अनुत्तरित
प्रश्नों से घिरे
मेरे साथ
जब तुम
चढ़ रही थी
मंदिर की सीढ़िया
लग रहा था
मानो स्वयं
उत्तर हो
तुम
जब
तुम्हारे हाथ
स्पर्श कर रहे थे
मंदिर के दीवारों को
लग रहा था
मुझे
मेरे
सभी अवसादों पर
मरहम लगा रहा हो
कोई
जब
बजा रही थी
तुम
मंदिर की घंटिया
मेरे मन के भीतर
पैदा हो रहा था
नया संगीत
मंदिर की
आरती ले
जब तुमने
रखा
पहले
मेरे सिर पर
अपना हाथ
अचानक
माँ जैसी
लग रही थी
तुम
जब
उतर रहे थे
हम
मंदिर की सीढ़िया
नहीं रहा कोई
प्रश्न
मेरे भीतर
वाह्…………अद्भुत्………………………अति सुन्दर भाव्।
जवाब देंहटाएंगज़ब की भावभिव्यक्ति !!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंsunder ,ati sunder.man ko chu lenewala.
जवाब देंहटाएंफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंमंदिर की
जवाब देंहटाएंआरती ले
जब तुमने
रखा
पहले
मेरे सिर पर
अपना हाथ
अचानक
माँ जैसी
लग रही थी
तुम
kavita mein is khand ki jaroorat nahin hai. kavita achchhi hai,
मंदिर की सीढिया
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित
प्रश्नों से घिरे
मेरे साथ
जब तुम
चढ़ रही थी
मंदिर की सीढ़िया
लग रहा था
मानो स्वयं
उत्तर हो
तुम
जब
तुम्हारे हाथ
स्पर्श कर रहे थे
मंदिर के दीवारों को
लग रहा था
मुझे
मेरे
सभी अवसादों पर
मरहम लगा रहा हो
कोई
जब
बजा रही थी
तुम
मंदिर की घंटिया
मेरे मन के भीतर
पैदा हो रहा था
नया संगीत
जब
उतर रहे थे
हम
मंदिर की सीढ़िया
नहीं रहा कोई
प्रश्न
मेरे भीतर
itni hi asardaar hai.
जब
जवाब देंहटाएंतुम्हारे हाथ
स्पर्श कर रहे थे
मंदिर के दीवारों को
लग रहा था
मुझे
मेरे
सभी अवसादों पर
मरहम लगा रहा हो
कोई
bahut pavitra bhav aur sunder rachna hai...
प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ बोलती रचना है ये
जवाब देंहटाएंकितनी आसानी से अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर मिल गए,बिना कुछ कहें ही. मानों कुछ भी अनुत्तरित था ही नहीं.यही तो है किसी की सांसों में बस जाने जैसा बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति बड़ी सकारात्मक बात
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब बन गई तुम और मंदिर की पवित्रता
जवाब देंहटाएंसुन्दर बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशांतिदायक भी
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! बधाइ !
जवाब देंहटाएंbehad bhaawpurn rachna, badhai sweekaren arun ji.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुती ....
जवाब देंहटाएंनहीं दोस्त ,हम आपसे अधिक सार्थक कविता की उम्मीद करते हैं .मंदिर की सीढ़ी पर सवालों के जवाब कभी नहीं मिलते .
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