नदियाँ सूख रही हैं
पेड़ हो रहे हैं नंगे
आसमान की स्याही सूख रही है
और काली पर रही है हरियाली
अब चिड़ियों के लिए महफूज़ नहीं है आकाश
डरती हैं जंगलों में हिरन
पपीहे खो रहे हैं स्वर
और बनावती महक वाले फूलों से
भर हुआ है बाज़ार
इस बीच
चलो एक अच्छा काम करें हम
धरती के गर्भ में एक बीज बोयें हम
और
आकाश की छाती पर
बनायें भविष्य का इन्द्रधनुष !
चलो
एक बीज बोयें !
बहुत सुन्दर व सामयिक रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंaashavadi rachna...................behad sundar.
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेश!!
जवाब देंहटाएंयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
सुन्दर सामयिक रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई
चलो एक अच्छा काम करें हम
जवाब देंहटाएंधरती के गर्भ में एक बीज बोयें हम
और
आकाश की छाती पर
बनायें भविष्य का इन्द्रधनुष !
बहुत खूबसूरत विचार
बहुत ही अच्छा संदेश!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सार्थक संदेश दे रही है आपकी कविता - साधुवाद स्वीकारें !
जवाब देंहटाएंसन्देश देती सार्थक रचना ... आभार
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