लौट कर
ताज से
टूट गया
भ्रम
कि
निश्चल
प्रेम का
है प्रतीक
ताज
नहीं है
ऐसा
क्योंकि
शाहजहाँ ने
नहीं बनवाया
ताज
अपनी
पहली पत्नी के लिए
जो
जन ना सकी
कोई वारिस
उसके लिए
हाँ
ताज के साथ ही
सटे
पहली बेगम का
कब्र
जरुर लगता है
अपना सा
आम सा
उपेक्षित
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंएक नई सोच।
Bahut gahri .. maarmik rachna ... dil ke kareeb se likha hai ...
जवाब देंहटाएंये भी एक नजरिया निकल कर आया!!
जवाब देंहटाएंएक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
दुनिया के भीड़ से हट कर एक नए विचार के साथ ........ये लाजवाब रचना .
जवाब देंहटाएंक्या दूर की कौडी ढूंढ कर लाये हैं।
जवाब देंहटाएंवाह !!....बहेतरीन प्रस्तुती ....
जवाब देंहटाएंबड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
जवाब देंहटाएंLAJAWAB HAI APKI NAVEEN SOCH KA PITARA JISME SE ADHBHUT JEEV JANTU SHABDON KA ROOP LE KAR MANN MOHH LETE HAI..
जवाब देंहटाएंकटु सत्य
जवाब देंहटाएंअपना सा
जवाब देंहटाएंआम सा
उपेक्षित
शिकायत का अंदाज़ अच्छा है.
Arun Bhaiya aapke lagaataar lekhan.pasand aataa hai.
जवाब देंहटाएंLateral thinking!
जवाब देंहटाएंBole to....
Alag hat ke.....
waah arun ji bhut khub ,, aap an chhuye pahluo ko ,,, jitne sdaharn tarike se chhute hai adbhud hai
जवाब देंहटाएंsaadar
praveen pathik
9971969084
TAJ ko TAJ hi rehno do koi nam na do.
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