अरुण चन्द्र रॉय की कविता - महामारी
1.
नहीं जो आई होती महामारी
विश्वास करना कठिन होता कि
दोहराता है इतिहास
स्वयं को।
2.
नहीं जो आती होती महामारी
मृत्यु आती है करके मुनादी
कहां समझ पाते हम।
3.
महामारी का कीजिए
धन्यवाद
जिसने बताया कि
सीमाएं हैं
ज्ञान की, विज्ञान की
धन, वैभव, पद एवं प्रतिष्ठा की
मनुष्यता है इन सबसे ऊपर।
4.
महामारी का आभार
यदि हम त्याग सकें
अपना अहंकार।
हाँ, दूसरा पहलू यह भी है।
जवाब देंहटाएंहर क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है । ये महामारी भी बहुत कुछ सिखा रही समझा रही ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंकाश कि अब भी चेत जाय इंसान!
यदि हम त्याग सकें
जवाब देंहटाएंअपना अहंकार।
वाह ...
जवाब देंहटाएंकुछ ही लाइनों में पूरा इतिहास उतार दिया है ... इतिहास दोहराता है स्वयं को ...
इस महामारी ने बहुत कुछ सिखाया और दिखाया, संवेदनाएँ भी और असंवेदनशीलता भी.
जवाब देंहटाएंमहामारी में जहाँ लोगों को व्यापार के अवसर मिल गये, वहीं इस दार्शनिक पह्लू या कहें पहलुओं की प्र्स्तुति के लिये आभार आपका!
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