अमेरिकी कवयित्री देबोराह पारदेज की कविता "सेल्फ पोट्रेट इन द टाइम ऑफ डिजास्टर" का अनुवाद । पारदेज एक महत्वपूर्ण समकालीन अमेरिकी कवियत्री हैं । मूलतः मानवीय संवेदनाओं के सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक तत्वों को अपनी कविता के जरिये अभिव्यक्त करती हैं । यह कविता महामारी के दौरान लिखी गई है ।
- देबोराह पारदेज़
सुबह से ही करती रहती है मेरी बेटी
बाहर जाने की जिद्द
कभी कभी करती है वह विनती भी
मैं किसी तरह पहनाती हूँ उसे दस्ताना
वह चीखती है और चीखती रहती है काफी देर तक
और अचानक हिंसक हो नोच लेती है मेरा चेहरा ।
वह छटपटाती है, रोती है
दोपहर को मैं
झुक कर बांधती हूँ उसके कोट का बटन
बांधती हूँ उसका स्काफ
झुक कर बांधती हूँ उसके कोट का बटन
बांधती हूँ उसका स्काफ
ताकि उसके सिर की टोपी अपनी जगह टिकी रहे ।
वह पहली बार देख रही है बर्फबारी
इसलिए वह अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक तनाव में है
कभी कभी वह चुप हो जाती है
वह पहली बार देख रही है बर्फबारी
इसलिए वह अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक तनाव में है
कभी कभी वह चुप हो जाती है
तो कभी कभी लगती है सुबकने
खाने के हर कौर के साथ वह हो उठती है अधिक बेचैन
और अनिश्चित भी इस खराब मौसम को देखकर ।
और अनिश्चित भी इस खराब मौसम को देखकर ।
मैं किसी तरह पहनाती हूँ उसे दस्ताना
वह चीखती है और चीखती रहती है काफी देर तक
और अचानक हिंसक हो नोच लेती है मेरा चेहरा ।
वह छटपटाती है, रोती है
हूक सी उठती है उसके भीतर
और यही एक तरीका जानती है वह
और यही एक तरीका जानती है वह
बताने के लिए - अपने मन की बात ।
(अँग्रेजी मूल से अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय )
सुंदर सृजन !!
जवाब देंहटाएंजीवन की भयावहता को बहुत अच्छे तरीके से अभिव्यक्त किया है। अनुवाद में भी काव्य की आत्मा बरकरार है। बधाई अरुण जी।
जवाब देंहटाएंन जाने इस दौर में किस पर क्या क्या गुज़री है ।सार्थक अनुवाद ।।
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