बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

धूप बातें करती हैं

कंक्रीट की अट्टालिकाओं में 
उगे काँटों से छलनी 
सुबह की धूप
लौट जाती है
दोपहर में बंद दरवाज़े से
बजा कर घंटी
कोरियर बॉय की तरह

शाम को बंद खिडकियों से
झाँकने के जुर्म में
जो चढ़ा दिए गए हैं मोटे परदे
उनसे टकरा कर
चोटिल होती धूप
चिडचिडी रहती है 

जबकि दूर मेरे गाँव में 
 सुबह सुबह
रसोईघर की टूटी खिड़की से झांक कर
चूम जाती है धूप
माँ का माथा
पहली फुर्सत में
पश्चिम के ओसारे पर
खेलती है पूजास्थल से हटाये गए
बासी फूलों  के साथ

माँ के नहा कर लौटने के बाद 
धूप आँगन के इस ओसारे से 
उस ओसारे पर बैठती है
बतियाती है फुर्सत से 
बांटती है नई पुरानी बातें
कई बार माँ  खोल देती है
यादों की संदूकची
धूप के सामने ही
और ताज़ी हो जाती हैं
यादें, मेरे पहले कपडे,
ननिहाल से मिली कटोरी चम्मच 
जो दिए थे नानी ने मुंडन पर
माँ रोती है नानी को करके याद 
गीली हो जाती है दोपहर 
पिघल जाती है धूप  भी  

बहुत बातें करती है
मेरे गाँव की धूप

38 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बातें करती है
    मेरे गाँव की धूप
    वाह ...बहुत ही भावमय करते शब्‍दों का संगम ।

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  2. मन गीला कर गयी,ये बातें करती धूप...

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  3. सच में हमने अपने सारे रिश्ते प्रकृति के साथ तोड़ दिए है गुनगुनी धूप ,रात की ठंडी हवा ,आसमान के तारे सब खफा होंगे ... हमने अपने आप को A .क में कैद जो कर दिया है

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  4. धूप बातें करती हैं
    कंक्रीट की अट्टालिकाओं में
    उगे काँटों से छलनी
    सुबह की धूप
    लौट जाती है
    दोपहर में बंद दरवाज़े से
    बजा कर घंटी
    कोरियर बॉय की तरह

    शाम को बंद खिडकियों से
    झाँकने के जुर्म में
    जो चढ़ा दिए गए हैं मोटे परदे
    उनसे टकरा कर
    चोटिल होती धूप
    चिडचिडी रहती है
    बहुत सुन्दर कविता भाई अरुण जी बधाई और शुबकामनाएं

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  5. धूप बातें करती है
    बातों बातों में
    यादों की सीलन ख़त्म हो जाती है
    कुछ और से के लिए सुरक्षित हो जाती है !
    .... कभी चौखट , कभी आँगन, कभी छत ....
    मुट्ठी भर धूप - कमाल कर जाती है

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  6. यूँ धूप से बतियाना कमाल कर गया.

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  7. कंक्रीट के जंगल में किसी किसी घर में तो धूप दस्तक भी नहीं देती ... धूप की बातें मन भिगो गयी

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  8. आज तो गांव और शहर दोंनों ही जगहों की पूरी धूप समेट ली है आपने अपनी कविता में. एक अच्छी गुनगुनी सी कविता

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  9. जबकि दूर मेरे गाँव में
    सुबह सुबह
    रसोईघर की टूटी खिड़की से झांक कर
    चूम जाती है धूप
    ..............हर लफ्ज़ में गहराई ... वाह !! क्या बात है ..अभी चार दिन पहले ही गावँ से आया हूँ ऐसा नजारा रोज़ देखता था

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  10. कमाल की रचना है अरुण जी ... संवेदनाओं का ज्वार उमड़ आता है आपकी रचनाएं पढ़ के ...
    आपसे बात करना भुत ही अच्छा लगा ... कभी फुर्सत में मिलने की कामना है ...

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  11. भावमय करते शब्‍दों का संगम ।

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  12. माँ , नानी धूप और बचपन की यादें...भावुक कर दिया।

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  13. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति।

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    मेरी बधाई स्वीकार करें ||



    यह मेरी 10 वी टिप्पणी ||
    आभार
    जो यह अवसर मिला ||

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  15. उफ! कितना बात करती है यह धूप .. गाँव की धूप
    बेहतरीन .. गहराई और एहसास युक्त रचना

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  16. आज जवाब मिला मुझे एक सवाल का जो बचपन से सालता था मुझे... बिजेंदर की माय जादा के दोपहर में हमरे हाता में बैठकर धूप तापती थी और न जाने क्या-क्या बतियाते रहती थी... कोई पास नहीं... माँ समझाती थी कि वो बिजेंदर के स्वर्गीय बाबू से बतियाती है.. तो क्या सचमुच उस धूप के रथ पर सवार बिजेंदर के बाबू "अपनी विधवा" का हाल-चाल पूछने आता था... आपकी कविता ने जवाब दे दिया मेरे बचपन के अनुत्तरित प्रश्न का!!

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  17. धूप की लुकाछिपी में व्यक्त उसकी अभिव्यक्ति।

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  18. सचमुच! बहुत प्यारी लगी मेरे गाँव की धूप से मुलाक़ात....
    एक अत्यंत सुन्दर रचना के लिये सादर बधाई....
    सादर...

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  19. गांव से बहुत सारी रोशनी बटोर लाए हैं। हर मन को यह धूप चाहिए। शहर में आकर यही धूप इतनी तीतर-बीतर क्यों हो जाती है?
    इस धूप के सहेज कर रख लें, बहुत भवपूरित कविता।

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  20. कई बार माँ खोल देती है
    यादों की संदूकची
    धूप के सामने ही
    और ताज़ी हो जाती हैं
    यादें, मेरे पहले कपडे,
    ननिहाल से मिली कटोरी चम्मच
    जो दिए थे नानी ने मुंडन पर
    माँ रोती है नानी को करके याद
    गीली हो जाती है दोपहर
    पिघल जाती है धूप भी

    बहुत बातें करती है
    मेरे गाँव की धूप..
    बहुत ही सुन्दर मन भर आया... छोड़ आये हम बचपन की गलियां ..अबोध निंदिया ..माँ कि बिंदिया ...पिता का दुलार ..संगी साथियों कि पुकार ..अपने गाँव की गलियां....???

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  21. अरुण जी.........लाजवाब कर देते हैं आप..........बस इतना ही............हैट्स ऑफ .......कुछ अलग और कुछ नया देने के लिए |

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  22. gaon ki dhoop abhi bhi apna bhola pan barkarar rakhe hue hai ..shahr ki dhoop ko aoupcharikata aur tahjeeb ke aavran me lapet kar chup kara diya gaya hai shayad..behtareen shabd rachna...

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  23. हाँ अब तो मेरे हिस्से का धूप भी किसी ने चुरा लिया है इन ऊँची दीवारों के इर्द-गिर्द..
    अब कहाँ हो पाती है धूप से बातें? वो गाँव की धूप की यादों के लिए धन्यवाद..

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  24. ज़िंदगी के सरोकारों को धूप के माध्यम से बखूबी उकेरा है आपने
    आपकी तरफ से ऐसी कविताओं का इंतज़ार रहता है
    बहुत बहुत बधाई

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  25. माँ रोती है नानी को करके याद
    गीली हो जाती है दोपहर
    पिघल जाती है धूप भी

    बहुत बातें करती है
    मेरे गाँव की धूप

    सच है .. अच्‍छी प्रस्‍तुति !!

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  26. गांव की धूप बातें करती है...
    बिल्कुल नई भावभूमि पर लिखी गई कविता।
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  27. आपकी 'धूप' बातें करती हुई बहुत अच्छी लगी.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    आपकी पिछली पोस्टों का समय मिलने पर अवलोकन करता हूँ.

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  28. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । .मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं ।

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  29. सुबह सुबह
    रसोईघर की टूटी खिड़की से झांक कर
    चूम जाती है धूप
    माँ का माथा kya baat hai.........
    aapki poori kavita mahsoos kar pa rahi hoon,bahot sunder likhe hain.

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  30. बातें!
    ढेर सारी प्यारी-प्यारी बातें करती है धूप इस कविता में। लगता है मेरी ही बातें करती हैं।
    ..बेहतरीन कविता।..आभार।

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