जब
थक जाती हैं
बाहें
खुद से दुगुना वजन
उठाते उठाते
और कंधे
मना कर देते हैं
देने को संबल
लेकिन फिर भी
जलते सूरज के नीचे
पूरी करनी होती है
दिहाड़ी ,
देख लेता हूँ
पर्स में रखी तुम्हारी
तुम्हारी तस्वीर
जब
भरी दुपहरी में
कंक्रीट के अजनबी शहर में
थक जाते हैं कदम
ढूंढते ढूंढते
नया पता
लेकिन
पहुचना जरुरी होता है
उस अधूरे पते पर,
देख लेता हूँ
पर्स में रखी
तुम्हारी तस्वीर
जब
थका हारा
तन सोना चाहता है
लेकिन
मन
रहना चाहता है
स्मृतियों में
जगे रहना
तुम्हारे साथ,
देख लेता हूँ
पर्स में रखी
तुम्हारी तस्वीर
तुम्हारी तस्वीर
के साथ होती है
तुम्हारी हंसी,
साथ देखे सपने,
और जरी वाली साड़ी
जो तुमने लाने को कहा था
छोड़ते समय गाँव
पर्स में रखी
तुम्हारी तस्वीर
है मेरी उर्जा
और इस अजनबी शहर में
अंतिम ठौर
बस
तुम्हारी तस्वीर
समझती है
अपनों के बीच दूरी
और
दर्द विस्थापन का
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंपर्स में रखी
जवाब देंहटाएंतुम्हारी तस्वीर
है मेरी उर्जा
और इस अजनबी शहर में
अंतिम ठौर
tasveerein waqt ko kaid karne karti hai waqt mano ruk jata hai aur jab jab mud kar in tasvero ko dekha jata hai to ek methe si muskan pani ke phuare si bhut padti hai...
aur waise bhi purse mai rakhi tasweere aksar jaan se pyari hoti hai kyunki wo hari jaan ki hoti hai aksar... roop kuch bhi ho sakta hai... kisi mehbuba ki... mata pita ki... ya phir apne masum bachon ki...kuch bhi...
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
जवाब देंहटाएंhttp://rajatnarula.blogspot.com/2010/01/tasveerein.html
जवाब देंहटाएंपर्स में रखी
जवाब देंहटाएंतुम्हारी तस्वीर
है मेरी उर्जा
और इस अजनबी शहर में
अंतिम ठौर
वाह अरुण जी वाह...इस लाजवाब रचना की प्रशंशा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...बधाई स्वीकार करें...
नीरज
बेहतर कविता...
जवाब देंहटाएंबस
जवाब देंहटाएंतुम्हारी तस्वीर
समझती है
अपनों के बीच दूरी
और
दर्द विस्थापन का
खूबसूरती से कही बात
लाजवाब
हां किसी का साथ बहुत बड़ा सम्बल होता है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंअरे भाई अगर साड़ी लाने की बात नहीं होती तो ये तस्वीर सांई बाबा का प्रभाव पैदा कर रही है।
जवाब देंहटाएंकपूर साहब ने जो कहा मुझे ऐसा कतई नहीं लगा - सुंदर रचना के लिए निश्चित रूप से आप बधाई के पत्र हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... उनकी तस्वीर भी दावा का काम करती है .... आपकी कल्पना लाजवाब है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर सहज कविता .मन से निकली और कागज पर कविता का आकार ले लिया अरुण ऐसी ही कविता मन को छू जाती है .
जवाब देंहटाएंek tasveer se itna lagaav hjai to us vyakti se kitna hoga...bahut khoob
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
और तब यही तस्वीर जीने का संबल बनती जाती है ........
जवाब देंहटाएंBadihi komal bhavna!
जवाब देंहटाएंबस
जवाब देंहटाएंतुम्हारी तस्वीर
समझती है
अपनों के बीच दूरी
और
दर्द विस्थापन का
madhur aur dil me utarti abhivyakti
BAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंBADHAI IS KE LIYE AAP KO
SHEKHAR KUMAWAT
पर्स में रखी
जवाब देंहटाएंतुम्हारी तस्वीर
है मेरी उर्जा
और इस अजनबी शहर में
अंतिम ठौर
अच्छी है पर्स में रखी वो तस्वीर भी और तस्वीर से मिलती उर्जा भी
बधाई
ati uttam bhav...........bahut hi sundar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंअरुण जी ! आपके लेखन मे इतनी गहन एंद्रिकता है की बस पढ़ते वक्त सिर्फ वह तस्वीर होती है या फिर पढ़ने वाला होता है ....हार्दिक बधाई .
जवाब देंहटाएंतुम्हारी तस्वीर
जवाब देंहटाएंसमझती है
अपनों के बीच दूरी
bahuuuuuuuuuuuut khoooooob ....
hame jeene ke liye energy kaha kaha se milti hai ....kitne chote pal,sade paper per bani tasveer.
aur prakriti ke jaane kitne raaj......waaaaaah
Bhaut achi lagi aapki rachna bahut2 badhai
जवाब देंहटाएंarunji aapki kavita me jo ehsas spandan karta hai usse har shabd jeevant ban jata hai.in ehasaso ko mahsusne ke bad shabd nahi hai in aur kuchh kahne ke liye.pata nahi kitane hi honge jo in ehsaso me hi jeevan ki urja pate honge par is urja ko shabdo ka jama aap hi pahana pate hai.bahut badhai!!!!!!!!!!!!!!!!!
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