1
गुरुवार, 24 अप्रैल 2025
बर्फ
मंगलवार, 22 अप्रैल 2025
ठीक है
मैंने कहा
जा रहा हूँ
फिर कभी नहीं दिखाऊँगा
अपना चेहरा तुम्हें,
तुमने कहा - ठीक है !
तुमने कहा
जा रही हूँ
नहीं दिखाऊँगी फिर कभी
अपना चेहरा तुम्हें,
मैंने पकड़ ली कलाई तुम्हारी
और बैठ गया तुम्हारे कदमों में !
बस इतना सा फर्क है
मेरे और तुम्हारे प्रेम में
बाकी सब ठीक है !
मंगलवार, 15 अप्रैल 2025
प्रेम
1.
गुरुवार, 3 अप्रैल 2025
दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री
दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री
जो आपकी नज़रों में है
वह मेरी नज़रों में भी हो
जरूरी नहीं।
मेरे लिए दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री जो है
उसकी आँखों बहुत बड़ी बड़ी नहीं हैं
फिर भी वह देखती है बड़े बड़े सपने
अपने बच्चों के लिए
मेरे लिए
अपने लिए तो सपने देखने उसने कब के छोड़ दिये
दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री के पेट पर हैं
गहरी गहरी धारियाँ जिसे अङ्ग्रेज़ी में कहते हैं बर्थ मार्क्स
बहुत गर्व करती है वह इन धारियों पर
शर्मिंदा नहीं होती
हाँ साड़ी पहनते हुये छुपा लेती है
कहते हुये कि निजी है उसका यह सौन्दर्य
दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री की एड़ियाँ
हैं खुरदुरी
वे अक्सर भूल जाती हैं
फटी एड़ियों को माँजना
उनमें तेल लगाना
जबकि बर्तन माँजते माँजते
उनसे नाखून जाते हैं घिस
और हर बार नाखून के नहीं बढ्ने पर
जताती हैं अफसोस
कहती हैं कि कराएगी नाखून पर कलाकारी
और देकर बजट का हवाला
हर बार रोक लेती है खुद को ।
बहुत महंगे कपड़े भी नहीं पहनती
दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री
बल्कि जो पहनती है
वही हो जाता है अप्रतिम, अनमोल।
दुनियाँ की सबसे खूबसूरत स्त्री
नहीं मिलती है किताबों में, कहानियों में
आभासी दुनियाँ में , पत्र पत्रिकाओं में
वह वहीं होती है आसपास
परछाई की तरह चलते हुये !
शुक्रवार, 28 मार्च 2025
जरूरत के समय साथ निभाने वाले लोग
गुरुवार, 27 मार्च 2025
चैत
1.
पेड़ों के लगातार कम होने से
कम हो रही है कोयल की कूक
और आपके भीतर यदि नहीं उठ रही कोई हूक
तो आप नहीं जानते
क्या है चैत का मास !
2.
लगातार बहते पछिया हवा से
समय से पहले जल्दी पकने लगे हैं गेंहू
उनके दाने हो रहे हैं छोटे
और छोटे दाने के बारे में सोचकर
यदि नहीं छोटा हो रहा आपका मन
तो आप नहीं जानते
क्या है चैत का मास !
3.
होली में नैहर आई बेटी को
लिवाने नहीं आया दुल्हा
बेटी की प्रतीक्षा और आतुरता से
यदि नहीं नहीं आतुर हो रहा आपका हृदय
तो आप नहीं जानते
क्या है चैत का मास !
मंगलवार, 18 मार्च 2025
एकाकीपन
जब कोई सुबह
जगाए नहीं तुम्हें
मेरी तरह
जब कोई रात में
प्रतीक्षा न करे
आने की
तेरी तरह
जब कोई गलतियों पर
न हो नाराज
तेरी तरह
जब कोई टोके नहीं
घर से बाहर निकलते हुए
मेरी तरह
यह आजादी नहीं
एकाकीपन है !
बचा लो मुझे
इस एकाकीपन से
बचा लूंगा तुम्हें भी
इस एकाकीपन से !
शुक्रवार, 7 मार्च 2025
कैसे कोई प्रेम जता सकता है !
सच कहता हूँ
मैंने तुमसे प्यार नहीं जताया
जब से मिला हूँ तुमसे
मुझे लगी तुम धरती सी
धैर्य से भरी
मुझे लगी तुम पानी सी
प्रवाह से भरी
मुझे लगी तुम अग्नि सी
तेज से भरी
मुझे लगी आकाश सी
विस्तार से भरी
मुझे लगी तुम हवा सी
गति से भरी
अब बताओ भला
जब कम पड़ रहे हों शब्द
जब हल्के लग रहे हों आभार के वचन
कैसे कोई प्रेम जता सकता है
उनके प्रति जिनसे है उसका जीवन, उसका अस्तित्व
बस इतना ही कहूँगा कि
अब मेरा अस्तित्व है तुमसे !
बुधवार, 5 मार्च 2025
स्त्रियों की नींद
गृहणी स्त्रियॉं अक्सर
सोती कम हैं
सोते हुये भी वे
काट रही होती हैं सब्जियाँ
साफ कर रही होती हैं
पालक, बथुआ, सरसों
या पीस रही होती हैं चटनी
धनिये की, आंवले की या फिर पुदीने की ।
कभी कभी तो वे नींद में चौंक उठती हैं
मानो खुला रह गया हो गैस चूल्हा
या चढ़ा रह गया हो दूध उबलते हुये
वे आधी नींद से जागकर कई बार
चली जाती हैं छत पर हड़बड़ी में
या निकल जाती हैं आँगन में
या बालकनी की तरफ भागती हैं कि
सूख रहे थे कपड़े और बरसने लगा है बादल !
कामकाजी स्त्रियों की नींद भी
होती है कुछ कच्ची सी ही
कभी वे बंद कर रही होती हैं नींद में
खुले ड्रॉअर को
तो कभी ठीक कर रही होती हैं आँचल
सहकर्मी की नज़रों से
स्त्रियॉं नींद में चल रही होती हैं
कभी वे हो आती हैं मायके
मिल आती हैं भाई बहिन से
माँ की गोद में सो आती हैं
तो कभी वे बनवा आती हैं दो चोटी
नींद में ही
कई बार वे उन आँगनों में चली जाती हैं
जहां जानाहोता था मना
स्त्रियों की मुस्कुराहट
सबसे खूबसूरत होती है
जब वे होती हैं नींद में
कभी स्त्रियों को नींद में मत जगाना
हो सकता है वे कर रही हों
तुम्हारे लिए प्रार्थना ही !
रविवार, 2 मार्च 2025
प्रेम
माफ करना प्रिय
मैं नहीं तोड़ पाया
तेरे लिए चांद
देखो न मैंने बनाई है रोटी
लगभग गोल सी
चांद के आकार सी
आओ खा लो न!
माफ करना प्रिय
मैं नहीं जोड़ पाया इतने पैसे
कि गढ़वा दूं तेरे लिए सोने के कंगन
देखो न मैं खड़ा हूं तुम्हारे संग
धूप में छांव बन कर
ताकि मलिन न पड़े तेरे चेहरे की कांति!
तुम खाई कि नहीं !
थक तो नहीं गई हो !
नींद आई कि नहीं बीती रात
यह रंग पहनो आज कि सुंदर लगेगी
मेरे पास ये छोटी छोटी ही बातें प्रिय
माफ करना कि बड़ी बातें मुझे करनी नहीं आती !
प्रेम करता हूं, यह कह न सका तो कह भी नहीं पाऊंगा
बदल तो नहीं पाऊंगा,
ऐसे में कहो जीवन भर क्या निभाओगी
इस नीरस व्यक्ति के साथ!
सोमवार, 24 फ़रवरी 2025
अनुत्तरित प्रश्न
यह प्रश्न अब तक है
अनुत्तरित्त कि
क्यों बार बार छले जाते हैं
निश्चल हृदय वाले लोग !
जो झूठ बोलना नहीं जानते
अक्सर झूठ से हार जाते हैं
क्यों औंधे मुंह गिर जाता है
उनका सच !
मंच से अट्टाहास करता विधर्मी
देखा गया अक्सर
जबकि ईमानदार लोग रहते हैं
सहमे खड़े होते हैं
हाशिये पर !
कभी इन प्रश्नों का उत्तर मिले तो
बताइएगा जरूर !
गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025
गालियां खाने वाली स्त्रियाँ
मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025
मायके न लौटने वाली स्त्रियाँ
कुछ स्त्रियाँ
कभी नहीं लौटतीं मायके
जब भी वापसी का कदम उठाती हैं
उनकी स्मृतियों में कौंध उठता है
माँ का बेबस चेहरा
पिता की घृणा और तिरस्कार
वे बढ़े हुये कदमों को लेती हैं समेट
अपने भीतर खोल में कछुए की तरह ।
वे अपने मन की कन्दराओं में
छुपे रहस्यों के उदघाटन भर से
जाती हैं काँप
छिन जाती है उनके चहरे की कोमलता
और तानों के तानों से डरकर
बेसुरा हो जाता है उनके जीवन का संगीत
वे बढ़े हुये कदमों को लेती हैं समेट
अपने भीतर खोल में कछुए की तरह ।
मायके से संवेदनात्मक जुड़ाव
विषय है कहानियों का
कुछ स्त्रियाँ कहानियों को कम
और वास्तविकता को अधिक जीती हैं ।
वास्तविकता में जीने वाली स्त्रियाँ
जो अपनी पीठ की खाल को कर लेती हैं मोटी
जो अपने मन के भीतर बना लेती हैं खोल
लौट कर भी नहीं लौटती हैं
अपने मायके ।
धीरे धीरे खत्म हो जाएगा बसंत - 2
बसंत धीरे धीरे
हो जाएगा खत्म
उससे पहले खत्म होगा
जीवन में प्रेम ।
कहते हैं
बहुत कम बोलती है वह लड़की
और जब बोलती है तो
झड़ता है कोई रातरानी
अंधेरे के सन्नाटे में
जब चुप हो जाएगी वह लड़की
जब हो जाएंगे महीने उसके बोले
बसंत धीरे धीरे आना कम कर देगा
शायद तुम नहीं जानते
बसंत के आने और लड़की के बोलने से ही तो है
दुनियाँ इतनी खूबसूरत !
कहते हैं
उसके पलकों पर
बसते हैं मोती
छूने से पहले ही
टपक पड़ते हैं निर्झर
जब उसके आँखों का पानी
बन जाएगा पत्थर पककर
बसंत आना कम कर देगा ।
शायद तुम नहीं जानते
बसंत के आने और आँखों के नम रहने से ही तो है
दुनियाँ इतनी खूबसूरत ।
नाम ही तो है बसत ।
सोमवार, 17 फ़रवरी 2025
धीरे धीरे खत्म हो जाएगा बसंत
धीरे धीरे
कम हो रहे हैं
बसंत के दिन।
धीरे धीरे
कम हो रहे हैं
सर्दियों के दिन ।
धीरे धीरे
कम हो रहे हैं
बरसात के दिन।
धीरे धीरे
गरम होकर धरती
उबल रही है
अधिक दिनों तक ।
वैसे कम तो हो रहे हैं
बरसात के दिन
लेकिन बरस रहे हैं बादल
फट फट कर
नदियां तोड़ रही हैं
किनारों की मर्यादा
बांध का सब्र
दिनों दिन हो रहा है ढीला
पहाड़ों की तरह ।
जितनी भी कोशिश करते हैं हम
उतनी ही अधिक बिगड़ रहा है
मौसम का मिजाज
बढ़ रही है
धरती की खीझ।
एक दिन आयेगा ऐसा भी
जब एक ही मौसम हुआ करेगा
गर्मी, गर्मी और गर्मी
तब फूल खिलते ही मुरझाया करेंगे
प्रेम के मौसम का इंतजार भी
हो जायेगा खत्म
जैसे धीरे धीरे खत्म हो रहा है बसंत।।
शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025
प्रेम
सोमवार, 10 फ़रवरी 2025
पतझड़
बसंत के आने से
आहट आती है पतझड़ की
नव पल्लव को देख कर
मुश्किल नहीं होता है
यह अंदाजा लगाना कि
झड़े होंगे पुराने पत्ते !
बसंत और पतझड़ का चक्र
यूं ही चलता रहेगा जीवन
अनवरत, निरंतर !
गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025
मायके लौटी स्त्री
मायके लौटी स्त्री
फिर से बच्ची बन जाती है
लौट जाती है वह
गुड़ियों के खेल में
दो चोटियों और
उनमें लगे लाल रिबन के फूल में
वह उचक उचक कर दौड़ती है
जैसे पैरों में लग गए हो पर
घर के दीवारों को छू कर
अपने अस्तित्व का करती है एहसास
मायके लौटी स्त्री।
मायके लौटी स्त्री
वह सब खा लेना चाहती है
जिनका स्वाद भूल चुकी थी
जीवन की आपाधापी में
घूम आती है अड़ोस पड़ोस
ढूंढ आती है
पुराने लोग, सखी सहेली
अनायास ही मुस्कुरा उठती है
मायके लौटी स्त्री।
मायके लौटी स्त्री
दरअसल मायके नहीं आती
बल्कि समय का पहिए को रोककर वह
अपने अतीत को जी लेती है
फिर से एक बार।
मायके लौटी स्त्री
भूल जाती है
राग द्वेष
दुख सुख
क्लेश कांत
पानी हो जाती है
किसी नदी की ।
हे ईश्वर !
छीन लेना
फूलों से रंग और गंध
लेकिन मत छीनना कभी
किसी स्त्री से उसका मायका।
विश्वास
1
विश्वास
एक नाजुक सी डोर है
तनिक भी ताप
या नमी से जाती है टूट
और पता भी नहीं चलता ।
2
विश्वास
कमाना
बहुत मुश्किल है
और खो देना
बेहद आसान
3
दिन को
दिन कहना
विश्वास नहीं
रात को
दिन कहना
है विश्वास !
बुधवार, 29 जनवरी 2025
गंगा में डुबकी
लगाते लगाते
गंगा में डुबकी
हमलोगों ने नहीं रहने दिया
गंगा को स्नान के लायक
नहीं रहने दिया गंगाजल को पवित्र
लगाते लगाते
गंगा में डुबकी
पहुंचा दिया हमलोगों ने
गंगा की मछलियों को
विलुप्ति के कगार पर
लगाते लगाते
गंगा में डुबकी
अपशिष्टों से भर दिया
इसकी तलछटी कि
प्रवाह कम हो गया नदी का
लगाते लगाते
गंगा में डुबकी
एक दिन बिलुप्त हो जाएगी गंगा
और रह जाएगी
बस चित्रों और स्मृतियों में !
मंगलवार, 28 जनवरी 2025
घबराना एक प्रतिक्रिया है
घबराना
पहली प्रतिक्रिया है
है एकदम नैसर्गिक !
कुछ लोग
घबरा जाते हैं
बहुत जल्दी
छुई-मुई से होते हैं वे
अपनी सामाजिक/आर्थिक/मानसिक स्थिति के प्रति
ऐसे लोग प्रतिकूल परिस्थितियों से/विपत्तियों से तो
लेते हैं निपट किन्तु जब बात आती है
उनके स्वाभिमान और अस्मिता पर
वे घबरा जाते हैं
कुछ लोग कभी नहीं घबराते
उनपर आलोचनाओं और प्रतिकूल परिस्थितियों का
नहीं होता कभी कोई असर
और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है लगातार
घरों में, समाज में, सत्ता में ।
नहीं घबराने वाले लोग
जन्म देते हैं युद्ध हो
नष्ट करते हैं पर्यावरण को
दूषित करते हैं मानवीय परिवेश को !
अक्सर घबराने वाले लोग
बेहद मासूम होते हैं दुनियाँदारी से अनिभिज्ञ
बहुत सकुचाते हैं वे लोग
अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराने से ।
बचने के लिए अपने दामन पर दाग या आंच से
कुछ लोगों की प्रतिक्रिया होती है
घबराहट के रूप में !
बड़े प्रिय और ईमानदार होते हैं
अपने व्यवहार और किरदार में
घबराने वाले लोग ।
यह मेरी कमजोरी हो सकती है कि
मुझे घबराए हुये लोग
बहुत अच्छे लगते हैं !
सोमवार, 27 जनवरी 2025
निर्णय
1
निर्णय का महत्व
समय से निर्धारित होता है
सही समय पर नहीं लिए गए निर्णय
नहीं रह जाते हैं प्रभावी ।
2
आज लिए गए निर्णय
आज के ही संदर्भ में जाने चाहिए देखें
समय और काल बदलने से
अर्थ और ताकत दोनों बदल जाते हैं
निर्णय के ।
3
निर्णय
अक्सर व्यक्ति सापेक्ष भी होते हैं
और स्थिति सापेक्ष भी
मंगलवार, 21 जनवरी 2025
पानी सा होना
पानी सा होना
कहना तो आसान है
लेकिन कितने ही लोग हैं
जो हो सकते हैं पानी सा !
पानी का नहीं होता है
अपना कोई रंग
वह रंग जाता है
जो ही रंग मिला दे उसमें
कुछ लोग पानी सा ही होते हैं
रंग जाते हैं किसी के ही रंग में
भुला कर अपना अस्तित्व ।
पानी का कहाँ होता है
अपना कोई आकार
कुछ लोग हमारे बीच होते हैं
पानी से
जो किसी के भी अनुसार, किसी के विचार में
जाते हैं ढल जैसे ढलता है पानी !
सुना है गंध या स्वाद भी
नहीं होता है पानी का
लेकिन वह किसी भी गंध और स्वाद को
बना लेता है अपना
हमारे बीच कई बार पाये जाते हैं
ऐसे लोग भी जो किसी भी गंध और स्वाद को
अपना लेते हैं छोड़ कर अहंकार
पानी जैसा जो हो जाती दुनियाँ
पानी जैसे जो हो जाते लोग
दुनिया से खत्म हो जाती
तृष्णा, घृणा, द्वेष, क्लेश, ईर्ष्या, अहंकार !
शुक्रवार, 17 जनवरी 2025
अस्तित्व बचाता बूढ़ा छायाकार
कल ही लौटा हूँ मैं एक संगीत सम्मेलन से
जहां मिला था मुझे एक बूढ़ा छायाकार
उसके पास था एक भारी भरकम बैग
जिसमें रहे होंगे तरह तरह के लैंस।
उसकी पहुँच मंच तक थी
वह मंच के नीचे बेहद करीब से
कभी आधा झुक कर तो कभी लगभग लेट कर
कोशिश कर रहा था पकड़ने की
उस एक क्षण को जब कलाकार होता है
अपने आनंद के उत्कर्ष पर
जब कला की आत्मा तृप्त हो रही होती है
कलाकार के सानिध्य में
और उस एक क्षण को कैमरे में कैद करने के लिए
वह नहीं लग रहा था
किसी कलाकार से कम
तपस्या या साधना में लीन ।
जब लोग भाग रहे थे कलाकार के पीछे
छू लेना चाहते थे उन्हें एक बार
लेना चाहते थे उनके साथ एक तस्वीर
लगभग धकिया ही दिया गया था
वह बूढ़ा छायाकार
गिरते गिरते बचा था वह ।
इस युग में जब तस्वीरों से पटी पड़ी है दुनियाँ
छायाचित्रों के सैलाब में डूब रहा है विश्व
अपने अस्तित्व को बचाने में
बेहद थका और निराश सा लग रहा था
वह बूढ़ा छायाकार ।
जब मचा हुआ है चारों ओर रंगों का आतंक
उसके गैलरी में बड़े बड़े कलाकारों के
वे अनमोल क्षण फांक रहें हैं धूल
श्वेत-श्याम में !
गुरुवार, 16 जनवरी 2025
कुछ पागल लोग
कुछ लोग वाकई पागल होते हैं
जिन्हें कुछ भी कह दीजिये आप
और वे बुरा नहीं मानते ।
वे आपके संग ठठा के हँसते हैं
आपको हँसाएँ रखते हैं
जबकि उनके भीतर बह रही होती है
दुखों की नदी लहराती हुई
वे दुख और पीड़ाओं की तरंगों को
किनारों से बाहर नहीं आने देते ।
इन पागल लोगों के कारण ही
कई बार महफिलों की रौनक बढ़ती है
जब ये किसी भी मौके पर नाच लेते हैं
कर देते हैं सबका मनोरंजन
और लौट आते हैं अपने अंधेरी गुफा में
सुबकते हुये
पागल लोग अपने दुखों का
नहीं करते हैं महिमामंडन
वे अपनी रीढ़ तान कर रखते हैं
और खड़े रहते हैं अपनी बात और जबान पर
वे नहीं ओढ़े रहते हैं मुखौटे
उनके नहीं होते हैं
कई कई चेहरे
इस दुनियादारी से भरे जीवन में ।
ऐसे पागल लोग
बेहद खूबसूरत होते हैं
स्थापित सौंदर्य के मानकों के विपरीत !
बुधवार, 15 जनवरी 2025
अस्तित्व
रोशनी का अस्तित्व है
अंधेरे से
सुख का
दुख से
प्रेम का
घृणा से
बसंत का
पतझड़ से ।
कितना जरूरी है न
जीवन के किसी कोने में
अंधेरे का होना ।
सोमवार, 13 जनवरी 2025
कम समझ वाले लोग
कम समझ वाले लोग
अक्सर किए जाते हैं
इस्तेमाल
घरों में
परिवार में
रिश्ते-नातों में
मोहल्ले में
समाज में
और देश दुनियाँ में भी ।
कम समझ वाले लोग
कम ही करते हैं
अपने दिमाग का इस्तेमाल
वे सोचते हैं दिल से
वे नहीं करते हैं जुगत-जुगाड़
बनाने के लिए अपना काम
उनमें लालच भी होता है कम ही
वे अपने हिस्से की रोटी भी दे आते हैं
किसी भूखे को और खुद पानी पीकर जाते हैं सो ।
कम समझ वाले लोग
जीते हैं वर्तमान में
कल के लिए नहीं जीते हैं वे
न ही कल के लिए बचाते हैं
वे बेलौस हँसते हैं
और कभी नहीं सोचते कि
हँसते हुये कैसे लगते हैं उनके दाँत ।
वे किसी के लिए भी, कभी भी, कहीं भी
मौजूद हो जाते हैं हवा के झोंके की तरह
नहीं सोचते कि कौन खड़ा हुआ था या नहीं हुआ था उनके साथ
जब कभी जरूरत में थे वे
और उनकी समझ में कम ही आता है
रिश्तों का गणित ।
ऐसे कम समझ वाले लोग
बुलाये जाते हैं
जरूरत पर नजदीकी परिवारों में,
दूर दराज के रिशतेदारों में भी
और अवसर के बाद अक्सर दिये जाते हैं भुला
अगले अवसर तक के लिए ।
आपने भी देखे होंगे
ऐसे कम समझ वाले लोग
अपने आसपास
इन्हें पहचानना नहीं होता का
बहुत मुश्किल
इनके चेहरे पर निजी परेशानियों की लकीरें
नहीं होती हैं
होती हैं एक बेफिक्र हंसी
तेज चाल क्योंकि ये लोग अक्सर जल्दीबाजी में होते हैं
कहीं किसी के पास पहुँचने के लिए ।
दुनियाँ को खूबसूरत बनाने के लिए
दुनियाँ को खूबसूरत बनाए रखने के लिए
बेहद जरूरी हैं ये कम समझ वाले लोग
क्योंकि आपने भी देखा होगा
अधिक समझ वाले लोगों ने
हथिया रखीं हैं औरों की जमीनें
दखल कर रखा है औरों के खेत
कब्जा कर रखा है किसी और के घर
दो देशों के बीच युद्ध के कारण भी यही हैं
अधिक समझ रखने वाले लोग !
काश इस दुनियाँ में इन कम समझ वाले लोग होते
बहुसंख्यक !
शनिवार, 11 जनवरी 2025
चूल्हे का सौंदर्य
चूल्हे का सौंदर्य
आग से है
इसकी उपयोगिता भी।
बुझा हुआ चूल्हा
होता है उदास ।
चूल्हा जो पकाता है
अक्सर अकेला रह जाता है
भूख के मिटने के बाद ।
शुक्रवार, 10 जनवरी 2025
पिता की प्रार्थनाएँ
1.
पिता
कभी स्वयं नहीं होते
अपनी प्रार्थनाओं में ।
2.
पिता की प्रार्थनाओं को
प्रायः वे कभी नहीं समझ पाते
जिन्हें मिला होता है
पिता का प्यार भरा हाथ
उनके सिर पर ।
3.
पिता की प्रार्थनाओं का महत्व
कभी उस लड़की से पूछना
जिसके पिता नहीं थे
जब वह जाना चाहती थी स्कूल
जब वह छूना चाहती थी आसमान ।
4.
पिता की प्रार्थनाएँ
अक्सर तब समझ में आती हैं
जब नहीं रहते हैं पिता
सशरीर ।
गुरुवार, 9 जनवरी 2025
बिन पिता की बेटियाँ
बेटियाँ
सबसे अधिक प्रेम करती हैं
अपने पिता से
वे होती हैं सबसे अधिक आकर्षित
अपने पिता सरीखे पुरुषों से
जो दे सके उन्हें भरोसा,
जो खड़ा हो सके उनके साथ
धूप में , छाँव में
ऐसा नहीं है कि बरगद जैसे पिता की छाया में
बेटियाँ बढ़ती नहीं है
बल्कि वे तितली हो उठती हैं
सुरक्षा के भाव के साथ ।
कुछ बेटियाँ ऐसी भी होती हैं
जिन्हें कभी नहीं मिला होता है
पिता का खुरदरे हाथों का स्नेह-सिक्त प्यार
या फिर बैठकर पिता के चौड़े कंधों पर
आसमान को छूने का अनुभव
ऐसी बेटियाँ अक्सर बातें करती हैं अपने पिता से
कल्पनाओं में, अकेले में
कोई और पुरुष शायद ही बाँट सके इस अकेलेपन को ।
बेटियाँ कई सारी बातें
वे बांटती केवल पिता से
जब वे लौटती हैं स्कूल से
कॉलेज से या दफ्तर से
या फिर मायके से
और जब पिता नहीं होते
या जिन बेटियों के पिता नहीं होते
वे अक्सर ओढ़ लेती हैं
चुप्पी का लिहाफ
कुछ बेटियाँ अपने अकेलेपन से भागकर
हंसने लगती हैं, बातूनी हो जाती हैं
और कुछ इस तरह भीतर ही भीतर छुपाती हैं अपना दर्द !
ईश्वर किसी बेटी को पिताविहीन न बनाए
ऐसी प्रार्थनाएँ अक्सर करती हैं बेटियाँ
अपने सिले हुये ओठों से बुदबुदाते हुये
सच बात यह है कि बेटियों की बुदबुदाती हुई बातों को
सबसे सटीक समझते हैं पिता है
सबसे पहले समझते हैं पिता !
सोमवार, 6 जनवरी 2025
सर्दी की एक सुबह
भिन्न नहीं होती सर्दी की सुबह
सड़क की सफाई करने वालों के लिए
नहीं होती अलग
कूड़ा उठाने वालों के लिए
अखबार वाले लड़के
उठ जाते हैं अल्लसुबह
इन्हें नहीं पता होता
कितना है आज का न्यूनतम तापमान
सर्दी की सुबह अलग नहीं होती
स्त्रियॉं के लिए भी
वे घड़ी से चलती हैं
मौसम के तापमान से निस्पृह
पैरों में उनके बंधी होती है घिरनी
और वे नाचती रहती हैं
मौसम के मिजाज से परे !
सर्दियों का आनंद
लिहाफ की गरमाइश
गुनगुनी धूप में बैठने का रोमांच
कामगारों के हिस्से नहीं आता
स्त्रियॉं के हिस्से नहीं आता !
गुरुवार, 2 जनवरी 2025
खुरदुरे हाथों का स्पर्श
खुरदुरे हाथों से किसान
ढीली करता है समय समय पर
फसलों की जड़ें
ताकि पहुँच सके वहाँ तक नमी ।
खुरदुरे हाथों से माली
फूलों की जड़ों को बेफिक्री से
सींचता है, कमाता है ।
कुम्हार जो गूँथता है मिट्टी
बनाने के लिए घड़ा, दीया, खिलौने
उसके हाथ भी होते हैं खुरदुरे ।
जो बनाता है सड़कें
निकालता है कोयला
चलाता है मशीनें
सबके हाथ होते हैं खुरदुरे ।
नरम नरम रेशमी कपड़ों के बुनकरों के हाथ
कभी नरम और मुयलयम नहीं होते
होते हैं खुरदुरे ही ।
घर और बाहर के
दुगुने बोझ से लदी कामगार स्त्रियॉं के हाथ
होते हैं कुछ अधिक ही खुरदुरे ।
खुरदुरे हाथों वाले लोग
भरे होते हैं प्रेम से , जिजीविषा से
जब कभी अनायास ही
खुरदुरे हाथों को कोई छूता है प्रेम से
मोम से पिघल जाते हैं हाथ
रेशमी एहसास से भर जाता है हाथों का खुरदरापन ।