मिट्टी में पलता हूं
किसान हूं मैं
मिट्टी में मिल जाता हूं।
मिट्टी से शुरू कहानी
मिट्टी में खत्म होती है
किसान हूं मैं
मिट्टी के गीत गाता हूं
मिट्टी में मिल जाता हूं।
मिट्टी मेरे खून में
मिट्टी मेरी धमनियों में
किसान हूं मैं
मिट्टी की सांसें लेता हूं
मिट्टी में मिल जाता हूं।
:) मिट्टी में मिलाता हूं मैं भी मिट्टी हो जाउंगा कभी भूल जाता हूं ।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
सकारात्मक सोच, सुन्दर रचना।
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नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-12-20) को "रचनाएँ रचवाती हो"'(चर्चा अंक-3937) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
अन्नदाता के लिए सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंमिट्टी से खेलता हूं
जवाब देंहटाएंमिट्टी में पलता हूं
किसान हूं मैं
मिट्टी में मिल जाता हूं।
कृषक जीवन को रेखांकित करती सुंदर रचना अरुण चन्द्र रॉय जी 🌹🙏🌹
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन। हृदय स्पर्शी।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन हृदय स्पर्शी।
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