१.
पत्तों की थाली
कंकडों से भरा लाल मोटा भात
करेले का अचार
नदी का मटमैला पानी
और बन्दूक साथ
महुआ मेरा नाम,
खबर है कि
सरकार बना रही है
हमसे युद्ध की नीति
२.
महीनो में एक बार
माथे में तेल
चोटी में लाल फीता
हरा खाकी पहिरन
और कंधे पर लटकती बन्दूक
आँचल की तरह
महुआ का यौवन और प्यार
सुना है कि
सरकार तैयारी कर रही है
हमसे करने आँखें चार
३.
भूख से
मरी थी बहिन
विस्थापन से बाबा
मलेरिया से
मरी थी माँ
एनकाउन्टर में भाई
और कुपोषित रही
मैं महुआ
खबर है कि
सरकार जुटी है
लेने को लोहा मुझ से
४
अपने लोग
अपना गाँव
अपनी नदी
अपने खान
को कहना अपना
सिद्ध हुआ है
मेरा जुर्म
खबर है कि
सरकार के वकील तैयारी कर रहे हैं
हमसे लड़ने को मुकदमा
महुआ जैसी लडकियों पर जो सरकार की गलत नीतियों का शिकार हो जंगल की महुआ बन गयीं है ..उन पर बहुत अच्छी रचना ... विचारणीय
जवाब देंहटाएंशांति के लिये अंतिम विकल्प शायद युद्ध ही है
जवाब देंहटाएंमहुआ के माध्यम से सरकारी नीतियों और विसंगतियों पर करारा प्रहार
शायद ऐसी परस्थितियों पर ध्यान जाए जिससे महुआ जैसी लड़किया ऐसी राह पर चलने पर मजबूर हो जाती हैं. कोई इतनी आसानी से ऐसा मार्ग नहीं चुनता.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता के माध्यम से आपने एक गंभीर विषय को उठाया है. शुभकामनायें.
अनर्थ का हर हाल में विरोध होना ही चाहिए, समर्थन नहीं|
जवाब देंहटाएंछोटी छोटी चाह हमारी,
जवाब देंहटाएंनहीं युद्ध की राह हमारी।
wirodh zaroori hai...behtareen kshanikayein..
जवाब देंहटाएंपापा, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा...
जंगल में महुआ की क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएं--
पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
indinon rachnaaon me ek avyakt dukh mujhe nazar aata hai ...
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
भाई अरुण जी अद्भुत कविता के लिये आपको बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंपितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमहुआ की व्यथा से उपजी कविता उन परिस्थितियों को दर्शा रही हैं जो सीधे सादे लोगों को हथियार उठाने पर विवश करती हैं ...
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति !
बेहतरीन लगे लिखे हुए हर लफ्ज़
जवाब देंहटाएंमहुआ के माध्यम से बहुत सी आंचलिक समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाने का प्रयास लाजवाब है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति|
जवाब देंहटाएंनक्सलवाद पर संभवतः मेरे द्वारा पढ़ी जा सकी सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक .बधाई अरुणजी
जवाब देंहटाएंमहुवा की आवाज और दर्द को आपने बखूबी उकेरा है..बहुत गहरे से आपने उनका दर्द कविता से हम तक पहुचाया है.. आभार
जवाब देंहटाएंsunder vishleshan kiya hai mahua ka.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंआभार - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
उम्दा एवं बेहतरीन क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंचारो क्षणिकाएं बहुत अच्छी.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन क्षणिकाएं और समस्या की तरफ ध्यानाकर्षण भी बहुत सुन्दर तरीके से किया गया है
जवाब देंहटाएंझकझोरते हुए गंभीर प्रश्न पर विचार करने को बाध्य करती अति प्रभावशाली रचना....
जवाब देंहटाएंअपने लोग
जवाब देंहटाएंअपना गाँव
अपनी नदी
अपने खान
को कहना अपना
सिद्ध हुआ है
मेरा जुर्म
खबर है कि
सरकार के वकील तैयारी कर रहे हैं
हमसे लड़ने को मुकदमा
गहन भाव समेटे ...सशक्त रचना ।
भूख से
जवाब देंहटाएंमरी थी बहिन
विस्थापन से बाबा
मलेरिया से
मरी थी माँ
एनकाउन्टर में भाई
और कुपोषित रही
मैं महुआ
खबर है कि
सरकार जुटी है
लेने को लोहा मुझ से
....
महुआ कि चिंताओं में भी बराबर खड़ा रहने के लिए धन्यवाद भाई जी !