जब मेरे मन का शहर
सूरज की तपिश से जल रहा था
तुम आई बरखा बन कर,
कहो कैसे भूल जाऊं इसे!
जब पतझड़ था
मेरे मेरे मन के शहर में
उदासियां से भरे बाग
खिल उठे और आ गया बसंत
तुम्हारे कदमों के आहट से,
कहो कैसे भूल जाऊं इसे!
अकेलेपन के बाढ़ से
ग्रसित थी मन की भावनाएं
तुमने बिठाकर नाव में
किनारे लगाया मेरे मन को
कहो कैसे भूल जाऊं इसे।
अकेलेपन के बाढ़ से
जवाब देंहटाएंग्रसित थी मन की भावनाएं
तुमने बिठाकर नाव में
किनारे लगाया मेरे मन को
कहो कैसे भूल जाऊं इसे... निशब्द करती अभिव्यक्ति कहो कैसे भूल जाऊं।
सादर