बहुत
प्रेम करते थे
तुम मुझे
किस दिन
क्या पहन रही हूँ
पता लग जाता था
तुझे
मेरे बिना
चेहरा धूमिल
हो जाया करता था
तुम्हारा
मेरे
ना होने के
एहसास भर से
भरी आँखों से
अपना चेहरा
छुपा लेते थे
मेरी आँचल में
कौन से रंग की शर्ट
फबेगी तुम पर
यह भी
पूछते थे
मुझ से ही
मेरे प्यार में पड़कर
सीखा तुमने
खाना
पानी पूरी
संभार बड़ा
और भी कई
लड़कियों वाले खाने
अपनी बाईक
पार्किंग में लगा
मेरे साथ
घूमते थे तुम
बस में
फिर
बहुत सोच समझ कर
तुमने दिया
शादी का प्रस्ताव
मैंने कहा
'सोच लो
ए़क बार फिर '
तुमने
'हां' कहा था
मैंने कहा
नहीं चाहिए
मुझे कुछ
बस चाहिए
मेरा अपना
नाम
नाम
जो माँ ने दिया
मुझे
है मेरी अपनी
पहचान
बस
नहीं लगा पाऊँगी
तुम्हारा 'उपनाम'
और
व्यथित हो गए
तुम
और
क्षत विक्षत हो गया
तुम्हारा अहम्
तुम्हारे भीतर के
कुंठित 'पुरुष' ने
कर दिया मुझे
अस्वीकार
तुम्ही कहो
कैसे जिया जा सकता है
सम्पूर्ण जीवन
उसके साथ
जो मेरी अपनी पहचान से ही
जो हो जाए
असहज
मेरी
पहचान से
असहज
तुम्हारे ना हो सकने का
अफ़सोस भी नहीं
मुझे
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
जवाब देंहटाएंnajuk bhavo ki khubsoorat abhivayakti......
जवाब देंहटाएंमन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंArun jee ,behad sanjeedgi se likhi gai rachna hai.Day-to-day life ke beech se baharaati kavita.aapki rachnadharmita kamal ki hai.
जवाब देंहटाएंGender bias ko ujagar karti umda rachna
जवाब देंहटाएंतुम्ही कहो
जवाब देंहटाएंकैसे जिया जा सकता है
सम्पूर्ण जीवन
उसके साथ
जो मेरी अपनी पहचान से ही
जो हो जाए
असहज
Behtareen rachna, mere liye to apki rachnon mai naveen soch ka pehlu sabse akarshak hota hai...
Kitne sanjeeda muddey ko kitni sehajta aur savedan sheelta se prastut kiya hai...
bhut khub
जवाब देंहटाएंमैं तो आपकी बात से सहमत हूँ अच्छा लगा एक नए विषय पर पढ़ कर चलो पुरुष भी इस विषय पर कभी सोचते हैं (अन्यथा न लें ) आभार
जवाब देंहटाएंwaah waah.......ye huyi na baat.
जवाब देंहटाएंArun Bhaiya mujhe aapki ye kavitaa wilag see lagi.sach kahu is kavitaa ne dil le liyaa hai.haardik badhaai
जवाब देंहटाएंअपनी माटी
माणिकनामा
तुम्ही कहो
जवाब देंहटाएंकैसे जिया जा सकता है
सम्पूर्ण जीवन
उसके साथ
जो मेरी अपनी पहचान से ही
जो हो जाए
असहज
....... sabkuch kah diya , ab aur kya kahna
आपने कितना सुंदर पुरुष -विमर्श रच दिया !!!!!
जवाब देंहटाएंati sundar kavitaaaa
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना पर मैं अनायास आ गई, और पढ़कर चौंक गई| पुरुष मानसिकता...जो प्रेम तो कर सकता है लेकिन स्त्री का अपना वज़ूद उसे स्वीकार्य नहीं| बहुत अच्छी रचना है मन को छू गये ये शब्द और शायद यही उचित भी था जो इस नारी चरित्र ने किया...
''मेरी
पहचान से
असहज
तुम्हारे ना हो सकने का
अफ़सोस भी नहीं
मुझे''
बहुत बधाई और शुभकामनाएं.