मंगलवार, 6 जुलाई 2010

बरसो बादल





बरसो
तुम जाकर
खेत खलिहान
बाग़ बगीचे
ताल तलैया
नदी नाले और
मचान

बरसो इतना
मन भर जाए
बीज में सारे
अंकुर आ जाए
पत्तो में
भर जाए प्राण
घर घर भर जाए
धन्य धान

थोडा बरसो
उनके भी
आँगन
आस में
बिछाए हैं जो
आँचल
उनकी आँखों का
पानी बन जाओ
चुनर उनकी
धानी कर आओ

कह देना उनसे
फिर आऊंगा
प्यासी धरती
ना रहने दूंगा

13 टिप्‍पणियां:

  1. so beautiful feelings.. regarding Arun sir we alwyas like ur meaningful poetry.. thanks a lot. keep it up sir ji !!

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  2. थोडा बरसो
    उनके भी
    आँगन
    आस में
    बिछाए हैं जो
    आँचल
    उनकी आँखों का
    पानी बन जाओ
    चुनर उनकी
    धानी कर आओ..........सुन लो न बादल, बरस भी जाओ

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  3. aapki paniktiyaan sun li amber ne..tabhi to dharti tript ho uthi :)

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  4. बहुत घहरा आह्वान है .... बादल तो बरसेंगें सब के आँगन में .. खेत और खलिहान में भी ... अच्छी रचना है ...

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  5. arun ji,
    atyant bhaawpurn sundar rachna. baadal chhaye megh barse, lekin itna bhi na ki upaj aur fasal nasht ho jaaye. bahut sundar lagi ye panktiyan...

    थोडा बरसो
    उनके भी
    आँगन
    आस में
    बिछाए हैं जो
    आँचल
    उनकी आँखों का
    पानी बन जाओ
    चुनर उनकी
    धानी कर आओ
    ati uttam rachna, badhai sweekaaren.

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  6. kya baat hai ...jarur apki pukar ka asar hai..barish ki fuhaar aaj jo idhar hai

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  7. इतने दिल से पुकारा तो लो बादल तो आ भी गए और बरस भी गए

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  8. मन के सामने चल चित्र रख दिया आपने

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