शनिवार, 27 दिसंबर 2025

सुबह मेरे जागने से पहले

 सुबह मेरे जागने से पहले

उठी होती है एक पूरी दुनियां

उठी होती वह स्त्री जो लगाने आती है

निगम की तरफ से मोहल्ले में झाड़ू लगाने, बिनने कूड़ा 

वह भी जाग चुका होता है

जो बांटने निकलता है दूध 

उसके पास पहले साइकिल हुआ करती है

जो अब मोटरसाइकिल हो गई है

फिर भी कहता है कि खुश नहीं है वह 


दूर कस्बे में स्कूल जाने वाले बच्चे और उनके पिता भी

जाग चुके होते हैं सूरज के जागने से पहले 

माएं बना चुकी होती है टिफिन झटपट

और झटपट ही बच्चियां भी रिबन बांध लेती हैं दो चोटियों में

बस्ता पीठ पर लाद बच्चे भाग रहे होते हैं 

सुनहरे भविष्य  की तरफ। 


खाली मैदान तो रहे नहीं अब कहीं भी

इंच इंच बिकने के बाद

इसलिए सड़कों पर दौड़ रहे हैं उत्साही युवा, अधेड़ और 

लपक कर चल रहे होते बूढ़े 

मेरे जागने से पहले सुबह सुबह। 


अब दुनियां सोती नहीं है

देश भी नहीं सोता है

दूसरे समय क्षेत्र की घड़ी से मिलान करते हुए

रातों को दिन सा व्यवहार करते हुए लोगों की

अलग ही दुनिया होती है और वे

लौट रहे होते हैं घरों को

जब मैं जागने को होता हूं सुबह सुबह। 


अब मुझे लगने लगा है कि 

रात अब नहीं रह गए हैं सोने के लिए

दिन अब नहीं रह गए हैं केवल काम के लिए

एक अजीब सी बेचैनी में जी रही होती है दुनियां

सुबह सुबह मेरे जागने से पहले ! 

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