मैं गया नहीं कभीअफगानिस्तान
इसलिए मुझे उस देश और वहां के लोगों की चिंता
बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए।
चिंता तो तब की थी जब
बामियान में तोड़े गए बुद्ध
मैने बुद्ध से कहा भी था कि वे हार जायेंगे अंततः
हथियारों के आगे
बुद्ध मुस्कुराते रहे
मुस्कुराते हुए बुद्ध को देख मुझे आया था क्रोध भी
लेकिन बुद्ध बेफिक्र थे
मैं कभी बुद्ध से मिला नहीं इसलिए मुझे नहीं करनी चाहिए चिंता
बुद्ध की भी।
सुना है सत्ता पर भारी है हथियार
या सत्ता और हथियार के बीच हुआ है कोई समझौता
यह भी सुना है कि आवाम को भी पसंद है
यही हथियारबंद लोग
ऐसे आवाम से जब मैं कभी मिला नहीं तो मुझे क्यों करनी चाहिए चिंता!
अफगानिस्तान
क्षमा करना तुम हमारी बौद्धिक जुगाली में तो हो
लेकिन नहीं हो हमारी चिंता में
क्योंकि मैं कभी नहीं गया अफगानिस्तान
नहीं मिला वहां के आवाम से
न ही मिला मैं कभी मुस्कुराते हुए बुद्ध से।
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंचिंता भी क्यों करनी ? जब तक ये परिस्थिति अपने ही सिर न आ जाय ।
जवाब देंहटाएंसुंदर व सामयिक
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