ठीक है
जो टूट गया है
खिड़की का शीशा
चली आती हैगोरैए कभी कभी
बैठ जाती हैं
किताबो के आलमीरे पर
किताबें खुश हो जाती हैंकवितायेँ कसमसाने लगती हैं
पढ़े जाने को
कहानियों के भीतर
एक लहर उठ जाती है
आत्मकथाओं की आत्माएं
फिर जीवित हो उठती हैं
गोरैए की चहक से
गौरैया उड़कर
बंद पंखे के डैने पर
बैठ जाती है
डैने हिल उठते हैं
गौरैया डर जाती है
जैसे डरती हैं लडकियां
अचानक कुछ हिलने से
फिर आश्वस्त हो
गोरैया फुर्सत में बैठ जाती हैं
पंखे का डैना
उसकी कानो में कुछ कहता है
गोरैया हंसती है
हंसती हुई गोरैया अच्छी लगती है
इस बीच
पसीने से लथपथ हो उठता हूँ मैं
बहुत दिनों बाद
आया है इस तरह पसीना
पसीने से मैं
कुछ बरस पीछे चला जाता हूँ
याद आता है
मेरे शहर का रिक्शेवाला
लेकिन उस से पहले
याद आती है माँ
पसीने से तर छौंकती सब्जी
बेलती रोटी
रिक्शेवाला कुछ सुपरमैन सा लगता है
लेकिन नहीं देखा कभी
किसी सुपरमैन को आते पसीना
गोरैया उड़कर चली जाना चाहती है
उसे डर है
कहीं बदल ना दिया जाये
खिड़की का यह टूटा शीशा
गोरैया लौट जाती है
कवितायेँ सो जाती हैं
कहानियां उदास हो जाती हैं
आत्मकथाएं मृत हो जाती हैं
आलमीरे में पड़े पड़े
हाँ एक इंतजार छोड़ जाती है
गोरैया
जो आई थी खिड़की के
टूटे हुए शीशे से
आज सब खिड़कियाँ बंद है
to is gauraiyya ko aane deejiye na ...kavitaayen kahaaniyan jag jaayengee ...badhiya
जवाब देंहटाएंटूटने से राहें बनती हैं, बनने से टूट जाती हैं।
जवाब देंहटाएंकमाल …………गज़ब का गहन चिन्तन करके लिखा है।
जवाब देंहटाएंpyaari gauraiyaa aur aapki drishti ....bahut badhiyaa
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुखद है यह आगमन, गौरैया का.. जाग जाती कविताओं का.. और देखिये ना कैसे दाखिल हो गयी उस टूटे शीशे से उस रिक्शे वाले के पसीने की गंध!! शीतल बयार् सी कविता!!
जवाब देंहटाएंइतनी बारीकी से देखने, परखने और एक प्रभावशाली रचना का रूप देने की आपकी अद्भुत शक्ति को सादर प्रणाम - जिनके सही मूल्यांकन के लिए भी वही गुण चाहिए - आभार
जवाब देंहटाएंNice thoughts. Brilliantly woven...Kudos.!Nice thoughts. Brilliantly woven...Kudos.!
जवाब देंहटाएंआज सब खिड़कियाँ बंद है
जवाब देंहटाएंAah!
हंसती हुई गौरैया अच्छी लगती है
जवाब देंहटाएं...
जिस गोरैये को हंसते हुए आपके कवि मन ने देखा, उसकी हंसी बरकरार रहे, कोई छीन न ले, यही कामना है।
रहने दीजिए शीशे को यूँ ही एक सजीव वातावरण तों मिलता है हँसती हुई गौरैया जिसकी चहक से आत्माएं जाग उठी हैं उसे यहीं आसपास रहने दीजिए
जवाब देंहटाएंarun ji...... haits off....behatrin....lajawab.
जवाब देंहटाएंक़िताबों कि आलमारी पर गौरैया - बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंaap ki nazar se duniyaa ko dekhnaa behad sukoon detaa hai
जवाब देंहटाएंwaah bahut samay baad yahaan lautaa. aanand ayaa.
जवाब देंहटाएंगौरैया डर जाती है
जवाब देंहटाएंजैसे डरती हैं लडकियां
अचानक कुछ हिलने से
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
हार्दिक शुभकामनायें !
आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंमैं समय हूँ ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
बहुत गहन चिंतन...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंमेरे शहर का रिक्शेवाला
जवाब देंहटाएंलेकिन उस से पहले
याद आती है माँ
पसीने से तर छौंकती सब्जी
बेलती रोटी
यादे अतीत की ..और माँ की वो छवि ...किसी भी रूप में प्यारी लगती है
गोरैया हंसती है
हंसती हुई गोरैया अच्छी लगती है
गोरैया....के माध्यम से खुद का अतीत याद करना .......छू गया मन को....बहुत खूब
--
आपकी कृतियाँ सदैव ही पठ्नोपरांत निःशब्दता की स्थिति में पहुंचा दिया करती हैं...
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ...
बेहद उम्दा रचना ... बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंwah......
जवाब देंहटाएंप्रभावी अभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ... गौरईया के लिए चिन्ता जायज़ है
जवाब देंहटाएंखिड़कियाँ बन्द होंगी तो गौरैया कहाँ से आ पायेगी.
जवाब देंहटाएंअत्यंत प्रभावी और भावनात्मक रचना
वास्तव में आजकल जैसी लोगों की जीवन शैली हो गयी है उसने हमें प्रकृति की खूबसूरती और उसकी अनुपम सौगातों से वंचित कर दिया है ! आपकी बेहद सुन्दर रचना ने बहुत प्रभावी तरीके से इस बात की ओर संकेत किया है ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील ... कितना एकाकी होना चाहते हैं हम ... सब दरवाजों को बंद कर के .. गौरैया के माध्यम से बहुत कुछ कह गयी रचना ...
जवाब देंहटाएंगौरैया का हंसना और कहानियों का उदास हो जाना एक संवेदनशील कविमन को ही दिख सकता है।
जवाब देंहटाएंठूंठ हो रही मानवीय संवेदना की ओर ध्यान आकर्षित कराती एक अच्छी कविता।
आज बरसात हो रही थी, इंसान जहाँ किसी शेड के नीचे या किसी ओट में खड़े थे वहीं एक छोटी सी गोरैया बड़ी शान से घास में ठुमक रही थी। मोटर साईकिल रोककर काफ़ी देर देखता रहा उसे, खिड़की थोड़ी सी खुल जाये तो किताबें तक जाग उठेंगी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अरुण जी।
गौरेया का हंसना ...
जवाब देंहटाएंकिताबों में कविताओं का आत्मकथाओं
का सजीव होना
कितनी गहनता से एक-एक पल
का
सजीव चित्रण किया है आपने इस अभिव्यक्ति में
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने, आभार ।
चली आती हैगोरैए कभी कभी
जवाब देंहटाएंबैठ जाती हैं
किताबो के आलमीरे पर
किताबें खुश हो जाती हैं
कवितायेँ कसमसाने लगती हैं
पढ़े जाने को
कहानियों के भीतर
एक लहर उठ जाती है
आत्मकथाओं की आत्माएं
फिर जीवित हो उठती हैं
गोरैए की चहक से...
...
मैं तो पाठन का अनद ले रहा हूँ...और इक गौरैया आकर ना जाने कब मेरे सामने फुदकने लगी मुझे पता ही नहि चला ...बहुत खूब भाई.