शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

कैसे भूल जाऊं


जब मेरे मन का  शहर 

सूरज की तपिश से जल रहा था

तुम आई बरखा बन कर,

कहो कैसे भूल जाऊं इसे!


जब पतझड़ था

मेरे मेरे मन के शहर में 

उदासियां से भरे बाग 

खिल उठे और आ गया बसंत

तुम्हारे कदमों के आहट से,

कहो कैसे भूल जाऊं इसे!


अकेलेपन के बाढ़ से 

ग्रसित थी मन की भावनाएं 

तुमने बिठाकर नाव में 

किनारे लगाया मेरे मन को

कहो कैसे भूल जाऊं इसे। 

1 टिप्पणी:

  1. अकेलेपन के बाढ़ से

    ग्रसित थी मन की भावनाएं

    तुमने बिठाकर नाव में

    किनारे लगाया मेरे मन को

    कहो कैसे भूल जाऊं इसे... निशब्द करती अभिव्यक्ति कहो कैसे भूल जाऊं।
    सादर

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