मंगलवार, 23 दिसंबर 2025

ग़ज़ल

 किसी की खुशबू बसी है इस रुमाल में 

कायनात में किसी की बातें हैं कमाल में


वह दिखे तो और देखने का जी करता है

नहीं देखूं तो आ जाती है वह खयाल में


नाम उसका लेती हैं मेरी धड़कने भी अब

क्या बताऊं कि वह नहीं किसी मिसाल में


जुगनू सी चमकती है हंसी उसकी 

बना हूं गुलाम मैं उसके दुमाल में


धर्मों ने बांट दिए आवाम को अब 

अजान अब शोर है, रंग नहीं गुलाल में

1 टिप्पणी:

  1. वाह बस अंतिम शेर में चूहा नाराज न हो जाए | (चूहा जो आपका शेर है :) ही ही )

    जवाब देंहटाएं