बुधवार, 12 मई 2010

ताज से लौट कर- २

लौट कर
ताज से
टूट गया
भ्रम
कि
निश्चल
प्रेम का
है प्रतीक
ताज

नहीं है
ऐसा
क्योंकि
शाहजहाँ ने
नहीं बनवाया
ताज
अपनी
पहली पत्नी के लिए
जो
जन ना सकी
कोई वारिस
उसके लिए


हाँ
ताज के साथ ही
सटे
पहली बेगम का
कब्र
जरुर लगता है
अपना सा
आम सा
उपेक्षित


14 टिप्‍पणियां:

  1. ये भी एक नजरिया निकल कर आया!!


    एक विनम्र अपील:

    कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

    शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  2. दुनिया के भीड़ से हट कर एक नए विचार के साथ ........ये लाजवाब रचना .

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  3. क्या दूर की कौडी ढूंढ कर लाये हैं।

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  4. बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

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  5. LAJAWAB HAI APKI NAVEEN SOCH KA PITARA JISME SE ADHBHUT JEEV JANTU SHABDON KA ROOP LE KAR MANN MOHH LETE HAI..

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  6. अपना सा
    आम सा
    उपेक्षित
    शिकायत का अंदाज़ अच्छा है.

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  7. waah arun ji bhut khub ,, aap an chhuye pahluo ko ,,, jitne sdaharn tarike se chhute hai adbhud hai
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

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