उदास है आसमान
क्योंकि नदी के पानी में
फ़ैल गया है जहर
यह जहर धर्म का हो सकता है
हो सकता है यह राजनीति का
और हो सकता है विश्वासघात का
जिसे पीकर चिड़ियों के पंख
हो रहे हैं कमजोर
यह जहर पैदा करता है भ्रम
निर्णय की क्षमता होती जाती है
कमजोर शनैः शनैः
चिड़ियों को आभास भी नहीं होता
कमजोर पंखों से चिड़ियाँ
कहाँ छू पाती हैं आसमान
आसमान रहता है उदास
चिड़ियों के बिना
जैसे उदास रहता है
मरे हुए बेटों के बूढ़े माँ बाप के घर का दालान
उदास है आसमान !
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर क्रांतिकारियों की जयंती और पुण्यतिथि समेटे आया २८ मई “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंइतना ज़हर और हर तरह का ज़हर पूरे आसमान को निराश कर रहा है ...
जवाब देंहटाएंसमस्त प्राकृति को उदास कर रहा है
बहुत गहरी रचना है ...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-05-2018) को "किन्तु शेष आस हैं" (चर्चा अंक-2986) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शिव बनाने का रियाज चल रहा है। सरकार संजीदा है। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंसचमुच जहर है हवा में . अच्छी कविता
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