मां के नहीं होने
और होने के बीच का अन्तर
मां के रहते
कभी समझ नहीं आता
और जब समझ में आता है
मां फिसल जाती है
समय की मुट्ठी से
रेत की तरह
मुट्ठी से फिसला हुआ रेत
कब लौटा है मुट्ठी में।
नमस्ते,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 16 सितंबर 2022 को 'आप को फ़ुरसत कहाँ' (चर्चा अंक 4553) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
मर्मस्पर्शी कविता ।
बहुत सुंदर मन को छूते भाव।
सुन्दर भाव
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 16 सितंबर 2022 को 'आप को फ़ुरसत कहाँ' (चर्चा अंक 4553) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
मर्मस्पर्शी कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मन को छूते भाव।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव
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