अरुण चन्द्र रॉय की कविता - मातृभाषा
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मेरी मातृभाषा में
नहीं है
सॉरी, थैंक यू
धन्यवाद, आभार जैसे
शब्द।
मातृभाषा में बोलना
होता है जैसे
मां छाती से लिपट जाना
माटी में
लोट जाना
जब छूट रही है मिट्टी, मां
और मातृभाषा
हर बात के लिए
जताने लगा हूं आभार
कहने लगा हूं धन्यवाद
औपचारिक सा हो गया हूं।
- अरुण चन्द्र रॉय
गहन वयवहार , जब माँ , मातृभाषा और मिट्टी छूट रही तो औपचारिक हो गए ।भाव भरी कविता
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी और सारगर्भित।
जवाब देंहटाएंवाह , सचमुच मातृभाषा का छूटना ,छूटना है ज़मीन का . बहुत सुन्दर
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