गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

बर्फ

 

बर्फ बोलते नहीं 
पत्थरों की तरह 
वे पिघलते भी नहीं 
इतनी आसानी से 
वे फिर से जम जाते हैं 
जिद्द की तरह।  


बर्फ का रंग 
हमेशा सफ़ेद नहीं होता 
जैसा कि दिखता है नंगी आँखों से 
वह रोटी की तरह मटमैला होता है 
बीच बीच में जला हुआ सा 
गुलमर्ग के खच्चर वाले के लिए 
तो सोनमार्ग के पहड़ी घोड़े के लिए 
यह हरा होता है घास की तरह 


बर्फ हटाने के काम पर लगे 
बिहारी मजदूर देखता है 
अपनी माँ का चेहरा 
जमे हुए हाथों से 
बर्फ की चट्टानों को हटाते हुए 

बर्फ 
प्रदर्शनी पर लगे हैं 
इनदिनों 
जिसका सीना छलनी है 
गोलियों के बौछार से 
तो इसका मस्तक लहूलुहान है 
पत्थरबाज़ी से।  

5. 
बर्फ का कभी 
नहीं हुआ करता था धर्म 
नहीं हुआ करती थी जाति
नहीं हुआ करता था रंगों का भेद 
लेकिन अब बर्फ की हत्या हो रही है 
पूछ कर धर्म ! 

5 टिप्‍पणियां:

  1. हृदयविदारक...
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. व्वाह
    एक कलम और चलने को आतुर
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बर्फ का कभी
    नहीं हुआ करता था धर्म
    नहीं हुआ करती थी जाति
    नहीं हुआ करता था रंगों का भेद
    लेकिन अब बर्फ की हत्या हो रही है
    पूछ कर धर्म !

    सही

    जवाब देंहटाएं