सोमवार, 23 अगस्त 2010

अदृश्य रक्षा कवच

कहते हैं
राखी पहली बार
कृष्ण को
द्रौपदी ने बाँधी थी
किसी और रूप में
किसी और प्रसंग में
जब जरुरत पड़ी
राखी ने रख ली लाज
द्रौपदी की

इस पर्व को
बहन भाई के दायरे से निकाल
करने दो मुझे
ए़क छोटा सा वादा
जब भी कभी
पड़े तुम्हे
किसी की भी जरुरत
खड़ा मिलू मैं तुम्हे
पुकारने से पहले


किसी की आँखों में
जो आये तेरे लिए
कोई अन्य भाव
मैं रहू तुम्हारे साथ
करने को सामना
देने तो प्रत्युत्तर

तुम्हारे आंसू
धरती पर गिरने से पहले
पहुँच जाएँ
मेरी हथेलियाँ
जो भी सपने हैं
तुम्हारी आँखों में
हो जाएँ मेरे अपने से
और तुम्हारे साथ मिलकर
रंग दू उन्हें हकीकत का

आओ
बाँध दू मैं
तुम्हारी कलाई पर
ए़क अदृश्य
रक्षा कवच
अपने नाम का
प्रेम से अभिसिक्त
अभिमंत्रित

12 टिप्‍पणियां:

  1. ye adrishya raksha kavach hai jo man ki bhavnaon se ek doosare ko jode rakhta hai,ye sada isi tarah baandhe rakhe yhai kamna hai....

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  2. ऐसे अदृश्य रक्षा कवच मिल जाएँ तो यह समाज ..यह दुनिया कितनी सुन्दर हो जाये ...सब एक दूसरे के लिए सोचें ...बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  3. रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
    हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसमें हमारे देश की सभी भाषाओं का समन्वय है।

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  4. बेहद सुन्दर भावनायें संजोयी हैं……………………रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  5. कोई शक नहीं कि कविता में नए बिम्‍ब हैं और अच्‍छे हैं। पर अरूण भाई इतनी जल्‍दबाजी भी ठीक नहीं। वर्तनी की गलतियां हैं। और इस पद पर अगर फिर से नजर डालें तो बेहतर होगा-

    किसी की आँखों में
    जो आये तेरे लिए
    कोई अन्य भाव
    मैं रहू तुम्हारे साथ
    करने को सामना
    देने तो प्रत्युत्तर

    यह आप उस पर पहरा लगा रहे हैं या मदद कर रहे हैं। साथ ही आप उसे निर्बल क्‍यों बनाना चाहते हैं।
    इसी तरह उसके सपने आपके नहीं हो सकते। सपने तो उसके ही रहेंगे।

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  6. इस पर्व को
    बहन भाई के दायरे से निकाल
    करने दो मुझे
    ए़क छोटा सा वादा ...

    सच है ... ये पर्व भाई बहनों का माना जाता है पर ... अगर सोचा जाए तो बहुत दूर की बात निहित है इस पर्व में .... ये वादा है किसी का भीम किसी से रक्षा का .. फ़र्ज़ निभाने का ... अच्छी रचना है ....

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  7. कविता में भावनाओं का आवेग है ! पुनरीक्षण से रचना की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है !! धन्यवाद !!!

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  8. तीव्र संवेदनशीलता से सिक्त रचना।

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  9. आओ
    बाँध दू मैं
    तुम्हारी कलाई पर
    ए़क अदृश्य
    रक्षा कवच
    अपने नाम का
    प्रेम से अभिसिक्त
    अभिमंत्रित
    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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