पहली बार
जब लगी होगी
कालिंग बेल
थोड़ी दूर हुई होगीआत्मीयता और सहजता
जीवन में
प्रवेश हुआ होगा
यांत्रिकता का
ठिठक गए होंगे
कई बेलौस बेफिक्र कदम
खामोश हो गई होगी
कई अपनापन भरी पुकार
देहरी से ही
इनके बदले आई होगी
थोड़ी औपचारिकता
रिश्तों में
कालिंग बेल की
घनघनाहट के बीच
चुप से हुए
सांकल
उभरा कुछ अजनबीपन
आपस में
आज जब
जीवन का अहम् हिस्सा बन गयी है
कालिंग बेल
इनके बजने के साथ हीठीक कर लिए जाते हैं
परदे
कपडे
चादर
मेज पर पडी किताबें
सही स्थान पर रख दी जाती हैं
चीज़ें सजाकर
एक हंसी पसर जाती है
अधरों पर, छद्म ही भले
कई बार
इनके बजने से
उभर आते हैं दर्ज़नो चेहरे
इनके बजने से
उभर आते हैं दर्ज़नो चेहरे
उन से जुडी यादें
उन से जुड़े मुद्दे
कुछ देते हुई ख़ुशी
कुछ बेमौसम सी
संगीतमय होती नहीं है
कालिंग बेल
फिर भी कई बार
कर्णप्रिय लगती है यह
खास तौर पर
जब हो रहा हो किसी का
इन्तजार
कालिंग बेल
वैसे तो है
निर्जीव ही लेकिन
सच कहूँ तो
कई बार
होते हैं भाव, संवेदना
इनमे भी
जैसे
किसी के फुर्सत में
तो किसी के
जल्दी में होने के बारे में
बता देती है
कालिंग बेल
क्योंकि
अख़बार वाले पाण्डेय जी
जब लेने आते हैं
महीने का बिल
बजा देते हैं जल्दी जल्दी
कई बार कालिंग बेल
समय नहीं है उनके पास भी . कई बार आशंकित भी
करती है कलिंग बेल
खास तौर पर
जब भुगतान नहीं की गई होबैंक की कोई किस्त
चुकाया नहीं हो
आधुनिक महाजनों का
आकर्षक सा दिखने वाला उधार
ऐसे में युद्ध के मैदान में
बजते इमरजेंसी अलार्म सी
लगती है कालिंग बेल
पहली बार जब मैं
आया था तुम्हारे द्वार
बजाई थी कालिंग बेल
थरथराते हाथों से
कहो ना
कैसा लगा था तुम्हे
क्या पहचान पाई थी
मेरे तेजी से
कैसा लगा था तुम्हे
क्या पहचान पाई थी
मेरे तेजी से
धडकते ह्रदय का स्पंदन
माँ को कभी
प्रिय नहीं लगी यह
कालिंग बेल
अच्छी लगती है
उसे अब भी
सांकल की आवाज़
सांकल की आवाज़
जिस से पहचान लेती है वह
बाबूजी को/ मुझे/
छुटकी कोपूरे मोहल्ले को
डरती नहीं थी वह
सांकल की आवाज़ से
समय-असमय कभी भी.