बुधवार, 29 जनवरी 2025

गंगा में डुबकी

लगाते लगाते 

गंगा में डुबकी 

हमलोगों ने नहीं रहने दिया 

गंगा को स्नान के लायक 

नहीं रहने दिया गंगाजल को पवित्र 


लगाते लगाते 

गंगा में डुबकी 

पहुंचा दिया हमलोगों ने 

गंगा की मछलियों को 

विलुप्ति के कगार पर 


लगाते लगाते 

गंगा में डुबकी 

अपशिष्टों से भर दिया 

इसकी तलछटी कि

प्रवाह कम हो गया नदी का 


लगाते लगाते 

गंगा में डुबकी  

एक दिन बिलुप्त हो जाएगी गंगा 

और रह जाएगी 

बस चित्रों और स्मृतियों में ! 


मंगलवार, 28 जनवरी 2025

घबराना एक प्रतिक्रिया है

घबराना 

पहली प्रतिक्रिया है  

है एकदम नैसर्गिक !


कुछ लोग 

घबरा जाते हैं 

बहुत जल्दी 

छुई-मुई से होते हैं वे 

अपनी सामाजिक/आर्थिक/मानसिक स्थिति के प्रति 

ऐसे लोग प्रतिकूल परिस्थितियों से/विपत्तियों से तो 

लेते हैं निपट किन्तु जब बात आती है  

उनके स्वाभिमान और अस्मिता पर 

वे घबरा जाते हैं 


कुछ लोग कभी नहीं घबराते 

उनपर आलोचनाओं और प्रतिकूल परिस्थितियों का 

नहीं होता कभी कोई असर 

और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है लगातार 

घरों में, समाज में, सत्ता में । 


नहीं घबराने वाले लोग

जन्म देते हैं युद्ध हो 

नष्ट करते हैं पर्यावरण को 

दूषित करते हैं मानवीय परिवेश को   !


अक्सर घबराने वाले लोग 

बेहद मासूम होते हैं दुनियाँदारी से अनिभिज्ञ 

बहुत सकुचाते हैं वे लोग 

अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराने से । 


बचने के लिए अपने दामन पर दाग या आंच से 

कुछ लोगों की प्रतिक्रिया होती है 

घबराहट के रूप में ! 


बड़े प्रिय और ईमानदार होते हैं 

अपने व्यवहार और किरदार में 

घबराने वाले लोग । 


यह मेरी कमजोरी हो सकती है कि

मुझे घबराए हुये लोग 

बहुत अच्छे लगते हैं ! 

सोमवार, 27 जनवरी 2025

निर्णय

 1

निर्णय का महत्व 

समय से निर्धारित होता है 

सही समय पर नहीं लिए गए निर्णय 

नहीं रह जाते हैं प्रभावी । 


2

आज लिए गए निर्णय 

आज के ही संदर्भ में जाने चाहिए देखें 

समय और काल बदलने से 

अर्थ और ताकत दोनों बदल जाते हैं 

निर्णय के । 


3

निर्णय 

अक्सर व्यक्ति सापेक्ष भी होते हैं 

और स्थिति सापेक्ष भी 

मंगलवार, 21 जनवरी 2025

पानी सा होना

पानी सा होना 

कहना तो आसान है 

लेकिन कितने ही लोग हैं 

जो हो सकते हैं पानी सा !


पानी का नहीं होता है 

अपना कोई रंग 

वह रंग जाता है 

जो ही रंग मिला दे उसमें 

कुछ लोग पानी सा ही होते हैं 

रंग जाते हैं किसी के ही रंग में 

भुला कर अपना अस्तित्व । 


पानी का कहाँ होता है 

अपना कोई आकार 

कुछ लोग हमारे बीच होते हैं 

पानी से 

जो किसी के भी अनुसार, किसी के विचार में 

जाते हैं ढल जैसे ढलता है पानी ! 


सुना है गंध या स्वाद भी 

नहीं होता है पानी का 

लेकिन वह किसी भी गंध और स्वाद को 

बना लेता है अपना 

हमारे बीच कई बार पाये जाते हैं 

ऐसे लोग भी जो किसी भी गंध और स्वाद को 

अपना लेते हैं छोड़ कर अहंकार 


पानी जैसा जो हो जाती दुनियाँ 

पानी जैसे जो हो जाते लोग 

दुनिया से खत्म हो जाती 

तृष्णा, घृणा, द्वेष, क्लेश, ईर्ष्या, अहंकार  ! 



शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

अस्तित्व बचाता बूढ़ा छायाकार

कल ही लौटा हूँ मैं एक संगीत सम्मेलन से 

जहां मिला था मुझे एक बूढ़ा छायाकार 

उसके पास था एक भारी भरकम बैग 

जिसमें रहे होंगे तरह तरह के लैंस। 


उसकी पहुँच मंच  तक थी 

वह मंच के नीचे बेहद करीब से 

कभी आधा झुक कर तो कभी लगभग लेट कर 

कोशिश कर रहा था पकड़ने की 

उस एक क्षण को जब कलाकार होता है 

अपने आनंद के उत्कर्ष पर 

जब कला की आत्मा तृप्त हो रही होती है 

कलाकार के सानिध्य में 

और उस एक क्षण को कैमरे में कैद करने के लिए 

वह नहीं लग रहा था 

किसी कलाकार से कम 

तपस्या या साधना में लीन । 


जब लोग भाग रहे थे कलाकार के पीछे 

छू लेना चाहते थे उन्हें एक बार 

लेना चाहते थे उनके साथ एक तस्वीर 

लगभग धकिया ही दिया गया था 

वह बूढ़ा छायाकार 

गिरते गिरते बचा था वह । 


इस युग में जब तस्वीरों से पटी पड़ी है दुनियाँ 

छायाचित्रों के सैलाब में डूब रहा है विश्व 

अपने अस्तित्व को बचाने में 

बेहद थका और निराश सा लग रहा था 

वह बूढ़ा छायाकार । 


जब मचा हुआ है चारों ओर रंगों का आतंक 

उसके गैलरी में बड़े बड़े कलाकारों के 

वे अनमोल क्षण फांक रहें हैं धूल

श्वेत-श्याम में  ! 

गुरुवार, 16 जनवरी 2025

कुछ पागल लोग

 कुछ लोग वाकई पागल होते हैं 

जिन्हें कुछ भी कह दीजिये आप 

और वे बुरा नहीं मानते । 


वे आपके संग ठठा के हँसते हैं 

आपको हँसाएँ रखते हैं 

जबकि उनके भीतर बह रही होती है 

दुखों की नदी लहराती हुई 

वे दुख और पीड़ाओं की तरंगों को 

किनारों से बाहर नहीं आने देते । 


इन पागल लोगों के कारण ही 

कई बार महफिलों की रौनक बढ़ती है

जब ये किसी भी मौके पर  नाच लेते हैं 

कर देते हैं सबका मनोरंजन 

और लौट आते हैं अपने अंधेरी गुफा में 

सुबकते हुये 


पागल लोग अपने दुखों का 

नहीं करते हैं महिमामंडन 

वे अपनी रीढ़ तान कर रखते हैं 

और खड़े रहते हैं अपनी बात और जबान पर 

वे नहीं ओढ़े रहते हैं मुखौटे 

उनके नहीं होते हैं 

कई कई चेहरे 

इस दुनियादारी से भरे जीवन में । 


ऐसे पागल लोग 

बेहद खूबसूरत होते हैं 

स्थापित सौंदर्य के मानकों के विपरीत ! 

बुधवार, 15 जनवरी 2025

अस्तित्व

 रोशनी का अस्तित्व है 

अंधेरे से 

सुख का 

दुख से 

प्रेम का 

घृणा से 

बसंत का 

पतझड़ से । 


कितना जरूरी है न 

जीवन के किसी कोने में 

अंधेरे का होना । 

सोमवार, 13 जनवरी 2025

कम समझ वाले लोग

 कम समझ वाले लोग 

अक्सर किए जाते हैं 

इस्तेमाल 

घरों में 

परिवार में 

रिश्ते-नातों में

मोहल्ले में 

समाज में 

और देश दुनियाँ में भी । 


कम समझ वाले लोग 

कम ही करते हैं 

अपने दिमाग का इस्तेमाल 

वे सोचते हैं दिल से 

वे नहीं करते हैं जुगत-जुगाड़ 

बनाने के लिए अपना काम 

उनमें लालच भी होता है कम ही 

वे अपने हिस्से की रोटी भी दे आते हैं 

किसी भूखे को और खुद पानी पीकर जाते हैं सो । 


कम समझ वाले लोग 

जीते हैं वर्तमान में 

कल के लिए नहीं जीते हैं वे 

न ही कल के लिए बचाते हैं 

वे बेलौस हँसते हैं 

और कभी नहीं सोचते कि

हँसते हुये कैसे लगते हैं उनके दाँत । 


वे किसी के लिए भी, कभी भी, कहीं भी 

मौजूद हो जाते हैं हवा के झोंके की तरह 

नहीं सोचते कि कौन खड़ा हुआ था या नहीं हुआ था उनके साथ 

जब कभी जरूरत में थे वे  

और उनकी समझ में कम ही आता है 

रिश्तों का गणित   । 


ऐसे कम समझ वाले लोग 

 बुलाये जाते हैं 

जरूरत पर नजदीकी परिवारों में, 

दूर दराज के रिशतेदारों में भी 

और अवसर के बाद अक्सर दिये जाते हैं भुला 

अगले अवसर तक के लिए । 


आपने भी देखे होंगे 

ऐसे कम समझ वाले लोग 

अपने आसपास 

 इन्हें पहचानना नहीं होता का 

बहुत मुश्किल 

इनके चेहरे पर निजी परेशानियों की लकीरें 

नहीं होती हैं 

होती हैं एक बेफिक्र हंसी 

तेज चाल क्योंकि ये लोग अक्सर जल्दीबाजी में होते हैं 

कहीं किसी के पास पहुँचने के लिए । 


दुनियाँ को खूबसूरत बनाने के लिए 

दुनियाँ को खूबसूरत बनाए रखने के लिए 

बेहद जरूरी हैं ये कम समझ वाले लोग 

क्योंकि आपने भी देखा होगा 

अधिक समझ वाले लोगों ने 

हथिया रखीं हैं औरों की जमीनें 

दखल कर रखा है औरों के खेत 

कब्जा कर रखा है किसी और के घर 

दो देशों के बीच युद्ध के कारण भी यही हैं 

अधिक समझ रखने वाले लोग ! 


काश इस दुनियाँ में इन कम समझ वाले लोग होते 

बहुसंख्यक ! 




शनिवार, 11 जनवरी 2025

चूल्हे का सौंदर्य

 चूल्हे का सौंदर्य 

आग से है

इसकी उपयोगिता भी। 


बुझा हुआ चूल्हा

होता है उदास । 


चूल्हा जो पकाता है 

अक्सर अकेला रह जाता है

भूख के मिटने के बाद । 




शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

पिता की प्रार्थनाएँ

1.

पिता 

कभी स्वयं नहीं होते 

अपनी प्रार्थनाओं में । 


2.

पिता की प्रार्थनाओं को 

प्रायः वे कभी नहीं समझ पाते 

जिन्हें मिला होता है 

पिता का प्यार भरा हाथ 

उनके सिर पर । 


3.

पिता की प्रार्थनाओं का महत्व 

कभी उस लड़की से पूछना 

जिसके पिता नहीं थे 

जब वह जाना चाहती थी स्कूल 

जब वह छूना चाहती थी आसमान । 


4.

पिता की प्रार्थनाएँ 

अक्सर तब समझ में आती हैं 

जब नहीं रहते हैं पिता 

सशरीर । 






गुरुवार, 9 जनवरी 2025

बिन पिता की बेटियाँ

बेटियाँ 

सबसे अधिक प्रेम करती हैं 

अपने पिता से 

वे होती हैं सबसे अधिक आकर्षित 

अपने पिता सरीखे पुरुषों से 

जो दे सके उन्हें भरोसा, 

जो खड़ा हो सके उनके साथ 

धूप में , छाँव में 

ऐसा नहीं है कि बरगद जैसे पिता की छाया में 

बेटियाँ बढ़ती नहीं है 

बल्कि वे तितली हो उठती हैं 

सुरक्षा के भाव के साथ । 


कुछ बेटियाँ ऐसी भी होती हैं 

जिन्हें कभी नहीं मिला होता है 

पिता का खुरदरे हाथों का स्नेह-सिक्त प्यार 

या फिर बैठकर पिता के चौड़े कंधों पर 

आसमान को छूने का अनुभव 

ऐसी बेटियाँ अक्सर बातें करती हैं अपने पिता से 

कल्पनाओं में, अकेले में 

कोई और पुरुष शायद ही बाँट सके इस अकेलेपन को । 


बेटियाँ कई सारी बातें 

वे बांटती केवल पिता से 

जब वे लौटती हैं स्कूल से 

कॉलेज से या दफ्तर से 

या फिर मायके से 

और जब पिता नहीं होते 

या जिन बेटियों के पिता नहीं होते

वे अक्सर ओढ़ लेती हैं 

चुप्पी का लिहाफ

कुछ बेटियाँ अपने अकेलेपन से भागकर 

हंसने लगती हैं, बातूनी हो जाती हैं 

और कुछ इस तरह भीतर ही भीतर छुपाती हैं अपना दर्द ! 


ईश्वर किसी बेटी को पिताविहीन न बनाए 

ऐसी प्रार्थनाएँ अक्सर करती हैं बेटियाँ 

अपने सिले हुये ओठों से बुदबुदाते हुये 

सच बात यह है कि बेटियों की  बुदबुदाती हुई बातों को 

सबसे सटीक समझते हैं पिता है 

सबसे पहले समझते हैं पिता ! 



सोमवार, 6 जनवरी 2025

सर्दी की एक सुबह

 भिन्न नहीं होती सर्दी की सुबह 

सड़क की सफाई करने वालों के लिए 

नहीं होती अलग 

कूड़ा उठाने वालों के लिए 

अखबार वाले लड़के 

उठ जाते हैं अल्लसुबह 

इन्हें नहीं पता होता 

कितना है आज का न्यूनतम तापमान 


सर्दी की सुबह अलग नहीं होती 

स्त्रियॉं के लिए भी

वे घड़ी से चलती हैं 

मौसम के तापमान से निस्पृह

पैरों में उनके बंधी होती है घिरनी 

और वे नाचती रहती हैं 

मौसम के मिजाज से परे  ! 


सर्दियों का आनंद 

लिहाफ की गरमाइश 

गुनगुनी धूप में बैठने का रोमांच 

कामगारों के हिस्से नहीं आता

स्त्रियॉं के हिस्से नहीं आता ! 

गुरुवार, 2 जनवरी 2025

खुरदुरे हाथों का स्पर्श

खुरदुरे हाथों से किसान 

ढीली करता है समय समय पर 

फसलों की जड़ें 

ताकि पहुँच सके वहाँ तक नमी । 


खुरदुरे हाथों से माली 

फूलों की जड़ों को बेफिक्री से 

सींचता है, कमाता है । 


कुम्हार जो गूँथता है मिट्टी

बनाने के लिए घड़ा, दीया, खिलौने 

उसके हाथ भी होते हैं खुरदुरे । 


जो बनाता है सड़कें

निकालता है कोयला 

चलाता है मशीनें

सबके हाथ होते हैं खुरदुरे । 


नरम नरम रेशमी कपड़ों के बुनकरों के हाथ 

कभी नरम और मुयलयम नहीं होते 

होते हैं खुरदुरे ही । 


घर और बाहर के 

दुगुने बोझ से लदी कामगार स्त्रियॉं के हाथ 

होते हैं कुछ अधिक ही खुरदुरे । 


खुरदुरे हाथों वाले लोग 

भरे होते हैं प्रेम से , जिजीविषा से 

जब कभी अनायास ही 

खुरदुरे हाथों को कोई छूता है प्रेम से 

मोम से पिघल जाते हैं हाथ 

रेशमी एहसास से भर जाता है हाथों का खुरदरापन ।