मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

शेष

 पिता अब नहीं हैं 

नहीं है मां भी अब

ऐसा तो कह नहीं सकते

क्योंकि वे हैं अब

अपनी वसीयतों में

दस्तावेजों में। 


शायद रह जाता है

यही शेष

दस्तावेज

मैं रहना चाहूंगा शेष

अपनी कविताओं में। 

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

मसखरे के हाथों में दे दो सत्ता की बागडोर


मुझे लगता था कि 

मेरे पास है समाधान

दुनियां भर की  समस्याओं का 

कि अगर  मैं किसी देश के राष्ट्रपति से मिल  लूं 

तो रोक लूंगा उसे अपने पड़ोसी राष्ट्र पर बम गिराने से । 


मुझे लगता था कि

यदि कभी किसी दंगाई से मिला तो

उसकी तलवार के नोक पर 

रख दूंगा एक गुलाब का फूल

और कहूंगा कि किसी को मारने से पहले देख ले अपनी जेब में रखी बेटी की तस्वीर एक बार 

मुझे यकीं था कि वह दंगाई नहीं रहेगा फिर । 


मुझे यह भी लगता था कि

देश की वित्तमंत्री तक यदि पहुंच जाऊं मैं

तो समझा लूंगा उन्हें कि

सीमा पर तोप से कहीं अधिक जरूरी हैं

मेरे गांव के स्कूल में शिक्षक, पंचायत में अस्पताल 

और वे थपथपा कर मेरी पीठ मान जायेंगे मेरी बात। 


कितना गलत था मैं

जब मेरी कोशिशों के सब बीज खोखले निकले

अंकुरित नहीं कर पाया एक भी  पौधा प्रेम और विश्वास का

भरोसे की कलम सूख गई नमी की कमी के कारण और 

अपनी तमाम कोशिशों के लिए कहलाया मैं मसखरा  । 


फिर कहूंगा, चाहे कोई सुने न सुने

मसखरों की बातें जो सुनती दुनियां

सीमाओं पर बाड़ नहीं होते

हाथों में हथियार नहीं होते

गुलाब की खेती होती

तलवारों की जगह हाथों में होते कलम

बस एक दिन किसी मसखरे के हाथों में दे दो दुनियाँ की बागडोर।