तुम्हारे खयालों सी है
दिसंबर की धूप
नसों में समा जाती है
अलसा देती है
और छूने से पहले ही
लौट जाती है।
दिन के छोटे होने का एहसास
कराती है दिसंबर की धूप।
बहुत खूब
बहुत खूब
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