मन की स्लेट
पर
अंकित कर दूं
प्रेम का
महाकाव्य ।
सांसो के छंद
से करू
अनुराग ।
मुक्त है आज ज्यो आकाश
त्यों है प्रेम का इतिहास
मिल रहे हैं
जैसे क्षितिज
तेरा मेरा सान्निध्य ।
गीत तुम
कविता तुम
तुम ही सब
अलंकार
प्रेरणा सृजन
की तुम
भाव से करू अभिसार ।
मुरली तुम
वीणा तुम
तुम समय की सितार
वादक निपुण
नहीं मैं
कैसे करू
सुर श्रृंगार ।
ह्रदय के दीप में
सांसो की बाती है
तिल तिल जलूं
तेरे लिए
यही मेरी थाती है ।
स्मृतियों में जब
कभी
मेरा हो स्मरण
दामिनी सी इक
हंसी
करना मुझको
भी समर्पण ।
अरे वाह्……………सच प्रेम कितना गहन है………………………कितने ही काव्य लिख लिये गये मगर हर बार एक अलग ही रूप मे नज़र आता है………………बहुत खूब्।
जवाब देंहटाएंprem ke is saagar mein anmol moti hain, durlabh moti
जवाब देंहटाएंकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
जवाब देंहटाएंवाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति अच्छे लगे सांसो के छंद
जवाब देंहटाएंprem ke ijahar ka yah anutha roop dekhane ko mila
जवाब देंहटाएंbahut hi bhavparak avam sundar abhivykti se paripurn rachna.
poonam