शनिवार, 29 मई 2021

महामारी

अरुण चन्द्र रॉय की कविता - महामारी

1.

नहीं जो आई होती महामारी

 विश्वास करना कठिन होता कि

दोहराता है इतिहास 

स्वयं को। 


2.

नहीं जो आती होती महामारी

मृत्यु आती है करके मुनादी

कहां समझ पाते हम। 


3.

महामारी का कीजिए 

धन्यवाद 

जिसने बताया कि

सीमाएं हैं 

ज्ञान की, विज्ञान की

धन, वैभव, पद एवं प्रतिष्ठा  की

मनुष्यता है इन सबसे ऊपर। 


4.

महामारी का आभार 

यदि हम त्याग सकें 

अपना अहंकार। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है । ये महामारी भी बहुत कुछ सिखा रही समझा रही ।

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  2. बहुत सटीक सामयिक रचना
    काश कि अब भी चेत जाय इंसान!

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  3. यदि हम त्याग सकें

    अपना अहंकार।

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  4. वाह ...
    कुछ ही लाइनों में पूरा इतिहास उतार दिया है ... इतिहास दोहराता है स्वयं को ...

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  5. इस महामारी ने बहुत कुछ सिखाया और दिखाया, संवेदनाएँ भी और असंवेदनशीलता भी.

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  6. महामारी में जहाँ लोगों को व्यापार के अवसर मिल गये, वहीं इस दार्शनिक पह्लू या कहें पहलुओं की प्र्स्तुति के लिये आभार आपका!

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