गुरुवार, 14 सितंबर 2017

हिंदी : कुछ क्षणिकाएं



रौशनी जहाँ
पहुंची नहीं
वहां की आवाज़ हो
भाषा से
कुछ अधिक हो
तुम हिंदी


खेत खलिहान में
जो गुनगुनाती हैं फसलें
पोखरों में जो नहाती हैं भैसें
ऐसे जीवन का तुम संगीत हो
भाषा से
कुछ अधिक हो
तुम हिंदी

बहरी जब
हो जाती है सत्ता
उसे जगाने का तुम
मूल मंत्र हो
भाषा से
कुछ अधिक हो
तुम हिंदी.

४ 
तुम मेरे लिए
मैथिली, अंगिका, बज्जिका
मगही, भोजपुरी
सब हो 

2 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं। लिखते रहें इसी तरह ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
    "हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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