शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

रामलीला मैदान से लौटते हुए




हर साल
मेघनाद, कुम्भकरण
और रावण को
जलाने की परंपरा है
इस मैदान में
सरकार के नेतृत्व के हाथों
जब वास्तव में
होना है
रावण का अवसान
वही सरकार
आज फासले पर है
इस मैदान से


आज
कन्धा है
थोडा ऊँचा
मन पर बोझ है
थोडा कम
विश्वास है
थोडा दृढ
एक परिवर्तन जो
होने को है
इस मैदान से


सुना था
अहिंसा में है
अतुलनीय शक्ति
सुना था
हो सकती है
क्रांति
विश्वास फिर भी
था नहीं
किन्तु 

आज मुट्ठियाँ 
भिंच रही हैं

29 टिप्‍पणियां:

  1. आज
    कन्धा है
    थोडा ऊँचा
    मन पर बोझ है
    थोडा कम
    विश्वास है
    थोडा दृढ
    एक परिवर्तन जो
    होने को है
    इस मैदान से
    Bahut badhiya kaha!

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  2. किन्तु
    आज मुट्ठियाँ
    भिंच रही हैं

    तीनों क्षणिकाएँ गजब की अनुभूति दे रही हैं ... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  3. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!शुभकामनाएं.

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  4. लगता है कुछ और भी कहना चाह रहे है आप अरुण जी.

    किन्तु आज तो मुठ्ठियाँ भिंच रही हैं


    फिर कभी सही.

    सुन्दर् भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

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  5. सहज प्रवाह व विचार.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  6. सभी को प्रतीक्षा है अच्छे परिणाम की

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  7. सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं ।

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  8. बहुत सुन्दर अरुण जी..........शानदार लगी पोस्ट|

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  9. सुना था
    अहिंसा में है
    अतुलनीय शक्ति

    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  10. A totally inebriated Bollywood villain ranting and showering abuses from the dais by the side of the 'Second Gandhi'. Magsaysay shame former IPS lady's cheap dramatics later on. Gandhi caps on the heads of hooligans.Yes,Arun jee Ramlila Maidan is redifining non violent democratic protests.

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  11. आदरणीय शेखर जी
    हिंदी कविता पर विशुद्ध और एलिट अंग्रेजी में टिप्पणी खालिस कांग्रेसी लग रही है और कांग्रेस की घबराहट भी. किसी क्रांति में कोई मेधावी, कैरियर उन्मुख युवा नहीं आता .... उसे अपने स्व की फिक्र होती है... बदलाव इन्ही हुलिगंस से आती है.... इतिहास उदहारण है इसका..... जिस मुद्दे पर कम से कम बहस होने लगी है इन्ही ड्रेमेटिक्स के कारण है....बुद्धिजीवियों के लिए किरण बेदी मेगसेसे शेम हो सकती हैं... आम आदमी आज कम से कम ऐसा नहीं सोचता....
    सादर अरुण

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  12. अरुण जी मुट्ठियां जब भिंचती है तो पांचों उंगलियां एक साथ हो जाती हैं। बड़ी-छोटी सब उंगलियां।

    भाषा का स्वरूप ही बता रहा है कि वह India की बात कहना चाह रहे हैं, यहां रामलीला से सड़क तक भारत लड़ रहा है।

    ... और अंत में अरुण जी परिवर्तन होने को है, एक बार फिर अहिंसा की जीत होने वाली है। संसद में जो अभी तक जो बात हुई है वह तो वही संकेत दे रही है।

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. Let us atleast spare language in this wave of jingoism.Its in english becoz its part of an article.By the way here are some posers apropos the 'kranti':
    If it is that someone has to go on indefinite fast what is so sacrosanct about the Armed Forces (Special Powers) Act, 1958 that even a discussion on the issue of the conduct of the Armed Forces in Manipur is ruled out ,when someone else is on a hunger strike for more than 10 years?

    Are we sending a message that a civil society demand will be treated as so only if it (a) takes place in the capital (b) accepts background support from some heavy money bags (c) incites nationalist fervour to attract crowds (d) manages a not- so-mysterious connivance of the multi-national owned visual media (e) despises the democratic institutions (f) holds the nation and the parliament to ransom by issuing threats from public platforms which is beamed nationwide and worldwide live through television channels (g) unleashes anarchy and violence by giving an open call to gherao the residences of Prime Minister and Members of Parliament and (h) builds up and poses a fascist postulate like " Are you with us or against us?" before the society at large?

    Conclusion is open.

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  15. विश्वास है
    थोडा दृढ
    एक परिवर्तन जो
    होने को है
    इस मैदान से

    इस विश्वास की विजय हो....
    तीनो क्षणिकाएं सामयिक और सार्थक हैं..

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  16. सौरभ जी इस आन्दोलन को लेकर कई तरह की बाते हो रही हैं... कोई कार्पोरेट फंडिंग की बात कर रहा है तो कोई कह रहा है कि यू एस ए से फंडिग हो रही है... शुक्र है कि किसी ने यह नहीं कहा कि यह आई एस आई द्वारा प्रायोजित है.... पाकिस्तान का हाथ है इसमें.... क्या देश का आम आदमी भ्रष्टाचार से पीड़ित नहीं है... यदि इस पर कार्पोरेट फंडिंग द्वारा भी बात हो रही है तो क्या गलत है... कम से कम किसी आतंकवादी को छोड़ने के लिए तो नहीं कह रहे अन्ना..... मीडिया की छोडिये.... उसे तो खबर चाहिए... सनसनी चाहिए.... सो उसे मिल रहा है... लोकतान्त्रिक व्यवस्था कहाँ रहती है जब एक आदमी को एम्स में आपरेशन करने के लिए रिश्वत देना पड़ता है.... एक ऍफ़ आई आर के लिए पुलिस को पैसे देने पड़ते हैं.... शर्मीला चानू के दस वर्ष के अनशन का महत्व कतई कम नहीं हो जाता यदि अन्ना के अनशन को महत्व मिल रहा है.... शर्मीला चानू के साथ वही हो रहा है जो हम देश वासी पूर्वोत्तर के प्रति उपेक्षा का भाव रखते हैं.... निगमानंद पहले ही शहीद हो गए हैं.. यदि उनके संघर्ष को स्वर नहीं दे पाए तो यह हमारी कमी है.... लोकतंत्र की कमी है... मीडिया की कमी है... राजनीतिक उपेक्षा का उदहारण है...
    अन्ना का यह अनशन अहिंसात्मक संघर्ष का उदहारण अवश्य बनेगा.... बाकी हर खेत में फसल के साथ खर पतवार होते हैं.. जिन्हें वीड आउट करना हमारा ही काम है....

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  17. बहुत सुन्दर , सशक्त रचना , सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .

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  18. सभी क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर, खूबसूरत प्रस्तुति ......

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  19. तीनों लाजवाब ... आज इसी रामलीला मैदान से भष्टाचार मिटाने का बिगुल फूंक रहे हैं अन्ना ... कभी न कभी इसका रावण भी फूंका जायगा ...

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  20. सुना था
    अहिंसा में है
    अतुलनीय शक्ति

    सचमुच, अहिंसा में बहुत शक्ति है,
    इसका परिणाम आज दिखाई दे रहा है।

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  21. सुन्दर अभिव्यक्ति.....आभार

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  22. अरुण जी!!
    एक यथार्थ चित्रण देखने को मिला आपकी रचनाओं में और तीसरी रचना की समाप्ति पर मुट्ठियाँ भींच जाती हैं स्वतः!!
    भारत और इंडिया का विभाजन यहाँ टिप्पणियों में भी दिख रहा है... आज भीड़ से लग स्वयं को बुद्धिजीवी बताना, जुबान ऐंठकर अंग्रेज़ी बोलना और एयर कंडीशन कमरे में बैठकर ३८ डिग्री के तापमान में खड़ी रामलीला मैदान की जनता की रिपोर्टिंग करना अभिजात्यता का प्रतीक माना जाता है..
    हम लोग ये सब नहीं समझेंगे आफ्टर ऑल! वे आर सिल्ली मिडल क्लास इंडियंस!!!द कॉमन मैन!!

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  23. तीनो क्षणिकाएं सामयिक हैं.....अरुण जी

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