गुरुवार, 7 मार्च 2019

बसंत




1. 

खिले हुए फूल 
धीरे धीरे मुरझा जायेंगे 
इनके चटक रंग 
उदासी में बदल जायेंगे 
बसंत की नियति है 
पतझड़
फिर भी बसंत लौटता है 
अगले बरस . 

2.

आम पर 
जब लगती हैं 
मंजरियाँ 
उन्हें मालूम होता है 
कुछ ही मुकम्मल हो पाएंगी 
अधिकाँश झड जायेंगी 
अपरिपक्व 
फिर भी मंजरियाँ महकती हैं 
हवाओं में . 


3. 
वह जो सुबह सवेरे 
साइकिल पर अखबार लादे 
तीसरी चौथी मंजिल तक फेंकता है अखबार
उसपर कहाँ असर होता है 
बसंत की मादक हवाओं का 
उसे फूलों पर मंडराते भौरे नहीं दीखते 
उसके लिए बसंत
ग्रीष्म, शरद या शिशिर से भिन्न नहीं 
कोई खबर भी नहीं 
फिर भी वह
गुनगुनाता है प्रेम गीत. 

************

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा लिखा है आपने। आप मेरे ब्लॉग Hindi Meri Jaan पर मेरे द्वारा लिखी शिक्षक दिवस पर कविताएं और शायरी पढ़ सकते हैं और रिव्यु दे सकते हैं। और ब्लॉग कैसा है ये भी बताइये कि मैं क्या सुधार कर सकता हूँ।

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  2. छोटे और आसान शब्दों से जो माला आपने गूथी है, उसकी सुंदरता और महक दोनों महसूस हो रहा है... अच्छी रचना

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-03-2019) को "नारी दुर्गा रूप" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नकलीपने का खेल : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  5. समय की रफ़्तार कहाँ बदलती है ... मौसम बदलते हैं हम बदलते हैं सोच बदलती है ...

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  6. बसंत का आगमन ही अपने आप में रोमांच लाता है।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  9. kya aap mere likh sakte hoo agr haa toh contact kre and aap bohot accha likhte hoo aaise hi likhte rahe aur kabhi nhi ruke

    http://pkmkb.co/worldpress-pr-free-me-blog-aur-website-banaye-vo-bhi-sirf-5-minute-me-nhi-yakeen-hota-to-khud-try-kre-step-by-step-follow-kre-hume/

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