रविवार, 23 मई 2010

बाज़ार

मैं बाज़ार हूँ
तैयार हूँ
बेचने के लिए
कुछ भी
किसी को भी

मेरे लिए
सब कुछ है
सामान
और
लग सकती है
किसी की भी
कीमत

सपने
मेरे लिए हैं
सबसे बड़े
हथियार
उनके दम पर
बेच लेता हूँ
मैं
सब कुछ

जरूरतों से
आजकल
तय नहीं होता
मैं
बल्कि
मैं
तय करता हूँ
जरूरते

इन दिनों
जब शोर मचा हुआ है
चारो ओर
कि
भावना शून्य
हो गया है सब कुछ
मैं
बहा ले जाता हूँ
लोगों को
भावना के
ज्वार में

हंसने से लेकर
रोने तक
सभी भाव का है
अपना मूल्य

अब
मुझ तक
पहुँचने की जरुरत नहीं
पहुँच रहा हूँ
मैं
खुद
दरवाजे दरवाजे
और कहू तो
किचेन से शयन कक्ष तक
पहुँच हो गई है
मेरी

मैं ही
तय करता हूँ
किचेन में
कब क्या पकेगा
सुबह
दोपहर
शाम
और रात का मेनू
तय करता हूँ
मैं

कौन सा रंग
शुभ है आपके लिए
कौन सी दिशा में
जाना रहेगा ठीक
किस ग्रह का
कितना प्रभाव है
यहाँ तक कि
कौन से इश्वर
करेंगे आपका कल्याण
यह भी
मैं बताता हूँ


और तो और
मैं
बताता हूँ
सेहत के लिए
क्या और कितना खाना
रहेगा ठीक
यानी
भूख की सीमा भी
तय करता हूँ मैं


जिन पर
लोगो का है
जितना अधिक एतबार
वे ही
पहले बिके हैं
मेरे यहाँ
और
उतनी ही
अधिक कीमत पर

बाज़ार हूँ
मैं





8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत बधाई इस नए व्यवसाय के लिए. सबसे अच्छी बात तो ये है किसी ने तो सत्य स्वीकारा, दाद देनी पड़ेगी हिम्मत की, यहाँ तो लोग करते भी हैं कर गुजरते भी हैं और मानने को तैयार ही नहीं होते. सच बहुत कुछ कह दिया आज का यही सत्य है

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  2. अरुण भाई.एक बात कहूं आप भी हकीकत लिखते हुए डरते नहीं. यही ब्लोगिंग को सार्थकता देगा. सच कहे. आज कोलेज और स्कूल के प्रिन्सीपल भी बच्चों को एक जींस मानते है जो उन्हें अभिभावक ने मूल्य बढाने के लिए दे रखी है. मूल्य बढाने के लिए उनकी समझ में बस एक काम है वो है बच्चों को अंक लाने की मशीन बनाना.
    अपनी माटी
    माणिकनामा

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  3. सपने
    मेरे लिए हैं
    सबसे बड़े
    हथियार
    उनके दम पर
    बेच लेता हूँ
    मैं
    सब कुछ..........ye sapne bade jadui hote hain , unke dum per jo bhi becha jaye , we anmol hote hain

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  4. bazarvad par teekha vyang hai ye usase jyada is bazar me bazar ke hathon bikane khadelogo par karari chot hai.aaj rishte nate,prem-ghrena,bhavana-ishvar sabhi to is bazr me bikate hai.is bazar me aadmi ko khoj pana kathin ho gaya hai......
    sunder rachana.badhaiyan....

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  5. हंसने से लेकर
    रोने तक
    सभी भाव का है
    अपना मूल्य

    bajar vyapar ke alawa kuch nahi samjhta... na ansu na jazbaat na chandni raat...

    bahut sahi vivran diya hai apne aaj ki is dukhmayi paristhti ka..

    http://rajatnarula.blogspot.com/2009/06/bazaar.html
    meri bhi ek rachna ek koshish hai iss maahol ko ujagar karne ki...

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