शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

औसत लोग



जो होते हैं
औसत
उनका कुछ भी नहीं
न धरती, न आसमान,
न  हवा न पानी
न होते हैं वे वोट ही

क्योंकि
वे लड़ नहीं सकते
कोई युद्ध
वे बन नहीं सकते
किसी क्रांति का हिस्सा
उनमे जोश का
गुबार नहीं होता
वे इश्वर के
अनचाहे संतान की तरह
होते हैं
अपने ही भरोसे

चूँकि औसत लोग
तन या मन से विकलांग नहीं होते
नहीं बनती कोई विकलांग नीति उनके लिए
उनके हिस्से
नहीं आती कोई
राजकोषीय सहायता
कोई विशेष योजना
वे हिस्सा नहीं होते
तथाकथित 'इन्क्लूसिव ग्रोथ' के

औसत लोग
न हाशिये के ऊपर होते हैं
न होते हैं हाशिये के पार
उनकी न कोई मंजिल होती है
न कोई राह

मैं
एक औसत व्यक्ति हूँ
संज्ञाहीन

22 टिप्‍पणियां:

  1. इन &*^%$%$# से बहुत अच्छे हैं औसत लोग !

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  2. औसत लोगों के कारण ही ये दुनिया इतनी हसीन है ।

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  3. संसार को खास बनाता एक आम समुदाय..... सुंदर कविता

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  4. आज तो निशब्द कर दिया ……………………

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  5. यदि औसत लोग न हो तो विशेष की महत्ता ही नहीं रहेगी ... सुंदर प्रस्तुति

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  6. औसत लोग ही तो विशेष बनाते हैं लोगो को
    बहुत सुंदर रचना

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  7. बहुत खूब,,,,निशब्द करती रचना,,,,बधाई स्वीकारें,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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  8. कविता के मामले मे तो कुछ नहीं कहता पर आप क्या है यह तो मिलने पर बात होगी !

    पृथ्वीराज कपूर - आवाज अलग, अंदाज अलग... - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  9. निशब्द करती सुन्दर रचना..

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  10. सच कहा, न ही वे स्वयं को इन सीमाओं के ऊपर ही उठा पाते हैं।

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  11. अरुण राय जी, इस कविता को अपने से न जोड़ें। अन्तिम तीन पंक्तियां हटा दें तो यह कविता मुकम्मल है।

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  12. धरती,आसमान,हवा और पानी का
    थोड़ा बहुत हिस्सा है भी
    तो बस औसत आदमी के ही हिस्से

    वही लड़ता है युद्ध
    करता है क्रांति
    उसके जोश से ही
    बदली हैं सरकारें हाल की

    औसत आदमी भी है नीतियों का हिस्सा
    यह बात और है
    कि लाभ पहुंचता नहीं उस तक
    और यही नाकामी
    उसे बनाए रखती है हाशिए पर
    कभी इधर तो कभी उधर

    औसत आदमी जानता है
    गम हों कि खुशी दोनों
    कुछ देर के साथी हैं
    फिर रस्ता ही रस्ता है
    हंसना है न रोना है....

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    1. मेरी कविता से निश्चित रूप से बेहतर कविता राधारमन जी ने बना दी है... आभार...

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  13. औसत लोग
    न हाशिये के ऊपर होते हैं
    न होते हैं हाशिये के पार...बहुत अच्‍छी कविता

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  14. औसत लोग
    न हाशिये के ऊपर होते हैं
    न होते हैं हाशिये के पार
    उनकी न कोई मंजिल होती है
    न कोई राह ..true very nice

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  15. औसत भी कई बार अपना जलवा दिखाते हैं ..!

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  16. औसत लोग अगर मिल जाएं तो चिंगारी खड़ी कर सकता हैं ...
    लाजवाब प्रभावी रचना ...

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