मंगलवार, 10 अगस्त 2010

दीवाल पर टंगी घडी

दीवाल पर टंगी घडी
कलाइयों पर बंधी घडी से
भिन्न होती है

मौन होती है
सब कुछ देख कर भी
और नहीं करती कोई प्रतिरोध
कलाई घडी की तरह
नहीं उतर जाती हाथो से
जब चाहे तब

उसे पता है
रात कैसे
करवटों में गुजरी है

और कैसे चली है
मेरी साँसे
उसकी टिक टिक के साथ
मन के झंझावातों से
रूकती नहीं है
दीवाल पर टंगी घडी

तिल तिल जीने
और मरने के बीच

पुल का काम करती है
दीवाल पर टंगी घडी
और जब भी
निराश हुआ है मन
कह देती है
निकल जाएगा यह समय भी
धीरे धीरे

ब्रेकिंग ख़बरों और
बच्चों के कार्टून के बीच
उसके लिए नहीं है कोई भेद
क्योकि पता है उसे
सच दोनों में कुछ भी नहीं
हर खबर से ऊपर
समय की खबर लेती है
दीवाल पर टंगी घडी

युद्ध का समय है
बाहर भी और
भीतर भी
और ऐसे कठिन समय में भी
दीवाल पर टंगी घडी
बिलकुल वैसे ही
मौन और शांत है

जैसे शूली पर टंगे
यीशु

19 टिप्‍पणियां:

  1. कितना सही कहा है……………इतना गहरे उतर कर आप ही लिख सकते हैं।आखिरी पंक्तियों मे जो बिम्ब प्रयोग है वो भी बहुत ही सुन्दर है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर रचना है, वक़्त अपने गर्भ में अनगिनत राज़ लिए बढता जा रहा है...

    जवाब देंहटाएं
  3. एक अनोखा अंदाज़ है आपका ,आपकीi रचनाये पढ़ती हूँ तो लगता है सब निर्जीव चीज़े सजीव हो उठी ..आप से बात करती है और आप सहजता से सुनते भी हो

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी रचनाएँ सबसे अलग तथा विशेष होती हैं उसी का उदहारण है "दीवाल पर टंगी घडी" - उत्तम रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन के बुनियादी मुद्दों पर केंद्रीत यह कविता हमें विचलित तो करती ही है, यह सोचने के लिए बाध्‍य भी करती है कि अपने आसपास की जिंदगी से सरोकार रखने वाली इन स्थितियों के प्रति हम कितने संवेदनशील हैं!
    कवि के भीतर बैठी विनम्र सदाशयता एक अदम्‍भ आशावाद से भरी है। बहुत सारे मोहभंगों के बीच यह आशावाद राहत भी देता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. इतनी तारीफ के बीच कुछ और प्रशंसा करना असुविधाजनक लगता है .फिर भी इस कविता पर यदि तुम्हारी पीठ न थपथपाई तो भी ती नाइंसाफी ही होगी .
    बहुत -बहुत बढ़िया कविता है ,

    जवाब देंहटाएं
  7. उसे पता है
    रात कैसे
    करवटों में गुजरी है
    और कैसे चली है
    मेरी साँसे
    उसकी टिक टिक के साथ
    ..................
    सुंदर !!!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बहुत ही बढ़िया कविता...और कुछ कहना ठीक न होगा

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर रचना के लिये बधाई स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  11. अद्भुत चित्र खींचा है दीवाल की घड़ी के माध्यम से जीवन का।

    जवाब देंहटाएं
  12. युद्ध का समय है
    बाहर भी और
    भीतर भी
    और ऐसे कठिन समय में भी
    दीवाल पर टंगी घडी
    बिलकुल वैसे ही
    मौन और शांत है
    जैसे शूली पर टंगे
    यीशु .......
    phir ek tajgi bhari rachna...beautiful!

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

    जवाब देंहटाएं
  14. दीवाल पर टंगी घडी
    बिलकुल वैसे ही
    मौन और शांत है
    जैसे शूली पर टंगे
    यीशु
    Kya baat kah dee!

    जवाब देंहटाएं
  15. "जब भी
    निराश हुआ है मन
    कह देती है
    निकल जाएगा यह समय भी
    धीरे धीरे "
    achche bimb ke sahare sundre abhivyakti.

    जवाब देंहटाएं
  16. दीवाल पर टंगी घडी
    बिलकुल वैसे ही
    मौन और शांत है
    जैसे शूली पर टंगे
    यीशु
    बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  17. दीवार पर तंगी घड़ी और यीशू ... दोनो मौन साक्षी हैं गुज़रे इतिहास के ... लाजवाब हमेशा की तहर ...

    जवाब देंहटाएं