सौंदर्य की गढ़ी हुई परिभाषों से इतर
एक अलग सौंदर्य होता है
फटी हुई एड़ियों में
फटी एड़ियों वाली स्त्री में !
वह सौंदर्य साम्राज्ञी नहीं होती
उसके चेहरे पर नहीं दमकता
ओढा हुआ ज्ञान
या लेपी हुई चिकनाहट
वे अनगढ़ होती हैं
जंगल के पुटुश के फूल की तरह
मजबूत है, चमकदार भी
हाँ, छुईमुई भी ।
फटी एड़ियों वाली स्त्री के हाथ भी
होते हैं अमूमन खुरदुरे
नाखून होते हैं घिसे
जिस पर महीनों पहले चढ़ा नेलपेंट
उखड़ चुका होता है
उसकी उँगलियों में भी दिखती है दरारें
जो सर्दियों में अक्सर बढ़ जाती है
लेकिन वह इसकी फिक्र ही कहाँ करती
या फिर कर ही नहीं पातीं
फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य
दिखता है
शहर के चमचमाते बिजनेस या दफ्तर परिसर में
सफाई कर रही स्त्रियॉं में
कहीं दूर गांवों में धान काट रही स्त्रियॉं में
गेंहूँ बोती हुई गीत गाती स्त्रियॉं में
शहरी मोहल्लों में सड़क बुहारती स्त्रियॉं में
या फिर गोद में बच्चे को उठाये बोझ उठाती मजदूर स्त्रियॉं में
हाँ, सुबह सुबह लगभग दौड़ कर
फैक्ट्री पहुँचती स्त्रियॉं की एड़ियाँ भी फटी पायी जाती हैं !
फटी हुई एड़ियाँ नहीं है
कोई हंसने या अफसोस जताने वाली बात
यह श्रम का प्रतीक है
यह स्वबलमबनऔर सम्मान का प्रतीक है
प्रतीक है स्त्रियॉं के सशक्त होने का !
सौंदर्य की परिभाषा से अनिभिज्ञ
फटी एड़ियों वाली स्त्री भी
भीगती है नेह से
उसकी आँखों के कोर गीले हो जाते हैं जब
फटी हुई एड़ियों को हृदय से लगा
चूमता है उनका प्रेमी !
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