बुधवार, 2 मई 2012

सुकमा





१.
मैं
भारत के भूगोल का
नहीं था हिस्सा
कल तक
आज भी  बस
'खबर' में हूं


२.
प्रधानमंत्री के नाम से
चलती है कोई
'ग्रामीण सड़क योजना '
दशक हुए
पहुंची नहीं
हमारे यहाँ


३.
घने जंगल के बीच
कोई मानव बसता है
अक्सर
भूल जाता है
तंत्र


४.
आज
सोचा जा रहा है
सुकमा के बारे में भी
अच्छा लग रहा
(दुःख भी हो रहा है)
प्रश्न है कि
पहले क्यों नहीं !

21 टिप्‍पणियां:

  1. सभी बढ़िया.....दूसरा वाला सबसे बढ़िया ।

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  2. हर नये नाम पर पुराने प्रश्न उठ आते हैं।

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  3. बेहतरीन - सोचने पर मजबूर करती कविता.

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  4. बहुत गहन बातें.......चंद शब्दों में..............
    सुकमा की तरह एक जगह और है कोंटा....

    "कोंटा है ये
    राज्य का
    अनदेखा सा...
    आयेगा सबके बीच गर
    कोई अफसर हो अगुआ..."

    सादर.

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  5. धारदार प्रस्तुति ।

    आभार ।।

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  6. सभी की सभी क्षणिकाएं बेहतर और अर्थपूर्ण हैं .....जीवन के विविध सन्दर्भ समेटे .....!

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  7. एक सशक्त और अर्थपूर्ण रचना के लिए आभार स्वीकार करें।

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  8. सड़क नहीं पहुची कोई बात नहीं प्रधानमंत्री भी तो नहीं पहुचे
    सुन्दर

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  9. अब यह सब रोज़मर्रा की बातें हो गई हैं,तंत्र अपने-आप कुछ नहीं करना चाहता !

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  10. समझ गया उल्लूक भी कि मैं और कोई नहीं सुकमा है ।

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  11. न जाने अभी कितने सुकमा जैसे क्षेत्र हैं ...बहुत अच्छी क्षणिकाएं

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  12. बेहतरीन क्षनिकाएं हैं!

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  13. सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर और सोचने को विवश करतीं...

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  14. आज
    सोचा जा रहा है
    सुकमा के बारे में भी
    अच्छा लग रहा
    (दुःख भी हो रहा है)
    प्रश्न है कि
    पहले क्यों नहीं ..

    दरअसल अगर आज बी सच्चे मन से सोच लें तो भी शायद बचाया जा सके ... विवश करती हैं विद्रोह कों आपकी रचनाएं ...

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  15. chuteelee chadikayeian..anand aa gaya..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  16. प्रश्न है कि
    पहले क्यों नहीं ..
    बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन विचारणीय रचना //

    MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

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  17. अरुण जी,....आपका समर्थक बन गया हूँ आपभी बने तो मुझे खुशी होगी,....

    MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

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  18. प्रधानमंत्री के नाम से
    चलती है कोई
    'ग्रामीण सड़क योजना '
    दशक हुए
    पहुंची नहीं
    हमारे यहाँ

    बहुत खूब...वाह

    नीरज

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  19. सार्थकता से दंश को शब्द दिया आपने...

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