१
कम हो रहे हैं
खेत और खलिहान
बढ़ रही हैं
अट्टालिकाए
ए़क से बड़े ए़क
ए़क से ऊँचे ए़क
और सब के सब
प्रकृते के गोद में
पर्यावरण अनुकूल
हरे भरे खुले वातावरण में
होने के दावे के साथ...
२
चौड़ी हो रही हैं
सड़के
और अतिक्रमण
के शिकार हो रहे हैं
हवा
पानी और
धूप
अपने हिस्से की
जिंदगी नहीं
जी पा रहे हैं
वृक्ष
३
ख़रीदे
जा रहे हैं
खेत
बस रहे हैं
खाली शहर
बिक रहे हैं
स्वाभिमान
अस्मिता
और भविष्य
४
नए नए
समझौतो और
ज्ञापनो पर
हो रहे हैं
हस्ताक्षर
बंद कमरों में
बदले जा रहे हैं
भूगोल
और सौदा
हो रहा है
धरती के गर्भ का
विस्थापित
हो रही हैं
नदिया
जंगल
और
तथाकथित
जंगली जन
समय के साथ
कम हो रहे हैं
ख़त्म हो रहे हैं
विलुप्त हो रहे हैं
आप
हम
हमलोग
समय के साथ
जवाब देंहटाएंकम हो रहे हैं
ख़त्म हो रहे हैं
विलुप्त हो रहे हैं
आप
हम
हमलोग..........
कितनी सच बात कह दी आपने ???
bahut hi sachhi baat kahi hai aapne...
जवाब देंहटाएंbadhai... itni achhi rachna ke liye...
mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....
समय के साथ
जवाब देंहटाएंकम हो रहे हैं
ख़त्म हो रहे हैं
विलुप्त हो रहे हैं
आप
हम
हमलोग
शब्दो का बेहतरीन प्रयोग. भाव समीचीन.
बेहतरीन रचना
paryvaran par ek karara prahar ,bahut hi sahi baat kahi hai aapne.bahut hi prashanshniya-----
जवाब देंहटाएंpoonam
सच का चित्रण..बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंsamay ke saath kho rahi hai manytayen
जवाब देंहटाएंbadh raha hai akelapan
kho rahi hain khushiyaan
badh rahi hain dooriyaan....
bahut hi badhiyaa
Paryavaran ko bimb mein rakh kar bahut hi shashakt rachnaaon ka srajan kiya hai ... bahut kuch kahti hain aapki rachnaayen ...
जवाब देंहटाएंख़रीदे
जवाब देंहटाएंजा रहे हैं
खेत
बस रहे हैं
खाली शहर
बिक रहे हैं
स्वाभिमान
अस्मिता
और भविष्य....
bhautik jeewanshaili ke karan ham paryavaran ke saath saath jiwan mulyon ko bhi kho rahe hain. yatharthvadi kavita.....
ख़त्म हो रहे हैं
जवाब देंहटाएंविलुप्त हो रहे हैं
आप
हम
हमलोग
पर्यावरण के सभी पहलुओं को बखूबी उकेरा है अपने अपनी सभी कविताओं में
bahut khoob aapki samvedanaye paryavaran ke liye aur samaj ke liye. badhai.
जवाब देंहटाएंकाबिलेतारीफ बेहतरीन
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