मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

तुम्हारा होना

तुम्हारा होना
यज्ञ है
जब
गुंजित होती है
ऋचाएं
वातावरण में
परिवेश में
और स्पंदित होता है
मन
नवीनताओं से
आशाओ से

तुम्हारा होना
उत्सव है
जब मन
भरा होता है
रंगों से
उमंगों से
और
चारो दिशाओं में
बिखरी होती है
खुशियों की पंखुरिया


जीवन के लिए
कितने आवश्यक होते हैं
यज्ञ
उत्सव
और इन सब बढ़कर
तुम।

14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या बात है !!!!!!!!! बिल्कुल सच्ची सवेदना ।

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  2. bahut khub

    जीवन के लिए
    कितने आवश्यक होते हैं
    यज्ञ
    उत्सव
    और इन सब बढ़कर
    तुम।

    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  3. जीवन के लिए
    कितने आवश्यक होते हैं
    यज्ञ
    उत्सव
    और इन सब बढ़कर
    तुम।

    बड़े अछे लगते है, ये धरती, ये नदिया , ये रैना और तुम...
    लाजवाब रचना है..

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  4. वाह कमाल की बात लिखी है ... यग्य, उत्सव के साथ सच में अगर वो नही होते तो सब बेमानी लगते हैं ...

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  5. अद्भुत शब्द संयोजन, अद्भुत भाव व्यंजना ....

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  6. यज्ञ और उत्सव का मूल आधार ही आदि शक्ति नारी है . कोई भी यज्ञ उसके बिना पूरा नहीं होता, किसी भी उत्सव में रंग नहीं भरता.भाव को पिरोने के लिए सशक्त शब्दों का चयन सराहनीय है.

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  7. कितना जरुरी हो:

    तुम


    बहुत कोमल रचना, वाह!

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  8. तुम्हारा होना
    यज्ञ है
    जब
    गुंजित होती है
    ऋचाएं
    वातावरण में
    परिवेश में
    और स्पंदित होता है
    मन
    नवीनताओं से
    आशाओ से ...... prerna grahan karne ka sunder bhav. gahan samarpam bhav ... adbhut shabad chayan.... kisi ko sammanit karne ki achchhi koshish...

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  9. और इन सब बढ़कर
    तुम।

    क्योकि तुम हो त्तो यज्ञ और उत्सव भी है
    बहुत खू

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  10. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  11. जीवन के लिए
    कितने आवश्यक होते हैं
    यज्ञ
    उत्सव
    और इन सब बढ़कर
    तुम।
    क्या बात है अरुण आज कल तुम्हारा होना, तुम, यज्ञ, उत्सव चारो दिशाओं में बिखरी खुशियों की पंखुरिया??????.मौसम बहुत खुश गवार लगता है !!!!!!!!!!!!!!!!

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  12. यह रचना भी अच्छी लगी, संक्षिप्त, सुघर और नाज़ुक अभिव्यक्ति-
    "तुम"

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