रविवार, 29 अगस्त 2010

पूरक हो तुम

जब
थक जाती हैं आंखे
करते करते
तुम्हारा इन्तजार
भोली सूरत तुम्हारी
पलकों में आकार
स्वयं ही
ठहर जाती है
और
नींद नहीं आने
तक बनी रहती है
पूरक हो तुम सांसों की ।

सपने देखता हूँ
मैं और
पूरा करने को
आतुर रहते हो
तुम
क्यों ना कहू
पूरक हो तुम सपनों के ।

समंदर
शोभित है
लहरों से
तुम हो लहर
कैसे ना होऊं
मैं तुम्हारा समंदर
पूरक हूँ मैं भावों का ।

रिश्ता है
अपना जैसे
बादल और पानी का
मैं
पूर्ण करता हूँ तुम्हे
और तुम
नेह बरसा जाती हो
मुझ पर

पूरक हो तुम जीवन की ।

16 टिप्‍पणियां:

  1. सपने देखता हूँ
    मैं और
    पूरा करने को
    आतुर रहते हो
    तुम
    क्यों ना कहू
    पूरक हो तुम सपनों के ।
    ...sundar bhavon se ot-prot rachna

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  3. बेहतरीन.....मन के भावों का सहज प्रकटीकरण......बहुत सुन्दर कविता|

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  4. रिश्ता है
    अपना जैसे
    बादल और पानी का
    मैं
    पूर्ण करता हूँ तुम्हे
    और तुम
    नेह बरसा जाती हो
    मुझ पर

    पूरक हो तुम जीवन की ।


    गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  5. इस बार के ( ३१ अगस्त , मंगलवार ) साप्ताहिक चर्चा मंच पर आप विशेष रूप से आमंत्रित हैं ...आपके लिए कुछ विशेष है ....आपकी उपस्थिति नयी उर्जा प्रदान करती है .....मुझे आपका इंतज़ार रहेगा....
    शुक्रिया

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  6. कितनी बखूबी प्रेम और समर्पण को दर्शाया है निःशब्द कर दिया

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