साल में यह क्षमता
शारीरिक नहीं
लगती है कुछ मानसिक सी
किसी ज़ज्बे से भरी
......................
बहुत बड़ा लगा
बारह साल का वह बच्चा
डाई कटिंग मशीन पर
एक घंटे क्या रहा उसके साथ
गुज़र गया मैं भी
कई सपनो से होकर
कुछ उसके सपने
कुछ मेरे
रॉय साहब!
आपकी उपरोक्त रचना अन्तस्थल को छू गयी। अपनी करुणा और व्यथा को आपने जिस प्रकार शब्दों में उतारा है उससे सम्पूर्न दृश्य साक्षात् हो उठता है।
कहते हैं कि कवि को करुणा से मुक्ति कविता रचकर होती है जैसे वाल्मीकि को हुई थी और उस कविता की मुक्ति पाठकों, आलोचकों, भावकोजनों, प्रेक्षकों और सहृदयों द्वारा पड़ी जाअने से होती है।
आपकी रचनाअ ने हमें भी करुणार्द्र कर दिा .....अब बताइये हम अपनी करुणा से मुक्ति पाने किस धाम जायें।
gahan vedna se bhari hui dil ko chooti rachna.
जवाब देंहटाएंवाह अरुण जी.. बेहद ही सरलता से आपने इस उद्योग में जगजाहिर पर फिर भी छुपी हुई बात को कहा है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा...
क्या कहूं इतनी हृदयस्पर्शी रचना पर,
जवाब देंहटाएंसच ही कहा है किसी ने ज़िन्दगी फूलों की सेज नहीं,काँटों का सागर है,
बहुत सुंदर रचना!!
एक कटु सत्य का बहुत मार्मिक चित्रण| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआँखों में आसूँ आ गए हैं अरुण जी.
जवाब देंहटाएंशब्द नहीं है मेरे पास कुछ कहने के लिए.
इस अनुपम अभिव्यक्ति में आपके निश्छल ,कोमल
संवेदनशील हृदय के दर्शन कर रहा हूँ.
हृदय से बहुत बहुत आभार आपका.
यूँ जीना आसान नहीं है....उम्दा रचना सत्य अभिव्यक्त करती...
जवाब देंहटाएंबहुत बड़ा लगा
जवाब देंहटाएंबारह साल का वह बच्चा
डाई कटिंग मशीन पर
एक घंटे क्या रहा उसके साथ
गुज़र गया मैं भी
कई सपनो से होकर
कुछ उसके सपने
कुछ मेरे
sochne mahsoos karne par majboor karti rachna.....bahut achhi lagi....
मशीन और मानव के तालमेल का
जवाब देंहटाएंअदभुत नमूना
और कर रहा है कोई और नहीं
घर गाँव छोड़ कर आया
वह बारह साल का बच्चा
उम्र पूछने पर पहली बार में
सरकार की नीतियों से डर कर
करता है जोर से घोषणा
'अठारह का हूँ मैं'
....
ये हैं हमारे अरुण बाबू के सरोकार ...जहाँ भी जाते हैं...जिस रंग में भी रगते हैं...इक टीस निकल के रख़ देते हैं हम सब के सामने बधाई हो भाई मेरे !