एक दिन कुछ ऐसा होगा
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे बचे न बचे
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे बचे न बचे
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
nice! keep it up!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-09-2018) को "काश आज तुम होते कृष्ण" (चर्चा अंक-3084) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हाँ गूँजता रहेगा भारत माता की जय।
जवाब देंहटाएंमनुष्य रहे न रहे
जवाब देंहटाएंमनुष्यता उसमे बचे न बचे
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
नश्वरता में अमरत्व की खोज , अति सुन्दर सृजन ।
जिंदादिल एहसासों को खूब पिरोया है!
जवाब देंहटाएंध्वनियाँ ... बहुत सही ।
जवाब देंहटाएंअवषेश में केवल बचती है ध्वनियाँ
जवाब देंहटाएं