शनिवार, 24 अप्रैल 2010

प्रतिस्पर्धा


नहीं चाहिए
मुझे
तुम्हारे हिस्से की
धूप
हवा
पानी
नहीं है
मेरे लिए कोई
प्रतिस्पर्धा


नहीं चाहिए
मुझे
आकाश
चाँद
सितारे
और आकाश गंगाए
नहीं है
मेरे लिए कोई
प्रतिस्पर्धा


नहीं पहुचना
मुझे
क्षितिज
तक
नहीं है
मेरे लिए कोई
प्रतिस्पर्धा


मुझे
देनी है तुम्हे
जरुरत भर
धरती
और
इसके लिए
प्रतिस्पर्धा है
मेरी
स्वयं से


20 टिप्‍पणियां:

  1. इसके लिए
    प्रतिस्पर्धा है
    मेरा
    स्वयं से


    -मेरा को मेरी कर लिजिये.

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  2. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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  3. इसके लिए
    प्रतिस्पर्धा है
    मेरा
    स्वयं से
    प्रतिस्पर्धा का सार्थक स्वरूप तो यही है
    सकारात्म

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  4. बुलाया, अच्छा लगा, उससे भी ज्यादा अच्छी लगी परोसी गयी सामग्री. बेहतरीन मेहमाननवाजी की मिसाल.
    कविता में तारीफ के सिवा कुछ कहने की हैसियत ही नहीं बची. शुभाशीष.

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  5. इसके लिए
    प्रतिस्पर्धा है
    मेरी
    स्वयं से

    उम्दा रचना है, सब कुछ पाने की चाह, बेमानी सी मंजिलें, बेमानी सी राह...

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  6. लजवाब ... खुद से प्रतिस्पर्धा ... ज़रूरत भर धरती के लिए ...
    कमाल का लिखा है ...

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  7. number kyun diya hai, yah ek sampoorn bhawna hai.......pratispardha khud ke prati, waah !

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  8. शब्द, भाव और प्रस्तुति - उच्चस्तरीय - बधाई

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  9. चीनी दार्शनिक लओत्सू ने कहा था -मुझे को हरा नहीं सकता क्योंकि मै जीतने की बात नहीं करता .जब प्रतिस्पर्धा ख़त्म हो जाती है तो जीवन के नए अर्थ उजागर होने लगते हैं .खूबसूरत कविता है -बधाई

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  10. प्रतिस्पर्धा
    एक बढ़िया कविता परोसा आपने...!!

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  11. वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति

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  12. शब्दों का संतुलन और चयन बता रहा है कि व्यवसाय भी आपने योग्यता और क्षमता के अनुरूप चुना है, सफल रहेंगे।
    मतलब कि कवि-हृदय और मस्तिष्क दोनों का सफल संगम है… अभी पहली रचनाएँ ही देखी हैं, शेष थोड़ा ज़्यादा पढ़ कर लिखूँगा।
    शुभेच्छु,

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  13. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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  14. शुक्रिया सूचना के लिये| सही मायने में बहुत सुन्‍दर अभिव्‍यंजना से ओत-प्रोत एक बेहद ही उ
    म्‍दा रचना |आभार के साथ-साथ बधाई स्‍वीकार कीजियेगा | शुक्रिया ।।

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  15. एक स्वस्थ मानसिकता दिखाती रचना

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  16. प्रतिस्पर्धा दूसरों से हो या स्वयं से यह हमेशा व्यक्ति को आगे बढ़ने को प्रेरित करती है और अपेक्षित लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होती है.सकारात्मक सोच और दृष्टि के साथ बढती कविता के लिए धन्यवाद् .

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  17. adhunik jivan me santosh ke sath unnati ka marg bhi yehi hai kavivar.pratispardha honi chahiye magar swayam se.

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