1
सूख जाएँगी
जब सब नदियां
समुद्र लौटेंगे
पहाड़ों की तरफ
2
लहरें दूत हैं
लौट जाते हैं
देकर सन्देश
3
यह समुद्र ही है
जो नहीं होता अकेला
इसके भीतर होता है
पानी का अथाह शोर
4
समुद्र
बूढा हो रहा है
मर जायेगा एक दिन
फिर से बनेगी
सृष्टि
5
सोख लेता है
हमारे भीतर का
सब अहं
बैठो तो एक पल
समुद्र के साथ
6
खारापन
ताकत है
समुद्र का
पसीने की
लहरें दूत हैं
जवाब देंहटाएंलौट जाती हैं होता
तो कैसा होता?
बहुत सुन्दर?
बहुत बहुत धन्यवाद सुशील जी. आप मेरे एकलौते नियमित पाठक बचे हुए हैं।
हटाएंकोशिश करता हूँ जहाँ तक पहुँच सकूँ। आभार।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"दो गज जमीन है, सुकून से जाने के लिये" (चर्चा अंक-2607)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंnice article .... !! :)
जवाब देंहटाएंतीखी और सीधे मतलब पे गहरी चोट करती है हर क्षणिका ... अरुण जी हमेशा की तरह लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंVery nice post...
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog.
सुन्दर शब्दों और भावों से सजी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावपूर्ण रचना......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपके विचारों का इन्तज़ार.....