१.
हर रंग
तुम में जाकर
जाते हैं
मिल
और
बन जाते हैं
स्वप्निल इन्द्रधनुष
२
हर राह
तुम तक
रही हैं
पहुँच
और
बन जाती है
मंजिल
३.
हर भाव
तुम्हारे लिए
हो रहे हैं
अंकुरित
और
बन रहे है
अभिव्यक्ति की
पौध
४
हर शब्द में
हो रही हो
तुम
विम्बित
और
रचा जा रहा है
काव्य
५
हर कल्पना
तुम से है
और
निर्मित हो रहा है
ए़क नया
संकल्प
६
हर स्वर
तुमसे है
झंकृत
और
गुंजित है
व्योम में
अभिनव संगीत
हर कल्पना
जवाब देंहटाएंतुम से है
और
निर्मित हो रहा है
ए़क नया
संकल्प
कल्पना का संकल्प बन जाना बहुत सकारात्मक है.
इस 'तुम' को साधुवाद
सुन्दर रचनाएँ
wow! gazab ka likha hai ........sundar bhav.
जवाब देंहटाएं.........गुंजित है
जवाब देंहटाएंव्योम में
अभिनव संगीत. sunder abhvyakti,
वाह भाई वाह। आपकी हर-हर गंगे का आनंद। बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंNature ke kareeb kee lagati kavitaa hai. lage rahe janaab .......sahitya ki sewaa jaaree rahe.
जवाब देंहटाएंअपनी माटी
माणिकनामा
ek se badh kar ek....
जवाब देंहटाएंbahut khoob arun ji....
हर कल्पना
जवाब देंहटाएंतुम से है
और
निर्मित हो रहा है
ए़क नया
संकल्प
bahut sunder rachna, simplicity at its best... extremely nice..
sugathit shilp,sahaj bhv,sundar prayas.
जवाब देंहटाएंbehad bhavpurn aabhivyakti ,sahaj shabdon se reniassance
जवाब देंहटाएंbahut khub likha
जवाब देंहटाएंहर भाव
तुम्हारे लिए
हो रहे हैं
अंकुरित
और
बन रहे है
अभिव्यक्ति की
पौध
Bahut hi sundar kshanikaayen...
जवाब देंहटाएंkhbusurat.......bahut khub!!
जवाब देंहटाएंहर कल्पना
जवाब देंहटाएंतुम से है
और
निर्मित हो रहा है
ए़क नया
संकल्प
हर एक कविता एक नया संकल्प दोहराती हुई एक नई दास्ताँ सुनाती है