बुधवार, 25 अगस्त 2010

अकारण कुछ भी नहीं

अकारण ही
मन के आसमान में
बादल गहरा जाते हैं
और रौशनी छिन जाती है
कोई
खींचे लिए जाता है
तुम्हे
दूर बहुत दूर मुझ से
जिधर हो रहे हैं युद्ध
आसमान है लाल
बहुत लाल
क्रोध से तमतमाया है
और
धरती के गर्भ में लावा
निकलने को है आतुर


ए़क कोलाज सा
उभरता है
जिसमे
मैं
तुम
हम
सभी
बिना किसी रूप आकार के
प्रतीत होते हैं
पृथ्वी गोलाकार नहीं दिखती
और सूर्य का रंग
घोर काला दिखता है
वैसे ही जैसे
भय के क्षण में होता है मन का रंग
कहीं कोई तितली नहीं उडती
कहीं कोई नए पत्ते नहीं उभर रहे हैं
इस कोलाज में


मैं अकेला
नितांत अकेला
खड़ा
रोता
आँखों में आंसू का
सैलाब लिए
तुम्हारे तट पर
होता हू

बादल बरसता नहीं
गरजता बहुत है
अट्टहास करता है
मैं डर कर
तुम्हारी गोद में
छिप जाना चाहता हूँ
लेकिन तुम भी मुझे
उस ओर मिलती हो
जिस ओर
रौशनी बहुत है
लेकिन दिखता नहीं है
कुछ साफ़ साफ़
जिस ओर युद्ध है
तुम भी उसी ओर खड़ी हो


फिर
बादल बहुत बरसता है
नदी में उफान आ जाता है
मेरी नाव डूबने लगती है
मैं खुद को
बचाने की
कोशिश नहीं करता
छिन सी जाती है
मेरी शक्ति
मेरा सामर्थ्य
मेरा पुरुषत्व
मेरा पुरुषार्थ
असहाय सा मैं
बन जाता हूँ वस्तु

फिर कुछ देर बाद
अब
शांत हो जाती है नदी
छट जाते हैं बादल
धूप फिर से
खिल उठती है



स्वप्न कहें
या दुस्वप्न
या फिर कोई
अतृप्त इच्छा
अव्यक्त विचार
फिर से
रह जाता है अधूरा

अकारण मेरा डर
जाता रहता है
लेकिन
मन के कोने में
दबा भय
ख़ामोशी से कहता है
अकारण कुछ भी नहीं

अकारण कुछ भी नहीं

14 टिप्‍पणियां:

  1. अकारण कुछ भी नहीं

    यकीनन अकारण कुछ भी नहीं
    कुछ कारण पर अकारण भी होते हैं
    और हम जान ही नहीं पाते कि
    इस अकारण का कारण क्या है ....

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  2. फिर
    बादल बहुत बरसता है
    नदी में उफान आ जाता है
    मेरी नाव डूबने लगती है
    मैं खुद को
    बचाने की
    कोशिश नहीं करता
    छिन सी जाती है
    मेरी शक्ति
    असहाय सा मैं
    वस्तु बन जाता हूँ
    नियंत्रण विहीन
    जैसे बच्चे हो जाते हैं
    Kya kamal hai! Aise swapn mujhe bhi aate hain! Yaa shayad harek ko jab ham asurakshit mahsoos karte hain?

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  3. अपने मन की सच्ची बातें कवि सीधे-सीधे अपने ही मुख से उत्तम पुरुष में कह रहा है और पाठक को इस तरह उन भावों के साथ तादातम्य अनुभव करने में बड़ी सुगमता होती है।

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति ....


    छट जाते हैं बादल
    धूप फिर से
    खिल उठता है

    शायद यहाँ धूप खिल उठती है ..होना चाहिए ....
    बादलों में कोलाज ..अद्बुत बिम्ब है ...

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  5. अकारण कुछ भी नहीं

    -यही सत्य है, उम्दा रचना.

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  6. बहुत अच्छी कविता।

    *** हिंदी भाषा की उन्नति का अर्थ है राष्ट्र की उन्नति।

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  7. इस अकारण का कारण क्या है
    कुछ भी नहीं

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  8. स्वप्न कहें
    या दुस्वप्न
    या फिर कोई
    अतृप्त इच्छा
    अव्यक्त विचार
    फिर से
    रह जाता है अधूरा

    अकारण मेरा डर
    जाता रहता है
    लेकिन
    मन के कोने में
    दबा भय
    ख़ामोशी से कहता है
    अकारण कुछ भी नहीं
    aisa hota hai

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  9. bhaiyya,

    main to aapka chela ban chuka hoon , kya likhte ho yaar , ab ek baar to aapse aakar milna hi honga .. gazab , amazing ,awsome.. kya likha hai ..padhte samaya yun laga ki main ek paiting bana raha hoon ... jiyo sir ji

    badhayi
    vijay
    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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  10. सही कहूं तो इस कविता में कुछ भी समझ नहीं आया। पूरी कविता ही अकारण लगी।

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  11. man ke avyakt bhavo ko swapn ke colaj me dekhana ,aur akaran hi pareshan hote hue karan dhundhna hi insani swabhav hai.yahi bhav vyak kar gayee apki rachna....

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